मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

नाबालिग या बालिग ?

            दिल्ली की जघन्य घटना के मुख्य आरोपी की उम्र को लेकर जिस तरह से विवाद बढ़ता ही जा रहा है और समाज में उसके ख़िलाफ़ जो आक्रोश बढ़ रहा है उसे देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस विषय को संज्ञान में लिए जाने से मामले के सुलझने के आसार बन गए हैं क्योंकि अभी तक के प्रावधानों के अनुसार जेजे बोर्ड द्वारा की गयी सिफारिशों के आधार पर ही बाल अपराधी की उम्र का निर्धारण करके मुक़दमा चलने की कानूनी प्रक्रिया बनी हुई है पर उक्त घटना में जिस तरह से इसी कथित नाबालिग ने जिस तरह से दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी उससे उनको किसी भी कानून के तहत किसी भी तरह की छूट दिए जाने का क्या मतलब बनता है ? जेजे एक्ट के तहत १८ वर्ष तक के युवा को नाबालिग माना गया है पर जिस तरह से आज समाज में बदलाव आ रहा है और विकृत मानसिकता अपना रूप दिखाने लगी है उस स्थिति में इस तरह के कानूनों से किसी भी अपराधी को संरक्षण दिए जाने को सभ्य समाज में स्वीकार नहीं जा सकता है. अंग्रेज़ों के समय बनाये गए इन कानूनों में अब वास्तव में बदलाव की वजह दिखाई देने लगी है और अच्छा ही हुआ है इस मसले पर नाबालिग की परिभाषा को निर्धारित करने का काम सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के माध्यम से करने का निर्णय ले लिया है.
                   किसी नाबालिग की संलिप्तता से उसके अपराध को कम करके नहीं आँका जा सकता है क्योंकि इसी कथित नाबालिग दरिन्दे ने उस लड़की के साथ सबसे अधिक अमानवीय व्यवहार किया था तो इस स्थिति में इसके कृत्यों को केवल नाबालिग मान कर अन्य लोगों को इस कृत्य का दोषी कैसे माना जा सकता है ? हो सकता है कि यदि इसी ने इतनी दरिंदगी न की होती तो केवल रेप की शिकार वो लड़की भले ही मानसिक रूप से खुद को कमज़ोर महसूस करती पर उसके बचने की संभावनाएं तो थीं पर जिस व्यक्ति के कारण अन्य लोगों पर बलात्कार के बाद हत्या का मुक़दमा चलाया जायेगा उसको अपराधी की श्रेणी से बाहर कर केवल अन्य लोगों को हत्या का आरोपी कैसे माना जा सकता है क्योंकि इस बात का निर्धारण कौन सा नियम करेगा की उसकी मौत रेप से हुई या उसके साथ की गयी दरिंदगी से ? क्या ये अन्य आरोपी अपने ऊपर लगे हुए इन आरोपों का बचाव करने की स्थिति में नहीं आ जायेंगे और कहीं से उन्हें इसी मुद्दे पर बचाने का कोई दांव नहीं निकल आयेगा जो नाबालिग पर अपराध के बाद हुई मृत्यु का आरोप लगाकर इन आरोपियों को केवल बलात्कार का ही दोषी साबित कर दे ?
                     किसी भी बाल अपराधी को इस तरह के जघन्यतम अपराध करने के बाद किस तरह से बाल अपराधी माना जा सकता है जब उसका अपराध अन्य बालिगों से भी अधिक बड़ा है ? इसलिए इस मसले को कोर्ट द्वारा मानवीयता के आधार पर सुना जाना चाहिए और भले ही देश का कानून उसे किसी भी तरह का संरक्षण उसकी आयु के कारण प्रदान करता हो पर उस जैसी मानसिकता के बच्चे का समाज में खुला आम घूमना भी अपने आप में पूरे न्याय तंत्र और समाज की विफलता को ही प्रदर्शित करेगा. दुर्लभतम मामलों में कोर्ट के पास इस तरह के अधिकार पहले से कानून द्वारा दिए गए हैं तो इस मसले में उसकी उम्र का बहाना बनाकर उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए क्योंकि आईपीसी की धारा ८२ के तहत वह १२ साल से ऊपर हो चुका है जिस उम्र में उसे कोई सज़ा नहीं दी जा सकती है और धारा ८३ के तहत यह अधिकार न्यायाधीश पर छोड़ दिया गया है कि वह उसके कृत्य के लिए अपने विवेक के अनुसार विचार करके या सुनिश्चित करे कि वह नाबालिग अपने कृत्य के दुष्परिणामों पर विचार कर सकने लायक है या नहीं और उसे उसके अनुसार ही सज़ा दे सके. इसलिए इस मामले में यह कथित नाबालिग किसी भी कानून के तहत किसी रियायत को नहीं पा सकता है यदि न्यायाधीश द्वारा उस पर भी केस चलाने का निर्णय लिया जाये.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. इस तरह के अपराधियों पर तो व्यस्कों वाले प्रावधान ही लागू होना चाहिये.

    जवाब देंहटाएं