मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राजनाथ और भाजपा

                             जिस तरह से भाजपा ने अपने निवर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी से किनारा कर पूर्व अध्यक्ष और तेज़ तर्रार नेता राजनाथ सिंह को एक बार फिर से पार्टी का अध्यक्ष नामित किया उससे यही लगता है कि भाजपा ने अगले चुनावों में कुछ वास्तव में दृढ़ता के साथ उतरने का मन बना लिया है. अभी तक जिस तरह से भाजपा कांग्रेस के खुद ही कमज़ोर होने का इंतजार कर रही थी उस परिस्थिति में उसने लाभ के वे अवसर गँवा ही दिए जिनसे उसे वास्तव में धरातल पर मजबूती मिल सकती थी. राजनाथ ज़मीन से जुड़े हुए नेता हैं और संघ का उन पर गहरा प्रभाव शुरू से ही है उस स्थिति में जब संघ का पूरा समर्थन उनके पक्ष में है तो भी वे यथार्थ को समझते हुए वास्तव में पार्टी को मज़बूत करने की कोशिश ही करने वाले हैं उन्होंने जिस तरह से यह कहा कि मैं अकेला करिश्मा नहीं कर सकता हूँ उससे उनकी सब को साथ लेकर चलने की मंशा और साफगोई का भी पता चलता है क्योंकि आज के समय में अधिकांश नेता केवल कहने के लिए कुछ भी बोल दिया करते हैं जिस पर बाद में कुछ कर पाने में बहुत कठिनाई होती है ऐसी स्थिति में यदि देश की मुख्य विपक्षी दल के नेता में यह स्वीकार करने शक्ति और साहस है तो यह देशके लोकतंत्र के लिए ही अच्छा संकेत है.
                          राजनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने गृह प्रदेश यूपी में पार्टी को मज़बूत करने की है क्योंकि आज भी जिस तरह से यहाँ पर सत्ता से दूर हुई भाजपा के पास कुछ भी नहीं है फिर भी यहाँ के नेता अपने को पता नहीं क्या समझते रहते हैं ? साथ ही हाल ही में पार्टी में वापस आए पर कमज़ोर पड़ चुके कल्याण सिंह के साथ सामंजस्य बनाये रखना भी उनके लिए बड़ी चुनौती साबित होने जा रहा है ऐसे में जब उन्हें प्रदेश के क्षत्रपों कलराज मिश्र और लालजी टंडन की महत्वकांक्षाएं भी ढोनी हैं तो वे पार्टी का किस स्तर तक भला कर पायेंगें यह भी देखने का विषय होगा. यह सही है कि राजनाथ में मुश्किल के समय कड़े फैसले लेने की क्षमता है यह नरेश अग्रवाल के द्वारा दबाव की राजनीति करने पर उन्होंने उनको अपनी सरकार से हटाकर साबित भी कर दिया था पर क्या पार्टी के समीकरण उन्हें वह सब करने की छूट दे पाएंगें जिनके माध्यम से वे पार्टी को सुधार सकते हैं ? हो सकता है कि यूपी में पार्टी को मज़बूत करने की उनकी कोशिशों में पार्टी के ही कुछ लोग सिर्फ इसलिए सक्रिय हो जाएँ कि यदि यहाँ पर पार्टी का ग्राफ राजनाथ के नेतृत्व में बढ़ता है तो वे आने वाले समय में प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हो सकते हैं ?
                           यदि आने वाले चुनावों में भाजपा को वास्तव में कुछ प्रगति करनी है तो उसे सरकार को संसद में सही तरह से घेरने के साथ ही सड़कों पर भी उसके खिलाफ माहौल बनाने की आवश्यकता पड़ने वाली है पर राजनाथ ने जिस तरह से शिंदे के मामले पर संसद को बाधित करने की बात पहले ही कह दी है उससे किसी भी सकारात्मक राजनीति की कोई गुंजाईश बचती ही नहीं है. आज के समय में जब देश में युवाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है तो उस स्थिति में किसी भी प्रकार से नकारत्मक राजनीति करने का उल्टा असर भी हो सकता है. किसी भी मसले को संसद के अन्दर प्रभावी ढंग से उठाने की अपनी शक्ति को दिखाने के स्थान पर भाजपा ने भी जिस तरह से छोटे दलों की तरह हंगामा करने को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है उससे कहीं न कहीं उसे ही नुकसान हो रहा है. उसे संसद में गंभीर मुद्दों पर सार्थक बहस के साथ सरकार को घेरने का काम करना चाहिए और सरकार के किसी भी क़दम से असहमत होने पर जनता को सड़कों पर जाकर अपना दम भी दिखाना चाहिए जिससे उनकी लोकतंत्र में पुरानी आस्था को बल मिल सके और वह देश में फिलहाल एक ज़िम्मेदार और प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभा सके. हंगामा करने में क्षेत्रीय दल जितने आगे हैं क्या भाजपा उनसे होड़ करना चाहेगी या फिर वह अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास कर सरकार को घेरने का काम भी करेगी अब यही सब बातें उनके लिए अगले चुनाव तक महत्वपूर्ण होने वाली हैं.        
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