मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 19 जनवरी 2013

साम्प्रदायिकता की राजनीति

                              आंध्र प्रदेश में अचानक ही एमआईएम के नेताओं के सुर बदलते ही जा रहे हैं उसके पीछे छिपे उनके स्वार्थों की अनदेखी करने से देश में आने वाले समय में सांप्रदायिक आधार पर चुनावों में लाभ लेने की कोशिशें शुरू हो सकती हैं. जिस तरह से एक के बाद एक उसके नेता वहां पर कुछ भी कहने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं उसके बाद अब कौन से ऐसे उपाय रह जाते हैं जिन पर अमल करके सब कुछ ठीक किया जा सकता है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि केवल मुसलमानों पर आधारित राजनीति करने वाले इस दल को ऐसा महसूस होने लगा है कि तेलंगाना के मुद्दे पर उनकी राजनीति कमज़ोर पड़ती जा रही है इसलिए ही वे कुछ इस तरह के बयान देकर ऐसी हरक़तें करना चाहते हैं जिनसे पूरे मुस्लिम समाज में उनकी पैठ एक बार फिर से बन सके और वे अपनी राजनीति को उसी तरह से चलाने में सफल हो सकें. एमआईएम के एक और विधायक अहमद पाशा क़ादरी ने जिस तरह से देश के इतिहास से मिली धरोहरों के बारे में सांप्रदायिक सवाल उठाकर अपनी सोच को प्रदर्शित किया है वह निश्चित तौर पर इस पार्टी की मुसलमानों को लामबंद करने की एक और कोशिश ही है और जिसमें काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिलने वाली है. इस पूरे प्रकरण से आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा लाभ में भाजपा ही रहने वाली है क्योंकि किसी भी धार्मिक मुद्दे पर वह प्रखर होकर अपनी बात सबके सामने करती है.
                  आंध्र प्रदेश की विधान सभा में गाँधी जी की मूर्ति पर सवाल उठाकर जिस तरह से क़ादरी ने अपनी सोच को ही प्रदर्शित किया है क्योंकि जब वे विधायक बने थे तो उन्हें भारतीय संविधान से मिलने वाली सुविधाओं को भोग लेनें की इच्छा के कारण यह सब ठीक लग रहा था पर अब वे आज के समय में पुरातात्विक महत्व की इन इमारतों के बारे में यह सवाल पूछ रहे हैं कि देश को हिन्दुओं ने दिया क्या है तो वे इतिहास की पूरी तरह से अनदेखी ही कर रहे हैं ? इस देश और हिन्दुओं ने उन्हें जो कुछ भी दिया है उसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि वे बिना सोचे समझे कुछ भी बोलने से परहेज़ नहीं करते हैं किसी इस्लामी देश में वहां की हुकूमत के ख़िलाफ बोलने वालों का क्या हश्र होता है यह तो वे बखूबी जानते ही हैं ? देश तो उन्हें जो कुछ भी दे सकता था वह उसने दे दिया पर शायद उनके पास देश को देने के लिए इस नफ़रत के अलावा क्या और कुछ नहीं बचा है जो वे अब इस तरह की बातें कर रहे हैं ? देश का इस्लाम के उदय के पहले का हजारों सालों का इतिहास रहा है और इतिहास में यह भी दर्ज़ है कि समय समय पर विभिन्न देशों से आये हुए हमलावरों ने यहाँ की सभ्यता और संस्कृति के हर चिन्ह को मिटाने का भरपूर प्रयास किया था ? भले ही दिखाई देने वाली इमारतें आज भारत में न हों पर इंसानियत के लिए जो जज्बा आज भी आम हिंदुस्तानी के दिल में बसता है वह क्या पाशा को अपनी छोटी सोच के कारण दिखाई नहीं दे रहा है ?
                     आज जब देश में कहीं से भी इस तरह के सांप्रदायिक तनाव की बातें सामने नहीं आ रही है तो पाशा जैसे लोगों आख़िर माहौल में इस तरह का तनाव फ़ैलाने की कोशिशों में क्यों लगे हुए हैं कहीं ऐसा तो नहीं है कि कहीं से एमआईएम तेलंगाना के पक्ष में न हो और वह पूरे माहौल को दूसरा रंग देकर ही अपने किसी छिपे हुए एजेंडे को लागू करवाने में लगी हुई है ऐसी स्थिति में पहले से ही संवेदनशील तेलंगाना में एक और नयी तरह का विवाद सामने आ सकता है. जिस तरह से जेल जाते ही ओवैसी के सुर बदल गए और वे अपनी उन बातों से भी इनकार करने लगे हैं जो खुले तौर पर उन्होंने कही थीं उससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि इस दल का एजेंडा केवल सनसनी फैलाकर मुसलमान वोटों पर कब्ज़ा करना ही है क्योंकि धार्मिक आधार पर वोट मांगने के बाद इन लोगों ने कहीं से भी मुसलमानों के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे वे हमेशा ही इनके पीछे ही खड़े रहें. आज के समय में भारत सरकार की इतनी योजनाएं है कि कोई भी नेता और दल चाहे तो उनका लाभ ज़मीनी स्तर तक पहुंचा कर अपने लिए मज़बूत राजनैतिक पृष्ठभूमि तैयार कर सकता है पर किसी धार्मिक सनसनी के द्वारा हथियाए गए वोट आसानी से हाथ आ जाते हैं और उसमें किसी तरह की ज़िम्मेदारी भी नहीं होती है. यदि शिक्षित होने के बाद आम मुसलमान के दिल से नेताओं का बैठाया हुआ यह डर निकल गया तो फिर धर्म के आधार पर वोट मांग कर चलने वाली इनकी दुकानें ख़ुद बख़ुद ही बंद हो जाएंगीं इसलिए ये आज भी दिल से नहीं चाहते कि देश का मुसलमान तरक्की करे.         
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. कुछ लोग तो इस फोबिया से ग्रसित हो जायेंगे. यहां के लोग ही यहां के निवासियों को बर्बाद न कर दें कहीं.

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