मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

फिर आतंक का साया

                                   एक लम्बे अन्तराल के बाद जिस तरह से एक बार फिर हैदराबाद में दो जगहों पर बम लगाकर किए गए विस्फोटों से आम नागरिक तो हताहत ही हुए हैं साथ ही बड़ा आर्थिक नुकसान भी हुआ है इससे यही पता चलता है कि देश आज भी सुरक्षा सम्बन्धी चिंताओं से मुक्ति नहीं पा सका है. पिछले कुछ समय से देश में जिस तरह से राजनैतिक घटनाक्रम घटा और काफ़ी लम्बे अन्तराल के बाद मौत की सजा पाए दो आतंकियों को फांसी दी गयी उसके बाद सुरक्षा एजेंसियों को इस तरह की आतंकी घटना का अंदेशा हो गया था और जिस तरह से घटना के बाद गृह मंत्री शिंदे ने भी स्पष्ट किया कि हमले किए जाने की जानकारी तो मिल रही थी पर उसके स्थान को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा था इसलिए सभी सम्बंधित राज्यों को चौकसी बढ़ाने के लिए कह दिया गया था. देश में यदि आतंकी हमले नहीं होते हैं तो उसके लिए सुरक्षा व्यवस्था का कोई रोल नहीं होता है क्योंकि आज के समय में लगभग पूरे देश में आतंकियों और खासकर पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों ने खाड़ी देशों में जाकर काम करने वाले भारतीयों के माध्यम से अपने स्लीपिंग सेल तैयार कर लिए हैं वह असली चिंता की बात है.
                                   इस्लामी आतंकी हर तरह से उस कोशिश में लगे रहते हैं जिसमें वे आज तक उतनी सफलता नहीं पा सके हैं कि किसी तरह से आम भारतीय मुसलमान के मन में वे अपने प्रति बड़ी सहानुभूति पैदा कर सकें क्योंकि अभी तक भारतीय सामजिक ताने बाने की तोड़ इन आतंकी संगठनों के पास नहीं आ पाई है फिर भी हर इस तरह की घटना से वे भारतीय जनमानस में भेद भाव पैदा करने की कोशिशें तो करते ही रहते हैं. जिस तरह से अभी तक किसी भी आतंकी संगठन ने इन हमलों की ज़िम्मेदारी भी नहीं ली है उससे भी यही लगता है कि पाक समर्थित आतंकी अंतर्राष्ट्रीय दबाव को मानते हुए यह काम करके खुद को अलग भी दिखाना चाहते हैं और यह भी साबित करना चाहते हैं कि भारत के लोगों ने ही यह धमाके किए हैं. इस पूरे मसले को सामजिक और सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से भी समझने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक इसके दूरगामी परिणामों पर विचार नहीं किया जायेगा तब तक सुरक्षा परिदृश्य को सुधारने में पूरी तरह से सफलता नहीं मिलने वाली है.
                                  भारतीय जनमानस भी जिस तरह से इस तरह की किसी भी घटना पर एक दम से आक्रामक हो जाता है और फिर कुछ समय बाद इसे भूल भी जाता है आज देश के लिए यह भी बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि देश की बड़ी आबादी को देखते हुए पुलिस कर्मियों की जो संख्या निर्धारित की गयी है हम उसमें किसी भी मानक को पूरा नहीं कर पाते है तो ऐसी स्थिति में सारी ज़िम्मेदारी सरकार पर डालने के स्थान पर हमें खुद भी सतर्क होकर जीना सीखना चाहिए. सामजिक पुलिसिंग को कानूनी स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे पूरे देश में सुरक्षा परिदृश्य सुधारा जा सके क्योंकि जब तक आम लोग अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित नहीं होंगें तब तक उनकी सुरक्षा केवल पुलिस के भरोसे नहीं की जा सकेगी. हमें अपने आस पास की संदिग्ध गतिविधियों और व्यक्तियों पर नज़र रखनी ही होगी और ऐसी किसी भी सूचना को पुलिस से साझा करने की आदत भी बनानी होगी. सरकार को भी इस तरह की सूचना देने वालों के नाम गोपनीय रखने के लिए एक नीति बनानी पड़ेगी जससे आम नागरिक भी देश की सुरक्षा चिंताओं में शामिल हो सके. साथ ही ऐसी किसी भी घिनौनी घटना पर किसी भी नेता या राजनैतिक दल को किसी भी तरह की घटिया राजनीति करने से भी बचने की कोशिश भी करनी चाहिए.          
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. जब खुद करने लगेंगे तो फिर यही नेता-पुलिस बुक कर देंगे ऐसा करने वालों को.

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