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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी )

                 केंद्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से जनता तक जाने वाली सब्सिडी को जिस तरह से सीधे जनता तक पहुँचाने की महत्वकांक्षी प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी ) योजना बनायीं गयी और उसे १ जनवरी १३ से शुरू करने के बारे में सोचा गया वह कहीं न कहीं से उन भ्रष्टाचारियों पर तगड़ी चोट है जो हर स्थान पर पहुँच कर किसी भी परिस्थिति में कैसे भी किसी भी सरकारी योजना के धन को लाभार्थी तक पहुँचने से पहले ही हड़पने की जुगत में रहा करते हैं. राज्य सरकारों द्वारा केंद्रीय योजनाओं को हलके में लेने के कारण ही अभी तक आधार संख्या का आवंटन बहुत कम लोगों को ही हो पाया है ऐसे में इस आधार संख्या के आधार पर चलाये जाने वाली इस योजना को आख़िर किस तरह से पूरे देश में लागू किया जायेगा यह एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आने वाला है ? देश के संसाधनों और विकास के साथ जब भी वंचितों या किसी भी योजना के सही पात्रों के चयन की बात आती है तो वहीं पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करने की संभावनाएं रहा करती हैं और जिस तरह से महत्वपूर्ण परियोजनाएं भी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता की भेंट चढ़ जाया करती हैं उस स्थति में किसी के लिए कुछ कर पाना कितना मुश्किल हो जाता है ?
                           आज भी देश में सामाजिक लाभ और विकास जैसे मुद्दों पर भी राजनैतिक दलों में इतनी मतभिन्नता है कि कोई भी अच्छा काम भी समय रहते शुरू तो हो सकता है पर उसको आने वाली सरकार चलाना भी चाहेगी यही सबसे बड़ा प्रश्न हुआ करता है. क्या अब इस बात की आवश्यकता नहीं है कि देश के उपलब्ध संसाधनों और विकास की गति को देखते हुए कम विकसित क्षेत्रों के लिए विकास योजनाओं को अभियान और चरण बद्ध तरीके से लेना चाहिए और साथ ही आज विकास के पैमाने पर खरे उतरे क्षेत्रों में विकास के वो आयाम प्राप्त करने का लक्ष्य रखा जाना चाहिए जिसके दम पर पूरे देश में आने वाले समय में विकास की गति बनी रहे. देश के वंचितों तक सरकारी सहायता पहुंचे इस बात से किसी को भी परेशानी नहीं है पर अब जनता को इस बात से अधिक परेशानी है कि भले ही कम धनराशि उपलब्ध हो पर जो भी धन मिले वह पूरा का पूरा सही जगह तक पहुंचा जाये जिससे योजना के असली उद्देश्य को पाने में कोई समस्या न उत्पन्न हो. डीबीटी से जुड़ी सबसे ख़ास बात यही है कि इसमें किसी भी बीच में काम करने वाले के लिए कोई स्थान नहीं होगा और यह योजना सीधे सरकार और लाभार्थियों के बीच में ही रहेगी.
                         जिन राज्यों ने इस योजना को लागू करने में तेज़ी दिखाई है निश्चित तौर पर वहां की सरकारों को आने वाले चुनावों में इसका लाभ भी मिल सकता है पर केवल चुनावी लाभ के लिए ही देश के संसाधनों को ठीक तरह से उपयोग करने की नियति से अब छुटकारा पाना ही होगा क्योंकि किसी भी परिस्थिति में अब जनता आने वाले समय में इतनी अनभिज्ञ नहीं रह जाएगी कि नेता अपने किसी भी हित के लिए उसका मनचाहा दुरूपयोग कर सकें ? उस स्थिति में जब आर्थिक मामलों में देश के संसाधनों को सही तरह से इस्तेमाल किया जाने लगेगा तो पूरे देश की आर्थिक स्थिति में धीरे धीरे परिवर्तन दिखाई देने ही लगेगा. केवल मनरेगा के माध्यम से ही जिस तरह से मानव श्रम शक्ति के अँधाधुंध पलायन को रोकने में काफी हद तक सहायता मिली है वह एक उदाहरण मात्र है और जब देश के उन लोगों तक विकास की सही बयार पहुंचेगी जिन्हें इसकी ज़रुरत है तो वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद आने वाले समय में देश एक आर्थिक स्वरुप में अपना योगदान देने की स्थिति में पहुँच जायेंगें. जब पूरे देश में आर्थिक असमानता को पाटने में हम सफल होने लगेंगें तो आज के वंचित कल देश में उपलब्ध अन्य उपभोक्ता सामग्रियों को खरीदने में सक्षम हो सकेंगें जिससे देश में आर्थिक विकास की गति जो अभी तक केवल शहरों के माध्यम से ही आगे बढ़ रही है भविष्य में गांवों के योगदान से तेज़ी से आगे बढ़ सकेगी.             
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