मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 3 मार्च 2013

यमुना मुक्ति पद यात्रा

                                 लगातार हो रही सरकारी उपेक्षा और भ्रष्टाचार के कारण जिस तरह से देश की नदियों में प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है उसके परिणाम स्वरुप ही यमुना को ही अपना सब कुछ मानने वाले बृजवासी जिस तरह से वृन्दावन से हथिनी कुंड तक की पद यात्रा पर निकल पड़े हैं वह अपने आप में जन आन्दोलन का एक अनूठा ही उदाहरण है. पूरे देश की सभी नदियों की आज जो दुर्दशा हुई पड़ी है उसको देखते हुए यह आन्दोलन अपने आप में बहुत आवश्यक भी है क्योंकि सरकारें केवल अपने हितों के बारे में सोचते हुए जो भी परियोजनाएं बनाती हैं उनके अमल पर पूरा ध्यान नहीं देती हैं जिस कारण से अधिकांश परियोजनाएं अपने उद्देश्य को पूरा ही नहीं कर पाती हैं. जब राजीव गाँधी ने पीएम पद संभाला था तो उन्होंने गंगा एक्शन प्लान के ज़रिये गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की एक पहल की थी और उसके लिए आवश्यक धन भी लगातार उपलब्ध कराया था पर कमज़ोर और भ्रष्ट प्रशासन के चलते ही आज भी गंगा की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया है और साथ ही देश के अन्य भागों में प्रवाहित होने वाली अन्य नदियों की दशा भी बिगड़ती ही जा रही है.
                          पंजाब में जिस तरह से संत बलबीर सिंह सींचेवाल ने अपने दम पर एक प्रयास शुरू करके नदियों को जीवन दान देने का काम शुरू किया है वह अपने आप में उत्कृष्ट है पर आज भी देश के अधिकांश भाग में किसी को भी नदियों की कोई फिक्र नहीं है जिससे केवल आर्थिक हितों को पोषित करने के चक्कर में पूरे प्राकृतिक जल तंत्र से बड़े पैमाने पर छेड़ छाड़ की जा रही है जिस कारण से भी इन नदियों में प्रदूषण बढ़ने के साथ ही जल स्तर लगातार घटता ही जा रहा है. नदियों के रूप में प्रकृति ने हमें जो प्रचुर संसाधन दिए हैं आज भी हम उनका सही तरह से उपयोग करना नहीं सीख पाए हैं क्योंकि हमारे योजनाकारों को यही लगता है कि इन प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का उन्हें पूरा हक़ है पर इस हक़ को जताते समय वे उन आधारभूत बातों को भूल जाते हैं जो किसी भी नदी या जल स्रोत के जीवित रहने के लिए बहुत आवश्यक होते हैं. पुराने समय में लगभग हर गाँव में बड़े जल स्रोत तालाबों के रूप में हुआ करते थे पर सरकारें आज केवल इन्हें बचाने के लिए नए नए नियम बनाने में ही लगी हुई है और भू माफियाओं द्वारा इन पर निरंतर कब्ज़ा किया जा रहा है. मुंबई में आई भयंकर बाढ़ के पीछे भी मीठी नदी के प्राकृतिक स्वरुप से व्यापक छेड़ छाड़ किया जाना ही था फिर भी देश इस बारे में सोचना ही नहीं चाहता है.
                         देश के विकास के लिए जल परियोजनाओं की बहुत आवश्यकता है पर आज जिस तरह से इनका दुरूपयोग किया जाने लगा है उसके परिणाम स्वरुप भी नदियों वाले भू भाग में हर वर्ष भयंकर बाढ़ आने एक तरह से नियमित ही हो चुका है. आज प्राकृतिक ढंग से नदियों के प्रवाह और उनके स्वरुप बदलने की प्रक्रिया का गंभीर अध्ययन किए बिना ही परियोजनाओं को लागू किया जाने लगा है जिससे नदियों के किनारे से उने जीवन को प्रवाहित करने के लिए जो आवश्यक जैविक तंत्र ज़रूरी होता है उसका कहीं से भी पता नहीं चल पाता है और प्रदूषण के कारण नदियों की गहराई भी लगातार कम ही होती जा रही है जिससे बरसात के समय पहाड़ों से मैदानों में बहने वाले जल को संभालना किसी के लिए भी मुश्किल होता जा रहा है. किसी भी नदी को जीवित रखने के लिए उसके पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने की ज़रुरत होती है पर हमारे देश में कभी आर्थिक तो कभी राजनैतिक कारणों से भी कई बार ऐसी परियोजनाओं को शुरू कर दिया जाता है जिनको चलाए जाने से पूरी नदी का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है. अब भी समय है कि नदियों के स्वरुप को बचाने के लिए केवल सरकारी स्तर पर ही काम न किया जाए और इसमें नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को भी शामिल किया जाए जिससे ये सभी बरसाती नाले बनने के स्थान पर सदा नीरा बनी रह सकें.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. भ्रष्ट प्रशासन??? बहाना है बचाने का.. जिस दिन भारत में एक व्यक्ति यह चाह लेगा कि भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये, खत्म हो जायेगा. लेकिन वह व्यक्ति सोचेगा क्यों.

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