मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

अन्तरिक्ष में बढ़ता भारत

                               श्री हरिकोटा के सतीश धवन अन्तरिक्ष केंद्र से सोमवार को भारत ने अपने २३ वें सफल प्रक्षेपण के साथ ही इसरो और भारत ने अन्तरिक्ष विज्ञान में अपनी मज़बूत पकड़ को और भी आगे बढ़ाने का काम किया है. पीएसएलवी यान द्वारा इस तरह से अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत ने लगातार सुधार कर जिस तरह से आगे बढ़ने में सफलता पाई है वह अपने आप में भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि १९९८ के परमाणु परीक्षणों के बाद जिस तरह से देश को अन्य देशों से मिलने वाली नई तकनीक पर रोक लग गयी थी उस विपरीत परिस्थिति में भी इसरो ने अपने संसाधनों के बल पर ही लगातार आगे बढ़ना जारी रखा है. इस प्रक्षेपण का देश के लिए क्या महत्व था यह इसी बात से पता चलता है कि उस समय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी वहां पर वैज्ञानिकों का उत्साहवर्धन करने के लिए उपस्थित थे. भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस तरह से अपने दम पर देश में अन्तरिक्ष विज्ञान को निरन्तर आगे बढ़ाने का काम किया है वैसी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती है क्योंकि आज यह क्षेत्र तेज़ी से विकसित होता जा रहा है और इससे भारतीय मेधा की कीर्ति पूरी दुनिया में बढ़ती है.
            इस प्रक्षेपण में समुद्र विज्ञान के अध्ययन से जुड़े महत्वपूर्ण उपग्रह 'सरल' के साथ ही अन्य ६ सूक्ष्म उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया गया है जो इस क्षेत्र में भारतीय तकनीक की आधुनिकता को प्रदर्शित करता है क्योंकि आज जब दुनिया के हर देश को अपनी विभिन्न तरह की सामान्य प्रक्रिया को चलाने के लिए भी अन्तरिक्ष में स्थापित उपग्रहों पर निर्भर रहना पड़ता है तो उस परिस्थिति में कोई भी देश कम खर्च पर ही अपने उपग्रह को प्रक्षेपित कराना चाहेगा. इस क्षेत्र में अब जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने अपनी विश्वसनीयता बना ली है कि उसके उपग्रहों द्वारा छोड़े जाने वाले उपग्रह कम क़ीमत में ही प्रक्षेपित किए जा सकते हैं तो उसके बाद से ही अन्य देशों की निगाहें भी अब भारत की इस उपलब्धि पर टिक गयी हैं. अब इस स्थिति का लाभ उठाने के बारे में भारत सरकार और इसरो को एक समय बद्ध प्रक्रिया अपनानी ही होगी क्योंकि यदि आने वाले समय में इसरो इसी तरह से अपने उपग्रहों के साथ अन्य देशों के उपग्रहों को भी प्रक्षेपित करने में सफल हो सकेगा तो उसका खर्च भी निकलता रहेगा और आने वाले समय में वह विश्व के लिए एक सस्ता, विश्वसनीय और वैकल्पिक स्वरुप भी दे सकेगा.
                                   भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस तरह से इस पूरी प्रक्रिया को करने में अब लगभग महारत ही हासिल कर ली है वह आने वाले समय में अन्तरिक्ष विज्ञान के साथ रक्षा के क्षेत्र में भी देश के लिए बहुत कुछ कर सकने में सक्षम होने वाला है क्योंकि जब हमारे पास इस तरह के आधुनिक श्रेणी के राकेट उपलब्ध होंगें तो उनमें रक्षा आवश्यकतों के अनुसार परिवर्तन करने के बारे में भी सोचा जा सकता है. आज जब पूरे विश्व में आधुनिक रक्षा उपकरणों की मांग भी बढ़ रही है तो उसमें इसरो के साथ मिलकर रक्षा संगठन भी देश के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं. अब इसरो को जिस भी तरह की सहायता की आवश्यकता हो उसे पूरा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है क्योंकि देश में अपने दम पर आगे बढ़ते हुए इस संगठन से आने वाले समय में देश को बहुत प्रसिद्धि मिल सकती है और विकास शील देशों के लिए एक कम खर्च में उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला पूरा तंत्र भी भारत में विकसित हो सकता है. इससे जहाँ भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान को बहुत आगे जाने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी तरफ़ इसके बढ़ते हुए क़दमों से नई पीढ़ी के लोगों में अन्तरिक्ष विज्ञान की तरफ़ सोचने के अवसर भी बनते जाएंगें.     
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