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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

सर्दी और सहायता

                   एक बार फिर से उत्तर भारत में सर्दी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही इससे मरने वालों की संख्या में निरंतर तेज़ी देखी जा रही है जिससे समाज के उन लोगों के बारे में चिंता उठाना स्वाभाविक है जिनके पास ठण्ड से बचने के न्यूनतम उपाय और साधन भी नहीं हैं. पूरी सर्दी में हर वर्ष सरकारी और ग़ैर सरकारी लोगों द्वारा ठण्ड से बचने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएं भी की जाती हैं पर जिस तरह से विभिन आवश्यकताओं या रोज़ी रोटी की तलाश में ग्रामीण परिवेश से लोग शहरों की तरफ पलायन करते हैं  उससे भी समस्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है क्योंकि शहरों में वे कई बार खुले में ही अपनी रातें गुजरने के लिए मजबूर होते हैं या फिर किसी बस या रेलवे स्टेशन पर थोड़ी सी छाया में अपने को ठण्ड से बचाने का काम किया करते हैं. यहाँ पर इस बात पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है कि विभिन तरह की सरकारी परियोजनाओं के बाद भी इस तरह से लोग पलायन करने को मजबूर हैं और सर्दी का शिकार बन रहे हैं तो ऐसे में आख़िर कौन से उपाय किये जाएँ जिनके माध्यम से इस तरह से घर से बाहर आकर काम करने वाले लोगों कि मौसम की मार से बचाया जा सके ?
         इस क्रम में सबसे पहले तो मनरेगा के माध्यम से कुछ ऐसे प्रयास होने चाहिए कि जब वर्ष के इस समय घर से बाहर जाकर काम करना कठिन होता है तो गांवों में ही रोज़गार प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराया जाये जिससे लोगों को घर बैठे ही काम मिल सके और वे अनावश्यक रूप से शहरों की तरफ़ जाने के बारे में न सोचें ? फिर भी शहरों के सामान्य काम काज को चलने के लिए जिस तरह से बहुत सारे लोगों की सदैव ही आवश्यकता पड़ती रहती है उसके लिए भी कुछ व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे जो लोग गांवों से आकर शहरों की जीवन रेखा बने हुए हैं उनके लिए भी कुछ सही और सार्थक किया जा सके. सबसे पहले उन बड़े भवन निर्माताओं को यह बात समझनी ही होगी कि वे चाहे जितनी बड़ी आवासीय योजना बना लें पर उसमें कहीं न कहीं से उन्हें मानवीयता का समावेश अवश्य ही करना होगा क्योंकि जो लोग इन मंहगे स्थलों में रहते हैं उनको भी काम करने वालों की बहुत आवश्यकता होती है ऐसे में पूरी आवासीय योजना में कुछ ऐसे रैन बसेरे या कुछ और व्यवस्था भी होनी चाहिए जो क्षेत्र के निवासियों के निवेदन पर इस तरह के लोगों को उपलब्ध करायी जा सके.
      मौसम से बचने के लिए सरकारी और नगर निगम के स्तर पर जो कुछ भी किया जाता है वह किसी भी स्तर पर प्रभावी साबित नहीं हो पाता है क्योंकि शहरों में इस तरह से किये गए सभी प्रयास अधूरे ही रह जाते हैं और यह सुविधा केवल मुख्य चौराहों या प्रभाव शाली लोगों के दरवाज़ों तक ही ठिठक कर रुक जाती है. ऐसे में इन उपायों को ठण्ड से ठिठुर रहे लोगो तक पहुँचाना भी बड़ी चुनौती होती है. सबसे बड़ी समस्या जो सामने आती है कि किसी व्यक्ति के ठण्ड से मर जाने पर प्रशासन अपनी कमज़ोरियों पर पर्दा डालने के लिए उसे सामान्य मौत बताने की हर संभव कोशिश करता है क्योंकि सरकारी स्तर पर किसी के ठण्ड से मरने को प्रशासन की लापरवाही माना जाता है. इस कारण से भी जिन लोगों की मौत ठण्ड से हो जाती है उन तक सरकारी सहायता भी पंहुचाना भी सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें किसी भी तरह से भेद भाव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जिसकी मौत सर्दी से हो गयी है उसके परिवार के लिए आगे कमाने वाले की कमी हो जाती है जिससे इस सरकारी सहायता से ही निपटा जा सकता है पर कर्मचारियों और अधिकारियों में मानवता की इतनी कमी देखकर यह लगता ही नहीं है कि इनमें कहीं से मानवीय मूल्य बचे भी हैं ? सरकार को भी इस मसले पर संवेदन शील होना चाहिए न कि कर्मचारियों और अधिकारियों पर इतना दबाव हो कि वे सही बात को भी स्वीकारने में झिझकने लगें ? कुल मिलकर इस समस्या को मानवीय चेहरे की आवश्यकता है जिसे दे पाने में अभी तक सभी लोग असफल ही दिखाई देते हैं.        
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