मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

नेता और अनैतिकता

                       देश में जिस तरह से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ रही है उससे किसी लाभ या दबाव में महिलाओं का शारीरिक शोषण करने वालों के लिए अब ख़तरे की घंटी बज चुकी है. असोम में जिस तरह से महिला की मजबूरी का लाभ उठकर उसका शारीरिक शोषण करने वाले स्थानीय नेता को रँगे हाथों पकड़ कर पीटा गया और उसे पुलिस के हवाले भी किया गया वह समाज में फैलती जागरूकता और अपने हक़ के लिए उठ खड़े होने की दिशा में अच्छा कदम है. नेताओं द्वारा महिलाओं का शोषण इस तरह से बहुत समय से किया जाता रहा है यहाँ तक प्राचीन भारत के राजा भी अपने राज्यों में अपने हितों को साधने के लिए महिलाओं का दुरूपयोग किया करते थे. आज के समय में जब गरीबी से परेशान कोई मजबूर महिला किसी नेता या अधिकारी के यहाँ अपनी समस्या लेकर जाती है तो नीच मानसिक वाले कुछ नेता उसके शारीरिक शोषण पर उतर आते हैं जिससे आम तौर पर महिला को कोई सहयोग तो नहीं मिल उलटे उसके शोषण की सीमाए रोज़ ही टूटती रहती हैं ? ऐसे में जब तक समाज में ही जागरूकता नहीं आएगी तब तक किसी भी तरह स एइस समस्या से छुटकारा नहीं मिल पायेगा.
                   इस बारे में अब सामजिक स्तर पर जागरूकता की बहुत आवश्यकता है क्योंकि आम तौर पर आज काम पड़ने पर सभी नेताओं और अधिकारियों के पास ही जाते हैं पर जब इस तरह का शोषण शुरू कर दिया जाता है तो राजनीति के एक अन्य घिनौने स्वरुप की शुरुवात हो जाती है. समाज में हम सभी को जागरूक होकर अब अपने आस पास की घटनाओ पर नज़र रखनी ही होगी क्योंकि जब तक हमारी सतर्क निगाहें इस तरह की घटनाओं पर नहीं होंगीं तब तक कुछ भी सुधारा नहीं जा सकता है. जिन लोगों को वास्तव में किसी तरह की सरकारी सहायता की आवश्यकता है उनको अब हमें खुद ही चिन्हित करके सही जगह तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी तो उठानी ही होगी क्योंकि जब भी कोई मजबूर किसी के दरवाज़े पर जाता है तो अधिकतर लोग उसकी सहायता करने के स्थान पर उससे कुछ वसूलने की फिराक में ही रहा करते हैं जिससे बहुत सारे मामलों में शरीरिक शोषण भी किया जाता है और एक बार किसी को अपने चंगुल में उलझा लेने के बीद ये भेड़िये अपनी आवश्यकतानुसार महिलाओं का शोषण करते रहते हैं ?
                  समाज के पास आज इतनी व्यस्तता है कि वह अपने आस-पास क्या घट रहा है उसे देखना ही नहीं चाहता है और जब हमारी उदासीनता के कारण कुछ अनैतिक होने का हमें पता चल जाता है तो हम उस समय बहुत उद्वेलित होकर अतिवादी कदम उठाने से भी नहीं चूकते हैं ? क्या केवल इस तरह का क्षणिक उबाल हमारे समाज की दिशा बदलने की ताक़त रखता है ? क्या इसी तरह से कुछ अनैतिक पता चलने के बाद ही हमारा काम शुरू होना चाहिए आख़िर क्यों हम अपने आँख कान इतने खुले नहीं रख पाते हैं जिससे हमें वह भी ठीक तरह से दिखाई दे जो कई बार हम देखकर भी अनदेखा कर दिया करते हैं ? समाज में महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए अभी भी बहुत सारे कानून मौजूद हैं पर उनसे कितना कुछ हासिल किया जा रहा है यह विचारणीय हैं क्योंकि कानून के डर से क्या किया जाता है और क्या नहीं यह सभी जानते हैं क्यों हमारे में इतनी जागरूकता नहीं आ पा रही है कि हम अपने आस पास की सभी गतिविधियों पर खुद ही नज़र रखने की हिम्मत और इच्छा जगा सकें जिससे पूरे समाज में इस तरह भय और संशय का माहौल ख़त्म किया जा सके. नेताओं और अधिकारियों पर कड़ी नज़र रखकर हम ज़रूरतमंद महिलाओं को उनकी इन हरकतों से बचाने का काम भी कर सकते हैं.   
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