मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

बदलता समाज और बड़े होते बच्चे

                              यूपी के भदोही जिले के गोपीगंज थाना क्षेत्र में जिस तरह से १० से १३ साल के तीन बच्चों ने आठ साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार किया उसके बाद अब हम सभी के लिए यह विचार करने की ज़रुरत है कि क्या हम अपने बच्चों को जल्दी बड़ा होते देखने के बाद अब भी देश के पुराने पड़ चुके नाबालिग कानून को बदलना नहीं चाहते हैं ? दिल्ली दुष्कर्म में शामिल के आरोपी के नाबालिग होने के बाद उसके घृणित कृत्यों पर उसे सज़ा सिर्फ़ इसलिए ही नहीं दी जा सकती क्योंकि देश का कानून १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नाबालिग मानता है और उन्हें बाल सुधार गृह में भेजकर अपनी तसल्ली करना चाहता है. भदोही की इस घटना के बाद क्या अब हम सबके सामने यह प्रश्न एक बार फिर से नहीं आ गया है कि मौजूदा परिस्थितयों के चलते हम एक बार फिर से अपने उन पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त कर आज के समय के अनुसार नए और कठोर कानून बनाएं क्योंकि केवल आयु का सहारा लेकर इस तरह से अपने को बचा लेने की जुगत जान जाने के बाद कोई भी नाबालिग इसी तरह की हरक़त कर सकता है ?
                                     देश में जब एक तरफ बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा पर इतना हल्ला मचाया जा रहा है और केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारें इस तरह के उपाय करने में लगी हुई हैं कि किसी भी तरह से इन समाज में इस तरह का भय उत्पन्न किया जाए जिससे महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों में कमी आ सके और पूरी तरह से समाज में इस बात पर स्वीकार्यता हो सके कि हम इनकी सुरक्षा कर पाने में पूरी तरह से सक्षम हैं. दिल्ली मामले में जिस तरह से कानूनी दांव पेंचों के कारण ही सबसे बड़े आरोपी को उसके कर्मों की सज़ा नहीं दी जा सकती है तो इसके लिए हम सभी पूरे समाज के लोग ही ज़िम्मेदार हैं क्योंकि अब हमे यह समझना ही होगा कि पूरी दुनिया में जो बदलाव दिखाई दे रहा है आज सूचना क्रांति के इस युग में हमारे बच्चे उससे अछूते कैसे रह सकते हैं हम अन्य सभी बातों में जब पूरी दुनिया के साथ चलने में ख़ुशी महसूस करते हैं तो उससे हमारे समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से निपटने के लिए भी हमें समय रहते ही उपाय करने की तरफ सोचना ही होगा.
                                  पूरे देश में ही जब बच्चों के जल्दी ही बड़े होने की और बड़ों की तरह से अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो उसे रोकने के लिए सामाजिक और कानूनी उपायों पर विचार किए जाने की भी बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब तक हम अपने समाज के मूल्यों के अनुसार बच्चों को शिक्षित और जागरूक नहीं कर पायेंगें तब तक केवल कहने भर से ही किस तरह से समाज सुरक्षित हो सकता है ? समाज में नैतिक शिक्षा की जिस स्तर पर आवश्यकता है आज वह केवल रोज़गार परक शिक्षा में कहीं से दबकर ही रह गयी है जिस कारण से भी हमारे समाज में बच्चों पर इस तरह का कुप्रभाव पड़ रहा है. आज के बदलते परिवेश में अब हम सभी की यह नैतिक ज़िम्मेदारी बन जाती है कि हम अपने समाज में बच्चों को इस तरह के कुप्रभावों से बचाकर रखने के लिए उन्हें घर से ही शिक्षा देना शुरू करें क्योंकि जब तक घरों की छोटी सामाजिक इकाइयों से इसकी शुरुआत नहीं की जाएगी तब तक पूरे समाज में इस तरह का बदलाव कैसे किया जा सकेगा. केवल सरकारी कानून और दबाव से कुछ हद तक समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है पर हमें अपनी स्थिति को सुधारने के लिए अभी से कुछ ठोस प्रयास करने शुरू करने ही होगें. 
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