मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

आन्दोलन और भटकाव

                             देश में जिस तरह से किसी भी बड़े स्वतः स्फूर्त आन्दोलन के साथ जो कुछ भी आज तक होता रहा है इस बार भी दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों को लेकर चलाये जा रहे आन्दोलन का भी वही हाल होने जा रहा है. एक घृणित घटना ने जिस तरह से आम तौर पर शांत रहने वाले सभ्य समाज की महिलाओं और बेटियों के सड़क तक आकर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर किया है उससे यह तो पता चलता है कि अब किसी भी सरकार द्वारा इस तरह की घटनाओं की अनदेखी कर पाना आसान नहीं होगा. लोगों के आक्रोश के चलते अब जिस तरह से उसमें भी राजनीति की जा रही है उसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि मूल मुद्दे से भटक कर कोई भी आन्दोलन अपने उद्देश्य को कैसे प्राप्त कर सकता है यह भी सोचने का विषय है. अच्छा होता कि इस तरह के विरोध में अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन से बचा जाता जिससे लोग भारी संख्या में आकर रोज़ ही सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर पाते पर अब जिस तरह से इस शांतिपूर्ण चल रहे प्रदर्शन में हिंसा ने अपना स्थान बना लिया है उससे क्या हासिल किया जा सकता है ? क्या राष्ट्रपति भवन या संसद को घेरने से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है ?
                             देश के युवाओं के गुस्से का कुछ लोग जिस तरह से अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं क्या युवाओं को इस बात को समझने की आवश्यकता नहीं है ? हर पार्टी, नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता भी जानते हैं कि बिना इस युवा शक्ति के उनसे कुछ भी नहीं हो सकता है फिर भी वे इसी शक्ति को सही तरह से दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करने के स्थान पर प्रदर्शनों में हिंसा को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं इससे क्या इन लोगों की स्वीकार्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग रहा है ? अच्छा होता कि इस प्रदर्शन को क्रमिक धरने के रूप में किया जाता इतनी बड़ी भीड़ के लगातार शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने से सरकार पर और दबाव बनता जिससे कानून में बदलाव के बारे में फ़ैसला लेने के लिए सभी राजनैतिक दल मजबूर हो जाते. आज भी हर दल अपने हिसाब से लाभ हानि का हिसाब लगाकर अपनी गोटियाँ फिट करने में लगा हुआ है जिसका कोई औचित्य नहीं है पर भारतीय समाज और जनता का यह दुर्भाग्य है कि वह इन लोगों के घिनौने खेलों में बहुत बार अनजाने में ही शामिल हो जाती है जिससे मूल मुद्दे से भटकाव बढ़ जाता है और समस्या का नया स्वरुप सामने आने लगता है.
                             नि:संदेह राष्ट्रपति भवन की तरफ़ कूच करने के आह्वाहन से सरकार पर दबाव बनता है और किसी भी बड़े प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार के पास कोई कारगर नीति पूरे देश में नहीं है तो वे हर समस्या को पुलिस बल के माध्यम से सुलझाने का प्रयास करते हैं ? आम नागरिकों के तौर पर हम भी जानते हैं कि राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति से मिलने रोज़ ही बहुत सारे प्रतिनिधिमंडल विदेशी राजनयिक और अन्य लोग शिष्टाचार वश आते हैं फिर भी रायसीना हिल्स पर इस तरह की अराजकता फ़ैलाने वालों के साथ आम जनता किस तरह से सहयोग कर सकती है ? कोर्ट ने भी इस मामले की दैनिक आधार पर सुनवाई करने का निर्णय स्वतः ही ले लिया है और सभी जानते हैं कि अब इस मामले में त्वरित न्याय होने की आशा भी बढ़ गयी है ऐसे में यदि वर्तमान कानून और कोर्ट को अपना काम करने दिया जाये और सरकार और सांसदों पर दबाव बनाने के लिए पूरे देश में सांसदों और विधायकों के घरों पर सांकेतिक प्रदर्शन किये जाएँ तो दबाव तब भी बनाया जा सकता है ? हमेशा की तरह जनता के साथ एक बार फिर राजनैतिक दल छल कर रहे हैं और जिस युवा शक्ति की आज वे अनदेखी कर रहे हैं आने वाले समय में वही उनके लिए सत्ता और राजनीति का ख़ुमार उतारने का काम करने वाली है.    
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. "बड़े प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार के पास कोई कारगर नीति पूरे देश में नहीं है"

    सरकार के पास कारगर नीति तो इस देश में किसी चीज़ के लिए नहीं है

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  2. Nice post.

    on this-
    http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/12/blog-post_25.html

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