मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 2 मार्च 2013

बजट प्रस्ताव और हम

                            संप्रग-२ के अंतिम पूर्ण बजट पर जिस तरह से आम लोगों और उद्योग जगत ने किसी भी तरह की बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई है उससे यही लगता है कि इस बार का बजट केवल सनसनी फ़ैलाने और लोकप्रियता बटोरने के जुगाड़ के स्थान पर वास्तव में देश की सेहत को ध्यान में रखकर बनाया गया है. देश के बजट में यदि दूरगामी परिणाम देने वाले प्रावधानों कि जोड़ा जाता रहे तो उससे हमें एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के मार्ग पर चलने में सफलता ही मिलेगी. हमारे देश में शुरू से ही इस तरह की आदत रही है कि हर वर्ग हर बजट में हर बार हर वित्त मंत्री से कुछ रियायतों की उम्मीदें पाले रहता है जिसे हर बार सभी के लिए पूरा कर पाना किसी भी मंत्री के लिए आज तक संभव नहीं हो पाया है इसलिए जब बजट में केवल देश की आर्थिक सेहत को सुधारने की बातें ही की जाती हैं तो आम लोगों को यही लगता है कि उनके लिए इस बार के बजट में कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है या फिर उनका किसी भी तरह से ध्यान ही नहीं रखा गया है. आज के बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में जिस से हमारे देश को भी उसके साथ चलने की ज़रुरत है उससे कोई भी मुंह नहीं मोड़ सकता है.
              अभी तक देश में हर बजट के बाद एक तरह की प्रतिक्रियाएं ही सामने आती है जहाँ सत्ता पक्ष द्वारा इसे जनहित में सबसे अच्छा बताया जाता है वहीं विपक्ष इसे जन विरोधी और विदेशी कम्पनियों के हाथ देश को बेचे जाने से तुलना करने में ही लगा रहता है पर जिस तरह से आर्थिक रूप से विकसित देशों में रोज़ ही नयी समस्याएं आते रहने के बाद भी भारत में उसका असर उतना नहीं पड़ा जितना उन देशों में पड़ा था तो इसका मुख्य कारण हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का केवल कुछ नीतियों पर ही टिके रहना नहीं है हमारे यहाँ पूरा आर्थिक परिदृश्य बहुत कुछ अच्छे मानसून और वर्ष भर के मौसम पर ही अधिक निर्भर करता है. किसी भी सरकार के किसी भी वित्त मंत्री द्वारा केवल बड़े उद्योगों और अन्य आवश्यकताओं के अनुसार नियमों में परिवर्तन करने से केवल ढांचागत तेज़ी लायी जा सकती है पर उसके माध्यम से पूरे आर्थिक परिदृश्य को संभाला नहीं जा सकता है.
              अब समय आ गया है कि देश में वित्तीय मामलों पर इस तरह की राजनीति से विकास को अलग कर दिया जाये कोई भी सरकार आए या जाए पर देश की आर्थिक ताक़त को बनाये रखने के लिए जिस तरह के नियमों की आवश्यकता हो उन्हें बिना किसी भी तरह की राजनीति को बीच में लाये पूरा करने में संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिलकर काम करना चाहिए क्योंकि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर इस बात का कोई अंतर नहीं पड़ता है कि भारत में कौन सा दल सरकार चला रहा है ? इस तरह की परिस्थिति में यदि संसद से एक सुर में आर्थिक नीतियों को अनुमोदित किया जायेगा तो विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियां केवल अपने हितों के अनुसार काम करने के माहौल को बनाने के लिए अपने देशों की सरकारों के माध्यम से भारत पर दबाव बनाने की स्थिति में भी नहीं रह जायेंगीं. भारत को छोड़कर हर देश अपने औद्योगिक समूहों के हितों का ध्यान रखने के लिए जिस तरह से लॉबी बनाते हैं अब भारत के राजनैतिक तंत्र को भी कुछ उसी तरह से देश हित में नियमों को बनाने के बारे में सोचना शुरू करना ही पड़ेगा क्योंकि सही ग़लत हर मुद्दे पर केवल आलोचना करने से नेताओं को भले ही कुछ वोट मिल जाएँ पर देश का कभी भी भला नहीं हो सकता है.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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