मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 2 जनवरी 2013

सामाजिक कमी या खुलापन ?

                                       दिल्ली में नए साल की पार्टी मनाने के लिए अपने दोस्तों के साथ गयी एक कक्षा ११ की लड़की ने दो विवाहित और अच्छी नौकरियों में लगे हुए युवकों पर जिस तरह से रेप का आरोप लगाया है उससे कहीं न कहीं इस बात पर विचार करना बहुत आवश्यक हो गया है कि हमारा समाज अब किस दिशा में जा रहा है ? इस मामले में सोशल मीडिया के द्वारा संपर्क में आई इस लड़की को दोनों युवकों द्वारा नए साल की पार्टी मनाने के लिए बुलाया गया और लड़की के अनुसार उसे कोल्ड ड्रिंक में कुछ दिया गया उसके बाद उसके साथ एक फ्लैट में ले जाकर घृणित काम किया गया. पुलिस ने लड़की की शिकायत पर तेज़ी दिखाते हुए उन दोनों युवकों को रात में ही उनके घरों से हिरासत में ले लिया और मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उन पर केस दर्ज कर लिया है. देखने सुनने में तो यह सब बहुत कुछ आम सा ही लगता है पर जब देश में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर इतना आक्रोश है तो पूरे मामले की तह तक जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि केवल किसी एक पहलू के माध्यम से पूरे केस को ठीक तरह से नहीं समझा जा सकता है ? आज समाज किस दिशा में जा रहा है यह भी सभी के लिए चिंता की बात के साथ कुछ ठोस कदम उठाने की ज़रुरत की भी है.
                             आज जब अभी पिछले मामले को लेकर पूरा देश सकते में है तो ऐसे में जब पूरे पुरुष समाज पर ही संशय मंडरा रहा है तो किसी भी महिला या लड़की को बिना किसी अन्य को साथ लिए इस तरह से किसी से भी मिलने में परहेज़ करना ही चाहिए क्योंकि किसी भी तरह से जब समाज में इतनी गंदगी भरी पड़ी है तो थोड़ी सी सावधानी उठाकर ही चलने में सभी का हित है. जब विश्वास और रिश्तों तक की डोर तार तार होती नज़र आ रही है तो फिर किसी पर भी भरोसा करने की मानसिकता से अब हमें बाहर आना ही होगा क्योंकि अधिकतर मामलों में जान पहचान वालों से ही इस तरह की हरक़तों का ख़तरा अधिक हुआ करता है और केवल विश्वास करने से कोई भी बहुत बड़ी मुसीबत में फँस सकता है. हर बात की ज़िम्मेदारी पुलिस पर डालकर समाज अपने को बचा नहीं सकता है क्योंकि कहीं न कहीं से यह सब हमारी ही कमी है कि हम अपने घरों में वह संस्कारी माहौल ही नहीं बना पाते हैं जिसके पूरे समाज को बहुत आवश्यकता है जो केवल नारी के सम्मान की बात करने के स्थान पर दिल से उसका सम्मान करने की हिम्मत भी दिखा सके ? जिसका चेहरा केवल एक ही हो और वह अपनी ज़रूरतों के हिसाब से इंसान और राक्षस में न बदल जाता हो ?
                          शिक्षा, नौकरी और अन्य कामों से लड़कियों और महिलाओं को घरों से देर तक बाहर रहना ही पड़ता है ऐसे में खुद महिलाओं और लड़कियों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि किसी भी तरह से वे किसी ऐसे व्यक्ति के चंगुल में न उलझ जाएँ जो उनका किसी तरह से भी शोषण कर सकता हो ? आज इस घटना के बाद लोग लड़कियों और महिलाओं पर भी उँगलियाँ उठाने से नहीं चूकने वाले हैं क्योंकि उन्हें यह लगता है कि इस तरह के मामलों में जान बूझकर कुछ अनैतिक किया जाता है और शर्तें पूरी न होने पर इस तरह के केस दर्ज करवा दिए जाते हैं ? हो सकता है कि समाज में किसी स्तर पर यह सब भी चल रहा हो पर इसके पीछे पुरुष मानसिकता को छिपाया नहीं जा सकता क्योंकि सड़क चलते बहुत सारे लोग ऐसी लड़कियों पर भी डोरे डालने की कोशिशें करते हैं जो उनकी बेटियों की उम्र की होती हैं फिर इसके लिए किसी लड़की को कैसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है जबकि पूरा मामला केवल विकृत पुरुष मानसिकता से ही जुड़ा हुआ है ? सबसे पहले इस तरह की घटनाओं को रोकने की शुरुवात हमें अपने घरों के माहौल को सुधारने के साथ करनी चाहिए यदि हम अपने परिवार को सुधार सके तो समज कि एक छोटी इकाई तो सुधर ही जाएगी और इस तरह के छोटे छोटे बदलाव पूरे समाज की मानसिकता में बदलाव की तरफ़ भी जा सकते हैं.     
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