मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

टैबलेट की राजनीति ?

                   बिना कुछ सोचे समझे किसी घोषणा को कर देने का क्या अंजाम हो सकता है यह आजकल यूपी के अनुभवहीन और दबाव में काम करने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश को अच्छे से पता चल रहा है क्योंकि किसी ज़माने में आधुनिकीकरण और कम्प्यूटरीकरण की घोर विरोधी रही सपा ने जिस तरह से चुनावों के समय अचानक पलटी मारते हुए विद्यार्थियों को विभिन्न स्तरों पर लैपटॉप और टैबलेट देने की घोषणा कर सबको चौंका दिया था आज वही उसके गले की फाँस बनता नज़र आ रहा है. यह सही है कि देश की इस सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य के लिए किसी भी योजना को शुरू करना और उसे अंजाम तक पहुँचाना ज़रा कठिन होता है फिर भी बिना सोचे समझे सपा ने यह घोषणा कर दी थी. यदि सपा की मंशा और दृष्टि ठीक होती तो वह इस पैसे से चंद बच्चों के हाथों में खिलौना पकड़ाने के स्थान पर कोई बिजली घर लगाने के बारे में सोच सकती थी पर उसे कुछ सनसनी फैलाकर चुनावों में वोट हासिल करने थे जिसमें वह फिलहाल कामयाब भी रही है पर केवल उसकी इस कामयाबी के लिए प्रदेश की जनता का वह धन जो किसी बड़े विकास कार्य में योजनाबद्ध तरीके से खर्च हो सकता था केवल कुछ हाथों में बिखर कर कुछ दिनों में नष्ट हो जाने वाला है ?
                     इस क्रम में सबसे राजनीति का निकृष्टतम रूप तब सामने आता है जब किसी ऐसी बात में भी तुच्छ राजनीति की जाने लगती है जिसमें राजनीति की कोई गुंजाईश नहीं होती है. सरकार की तरफ से अब यह कहा गया है कि सरकार द्वारा दिए जाने वाली टैबलेट में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में टाइप करने की सुविधा होगी ? तकनीकी के जानकारों के लिए यह बयान किसी मूर्खता भरे चुटकुले से अधिक नहीं है क्योंकि तकनीकी को किसी से वोट नहीं लेने होते हैं और आज वह विकास के जिस दौर में पहुँच गयी है उसमें भाषा के बन्धनों को लगभग तोड़ा ही जा चुका है फिर केवल कुछ वोट हासिल कर लेने के लिए तकनीकी का इतना भद्दा उपयोग कहीं और देखा और सुना नहीं गया है ? हमारे नेता आज भी भाषा और जाति के बन्धनों में उलझ कर भोली भाली जनता को उल्लू बनाने में लगे हुए हैं क्या सरकार में ज़िम्मेदार पदों पर बैठे हुए कोई लोग यह बताने का कष्ट करेंगें कि इसमें उर्दू को इतना जोर देकर क्यों कहा गया है जबकि वह भी अन्य भाषाओँ की तरह ही सभी के लिए सुलभ है ? क्या इस भाषा के विकास के लिए यूपी की सरकार ने कोई बड़ा तकनीकी निवेश किया है जिसका श्रेय वह आज लेना चाह रही है ?
                शिक्षकों की भर्ती के नाम पर जिस तरह से बेरोज़गारों से सपा सरकार ने लूट मच रखी है उस पर कभी भी उनकी नज़र नहीं जाती है क्योंकि प्रदेश स्तर की इस नौकरी में आज बहुत सारे ऐसे बेरोज़गार भी हैं जिन्होंने ३०-३० जनपदों में प्रति जनपद ५०० रूपये का शुल्क चुकाकर इस परीक्षा का फार्म खरीदा और भरा है ? अगर भर्ती प्रक्रिया में किसी तरह की की कोई कमी है तो सरकार को उस पर ध्यान देकर उसे सुधारने का काम करना चहिये था पर उसका दिखावटी ध्यान एक तरफ बेरोज़गारी भत्ता देने में लगा है तो दूसरी तरफ इन्हीं बेरोजगारों से धन खींचकर उन्हें वापस करने का प्रावधान भी सरकार ने बना रखा है ? जब बेरोजगारों की बात होती है तो किसी भी परीक्षा के लिए केवल नाम मात्र का शुल्क ही लिया जाना चाहिए और चयन हो जाने पर उस समूह के पहले बैच से पूरी परीक्षा की धनराशि तब तक चरण बद्ध तरीके से वसूली जानी चाहिए जब तक उसका पूरा पैसा सरकार को वापस न मिल जाये इससे जहाँ बेरोजगारों पर कोई अधिक भार नहीं पड़ेगा और जिन्हें नौकरी मिल जाएगी वे भी आसानी से सहयोग के साथ इस मद में खर्च किये जाने वाले धन की भरपाई कर सकेंगें पर जब हर बात में राजनीति ही हावी हो चुकी हो तो आम लोगों को इसी तरह से दिग्भ्रमित करने का काम सरकारें हमेशा ही करती रहेंगीं.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां:

  1. सहमत हूँ कि इन टेबलेट्स या लेपटॉप की जगह अगर धन सही कल्याणकरी योजनाओँ मेँ लगाया जाए तो परिणाम ठीक होगेँ।
    बच्चोँ को शिक्षा देने के नाम पर कभी-2 हमारे देश के बुद्धजीवी मुंगेरीलाल के सपने देखने लगते हैँ। 10th/12th स्तर पर टेबलेट बाटनेँ से भला नहीँ होने वाला। इस उम्र के 100मेँ से 97-98 बच्चे कम्प्यूटर/नेट का दुर्पयोग करते हैँ। 1 या 2 ही इनका उपयोग रचनात्मक कार्योँ मेँ करते हैँ। अब अगर इन्हीँ पर बुद्धजीवी या नेता इतराएँ तो फिर जय हो उनकी...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

    जवाब देंहटाएं