मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

चीन की मंशा

                                  भारत-चीन के बीच तीसरे दौर की रक्षा वार्ता में जिस तरह से चीन ने गर्मजोशी के साथ भारत से पुरानी बातों और विशेषकर १९६२ के युद्ध को भूलकर रक्षा समझौतों को आगे बढ़ाने की बातें की हैं उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य हो रहा है जिससे चीन भारत के सामने इस तरह के प्रस्ताव रख रहा है. चीन शुरू से ही एक ऐसा देश रहा है जो अपनी नीति और राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर कभी भी किसी तरह का कोई समझौता नहीं करता है. आज के बदलते वैश्विक परिदृश्य में आख़िर चीन को ऐसा क्या लग रहा है जिससे वह भारत के साथ अपने सैन्य और सीमा संबंधों को सुधारने की बातें करने लगा है ? यह सही है कि आज भारत उसका एक बहुत बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है और आने वाले समय में सीमा के तनाव के चलते चीन भारत से किसी भी तरह के नए विवाद खड़े नहीं करना चाहता है जिससे भी वह लगभग चार हज़ार किमी लम्बी वास्तविक सीमा सीमा प्रबंध समझौते को जल्दी से पूरा करने के लिए तैयार है जिसके बाद किसी भी परिस्थिति में भारतीय या चीनी सेना एक दूसरे पर परिस्थिति में गोलीबारी नहीं कर सकेंगीं ? चीन यह भी जानता है कि भारत अब १९६२ वाला देश नहीं रहा है और कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना ने जिस विषम परिस्थिति में भी अपने को बेहतर साबित किया उससे भी चीन भारत के साथ अब कोई अनावश्यक युद्ध करने का इच्छुक नहीं है.
              चीन अभी तक जिस तरह से विश्वास करने लायक देश नहीं रहा है उस इतिहास को देखते हुए इस तरह के किसी भी परिस्थिति में गोलीबारी न करने के समझौते से भारत के कोई हित सधते नहीं दिखाई देते हैं क्योंकि किसी ज़माने में पंचशील सिद्धांत की लम्बी चौड़ी बातें करने वाले चीन ने किस तरह से भारत के साथ युद्ध किया था वह अभी भी लोगों के मन में अंकित है. चीन यह भी जानता है कि भारत किसी भी समझौते का अनुपालन पूरी तरह से किया करता है और इस तरह के सीमा प्रबंध समझौते से चीन भारत की तरफ़ से निश्चिन्त होकर आने वाले समय में अपनी शक्ति को दूसरे क्षेत्रों में लगा सकता है और वह जब भी चाहे तो इस तरह के किसी भी समझौते का खुलेआम उल्लंघन करके फिर से हमला कर सकता है ? एक तरफ चीन भारत के साथ अपनी विवादित सीमा को सुरक्षित करना चाहता है वहीं दूसरी तरफ़ वह अपनी दीर्घकालिक विस्तारवादी नीतियों के चलते भारत को हिन्द महासागर में घेरने की पूरी कोशिशें जारी रखे हुए है. पाकिस्तान द्वारा ग्वादर बंदरगाह का नियंत्रण चीन को इसी नीति के तहत सौंपा गया है पर बलूचिस्तान की परिस्थितियों में चीन उसका कितना उपयोग कर पायेगा यह देखने का विषय होगा पर चीन की तरफ़ से अपनी कोशिशों में कोई कमी नहीं रखी जा रही है.
           यहाँ पर अब यह महत्वपूर्ण है कि भारत का इस तरह से चीन के पूरे रुख पर किस तरह का रवैया रहना चाहिए क्योंकि किसी भी युद्ध की स्थिति में अब चीन के पास नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में अपनी सेना को मजबूती से उतारने के लिए एक पूरी व्यवस्था है और उस स्थिति में सभी दिशाओं से आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए हमारे पास भी कारगर नीति होनी ही चाहिए क्योंकि बिना उसके अब भारत के दीर्घकालिक हित चीन का हाथों सुरक्षित नहीं रह पायेंगें ? भारत के पास आज सबसे बड़ी ताक़त उसका बाज़ार ही है अब सैन्य समझौतों और बाज़ार के बीच किये जाने वाले एक नीतिगत प्रयास से ही भारत को पूरी तरह से सुरक्षित किया जा सकता है पर हमारे नेता जिस तरह से किसी भी विपरीत परिस्थिति का लाभ उठाने से भी नहीं चूकते हैं उस स्थिति के कारण ही आज तक देश के पास चीन से निपटने के लिए कोई कारगर नीति है ही नहीं ? देश के भविष्य का मसला किसी पार्टी या दल से बहुत ऊपर होना चाहिए पर दुर्भाग्य से हम आज भी इन बेकार की बातों में उलझकर अपने को कमज़ोर ही साबित किया करते हैं. देश हित के मुद्दों पर भारत सरकार ( किसी दल विशेष की नहीं ) का क्या रुख होता है यह सभी को पता है अब हमें इस दौर से बाहर निकलकर दीर्घकालिक हितों पर विचार करके ही नयी नीतियों का निर्धारण करने की तरफ़ बढ़ना चाहिए.      
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