मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 5 जनवरी 2013

रेप और कानून

                              दिल्ली में राज्यों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक में जिस तरह से रेप के आरोपियों को मृत्युदंड दिए जाने की मांग पर कोई सहमति नहीं बन पाई उससे यही लगता है कि हमारे कानून में बहुत सारी ऐसी पेचीदगियां भरी पड़ी हैं अगर उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में रेप के किसी भी आरोपी को फाँसी तक नहीं पहुँचाया जा सकेगा ? देश में पहले से ही बहुत सारे कानून बने पड़े हैं जिनका आज के समय में कितना महत्त्व है यह कोई नहीं जनता है फिर भी जिस तरह से रोज़ ही नए कानूनों की मांग की जाती है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कोई तो कमी है इन कानूनों में जिसके कारण भी आज ये अपने दम पर कोई भय उत्पन्न नहीं कर पाते हैं ? रेप और महिलाओं और अन्य ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के बारे में हर तहसील मुख्यालय पर एक स्वतः संज्ञान वाली अस्थायी त्वरित कोर्ट होनी चाहिए जो इस तरह के अपराधों की दैनिक आधार पर सुनवाई करे तथा हर थाने में एक पुलिसकर्मी ऐसा होना चाहिए जिस पर महिलाओं, लड़कियों और विशेष कानून के तहत सामाजिक सुरक्षा पाए अनुसूचित जाति आदि वर्ग के लोगों को त्वरित न्याय दिलाने की ज़िम्मेदारी डाली जा सके.
                 अभी तक विशेष कानूनों के तहत समाज के कमज़ोर वर्गों को बहुत सारी कानूनी सुरक्षा प्रदान की गयी है पर जब भी उनके अनुपालन की बात आती है तो सबसे पहले पुलिस से ही आम लोगों को उलझना पड़ता है जिस कारण से भी न्याय में बहुत विलम्ब हो जाता है. ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए हमारे पास एक ऐसा त्वरित बल होना चाहिए जो पुलिस, प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारियों के समूह से बनाया जाये जो आवश्यकता पड़ने पर अन्य दैनिक कामों को छोड़कर इस तरह के केस पर पहले अपना निर्णय सुनाये. इस तरह की व्यवस्था किये जाने से जहाँ एक तरफ़ उन लोगों में कानून का कुछ भय उत्पन्न होगा जो इससे हमेशा ही खिलवाड़ करते रहते हैं और साथ ही पीड़ितों के मन में भी सही और त्वरित न्याय की आशा जग जाएगी. इस काम के लिए कोई अलग से कोर्ट बनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह विलक्षण केस होते हैं इसलिए इन पर तुरंत ध्यान देकर इनमें सजा सुनाने का प्रावधान होना चाहिए. सरकार के सभी तंत्र पहले से ही काम के बोझ से दबे हुए हैं ऐसे में उनका बोझ कम करने की ज़रुरत है.
                देश में सबस एपहले अन्य फालतू के कामों को छोड़कर पुलिस और प्रशासनिक कार्यों के साथ न्यायिक कार्यों में लगे विभागों को नियमित तौर पर भर्ती करने का काम करना चाहिए जिससे आने वाले समय में ये सभी विभाग आवश्यकता पड़ने पर तेज़ी से काम करते हुए दोषियों को सज़ा दिलवाने में मदद कर सकें. केवल दिल्ली और राज्यों की राजधानियों में बैठकर चिंतन करने से ज़मीनी हक़ीक़त नहीं बदलने वाली है इसलिए अब निचले स्तर से प्रयास शुरू करने की आवश्यकता है. आबादी के अनुसार इन विभागों में कर्मचारियों की तैनाती किये बिना किसी भी तरह से कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब ये सभी काम के बोझ से इतना दबे हुए हैं तो वे केवल प्रभावशाली लोगों के हितों के काम ही करते रहते हैं. इस तरह के महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले किसी भी अपराध में जो भी पुलिस कर्मी विवेचना कर रहा हो उसका तालमेल पूरी तरह से इन अधिकारियों के साथ होना चाहिए जिससे पूरी प्रक्रिया को समय रहते समाप्त किया जा सके. किसी भी रेप के केस में यह आवश्यक किया जाना चाहिए कि एक समय सीमा में उसको सुनवाई पूरी करके सजा दिलवाने का काम किया जाये. साथ ही यदि अन्य किसी तरह से सज़ा को कड़ा करने पर सहमति नहीं बन पाती है तो कम से कम आरोपी को वास्तव में आजीवन जेल में ही रहने दिया जाये.    
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. कितना भी हम लिख लें वर्तमान में हुए हादसे के बारे में

    मगर वाही ढाक के तीन पात ....यदि हम सभी (स्त्री-पुरुष दोनों)

    अपने आप में पहले झाँक कर देखें और सच्चे दिल से

    इससे उबर पाने के लिए दृढ प्रतिज्ञ हो जाएँ तो देखिये

    परिणाम .......मगर यहाँ तो दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले

    विभिन्न चेनलों में दिखाए जाने वाले फूहड़ कार्यक्रम

    में लोग व्यस्त हैं चाहे वह द्विअर्थी संवाद लिए कोमेडी सर्कस

    हो या आईटम सांग ......आखिर कौन है इन सब चीजों के

    लिए जिम्मेदार ...... जहां तक सजा का प्रश्न है; दूसरों की इज्जत

    आबरू लूटने वाले की भी इज्जत आबरू लूटने वाली सजा

    और जिन्दा रहते हुए भी मरने जैसी सजा इजाद होनी चाहिए ...

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