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सोमवार, 4 मार्च 2013

अखिलेश सरकार का एक साल

                           पिछले वर्ष यूपी में सत्ता परिवर्तन के समय मायावती ने कहा था कि एक साल के अन्दर ही प्रदेश की जनता को इस बात का एहसास हो जायेगा कि सपा को सत्ता में लाकर उसने कितनी बड़ी ग़लती की है और अब जब अपने को मुसलमानों की हितैषी साबित करने की हर कोशिश में लगी हुई सपा की सरकार में उसके ही एक प्रभावशाली मंत्री के करीबियों द्वारा एक मुसलमान सीओ की सरेआम हत्या कर दी गई है तो सरकार को समय समय पर अपने विवादित बयानों से परेशान करने वाले एक और सशक्त मंत्री मो० आज़म खां को यह लगा रहा है कि इस घटना ने सरकार को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है ? यह सरकार तो अपने लचर रवैये के कारण वैसे भी मुंह दिखाने लायक रह ही नहीं गई है. पिछले वर्ष मार्च में ही अखिलेश के प्रदेश की गद्दी सँभालने के बाद जिस तरह से आम जनता को यह लगा था कि इस बार सपा की सरकार और पार्टी के तेवर कुछ अलग ही होंगें पर सपा में मुलायम और अन्य बड़े नेताओं के क़द के आगे अखिलेश केवल सरकारी तौर पर ही बड़े साबित हो पाए और निर्णय लेने की उनकी क्षमता ही आज पूरी तरह से कटघरे में है जिससे सपा का मिशन २०१४ अब पूरी तरह से खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है.
                           सरकार की लाचारी इस बात से भी झलकती है कि कानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार पुलिस के एक सर्किल स्तर के अधिकारी को इस तरह से सरेआम पीट पीट कर गोली मार दी जाती है और लखनऊ में बैठी सरकार शाम तक यह तय ही नहीं कर पाती है कि राजा भैया के ख़िलाफ़ आरोप लगाये जाएँ या नहीं और बाद में कानून व्यवस्था को भाड़ चूल्हे में डालते हुए केवल मुसलमान सीओ की मौत से अपने वोट बैंक पर पड़ने वाले असर को देखते हुए उन्हें साजिश का आरोपी बनाया जाता है जो प्रदेश की कानून व्यवस्था की वस्तविक स्थिति का अंदाज़ा अपने आप ही करा देती है. मुलायम ने जिस तरह से आगे बढ़कर अखिलेश को सीएम बनाया था उसके बाद यही लग रहा था कि अखिलेश सपा की पुरानी बदनामी भरी सरकारों से अलग हटकर कुछ सुशासन की तरफ प्रदेश को ले जाएंगें पर कानून व्यवस्था के साथ अन्य मोर्चों पर सरकार ने जिस तरह से हमेशा ही घुटने टेके हैं उससे यही लगता है कि आने वाले समय में अब यह किसी बड़े निर्णय को करने के लिए अपने पैरों पर मजबूती से खड़ी भी नहीं हो पायेगी.
                                            यदि मुलायम ने अखिलेश को सरकार चलाने के लिए चुना था तो उनकी ही यह ज़िम्मेदारी भी बनती थी कि वे अखिलेश को अपने हिसाब से काम करने की पूरी छूट देते इसलिए इस पूरे प्रकरण में यह अखिलेश से ज्यादा मुलायम की नाक़ामी साबित होती है क्योंकि किसी को हाँथ पैर बंधकर पानी में फ़ेंक कर उससे तैरने की आशा आख़िर कैसे की जा सकती है. आज सपा का हर छोटा बड़ा नेता अपने आप को अखिलेश से कम नहीं समझता है और जिस कारण से भी सामान्य प्रशासनिक कार्यों में निरंतर बाधा आती रहती है मुलायम सिंह इतने भोले भी नहीं हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी भी न हो पर वे अपनी पुरानी विवादित कार्यशैली या संभवतः अब अखिलेश द्वारा किनारे कर दिए जाने से भी कोई बड़े निर्णय ले पाने की स्थिति में संभवतः रह ही न गए हों ? अखिलेश के पास पूरी सपा की तस्वीर बदलने का एक बहुत अच्छा मौक़ा था पर वे इसको जिस तरह से बर्बाद कर रहे हैं उसके बाद यह तो तय ही है कि २०१४ में सपा की प्रदेश में लोकसभा सीटें पुराने स्तर पर भी बचने की संभावनाएं कम ही हैं ऐसी स्थिति में केन्द्रीय स्तर पर बसपा और सपा को छोड़कर प्रदेश की जनता इस बार कांग्रेस या भाजपा की तरफ भी मुड़ सकती है पर अभी तक इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की धरातल पर चल रही चुनावी तैयारियों से इनके मज़बूत होने की सम्भावना भी कम ही है और प्रदेश की जनता को अभी सपा बसपा की इस तरह की राजनीति को पता नहीं कब तक मजबूरी में ढोना पड़ेगा ?    
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