मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 12 मार्च 2013

गंगा-यमुना पर घड़ियाली आंसू

                            राज्यसभा में जिस तरह से सभी दलों के सांसदों ने एक स्वर में देश की अध्यात्मिक रूप से पूजनीय नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर गहरी चिंता प्रकट की वह अपने आप में केवल रस्म अदायगी भर ही है क्योंकि आज तक देश में नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए कोई कारगर नीति नहीं बनाई जा सकी है जिसके चलते भी अंधाधुंध दोहन के कारण भी नदियों में आज पानी का संकट हो गया है और इस बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण भी इनके किनारे आदि पर भी नदियों के प्राकृतिक पर्यावरण को बचने में हम पूरी तरह से असफल ही साबित हुए हैं. ऐसे समय में जब यमुना जल यात्रा दिल्ली की तरफ निकाली गई तो संसद में इस मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता भी समझी गई वरना इस मसले पर केवल बातों के अभी तक कुछ भी नहीं किया जा रहा है. क्या कारण है जब इस तरह से कोई बड़ा आन्दोलन चलाया जाता है तभी इन मुद्दों पर देश का राजनैतिक तंत्र चेत पाता है वरना उसके पास समय ही नहीं है कि वह नदियों कि दुर्दशा के बारे में कुछ सोच भी सके, इतने बड़े जन आन्दोलन को समर्थन देने के लिए आख़िर नेताओं के पास समय क्यों नहीं था और क्यों वे संसद में इस तरह से चिंता व्यक्त करने को ही अपना कर्तव्य मानते हैं ?
                           देश की प्रमुख नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर इन पर से राज्य सरकारों के नियंत्रण को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि देश में जिस तरह से नदियों के जल को प्रयोग में लाने के नाम पर उसका और अन्य संसाधनों का दुरूपयोग किया जा रहा है आज वह किसी से भी छिपा नहीं है कोई भी दल अपने को इस बात से अलग नहीं कर सकता है क्योंकि चुनाव के समय इन नदियों के बारे में केवल एक पंक्ति में ही कुछ कह देने की परंपरा सी रही है और जब नदियों को आम जनमानस से जोड़ा जा सकेगा तभी इसके बारे में नेता जागरूक होंगें क्योंकि इन नदियों के किनारे बसने वाले क्षेत्रों में जब नदियाँ के मुद्दा बन जायेंगीं तभी नेता कुछ वोट पाने के लालच में इनके लिए कुछ करने के बारे में सोचेंगें. नदियों के बारे में राजीव गाँधी ने सबसे पहले गंगा एक्शन प्लान बनाया था और उस समय जो भी काम हुआ था उसका परिणाम गंगा की जलधारा में स्पष्ट रूप से दिखाई भी देने लगा था पर बाद में इस मद में लगातार धन की अनुपलब्धता और भ्रष्टाचार के कारण स्थितियां एक बार फिर से पहले जैसी ही हो गई हैं.
                          सदन में केवल चिंता करने के स्थान पर अब इस बारे में विचार कर कुछ वास्तव में करने की आवश्यकता है क्योंकि जब इतने महत्वपूर्ण मसले पर बहस होती है तब भी यूपी के नेताओं की मानसिकता राष्ट्रीय सोच तक नहीं पहुँच पाती है और आज के समय में यूपी मायने सपा बसपा और इन दोनों पार्टियों का ज़िक्र होते ही ये हमेशा हर मसले पर एक दूसरे को खींचने में ही लग जाती है. अब पुरानी बातों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने के बारे में सोचा जाना चाहिए और गंगा एक्शन प्लान से क्या कुछ हासिल हुआ था और क्या कारण रहे जिससे उसने केवल कुछ हद तक ही सफलता पाई आज इस पर मंथन कर नए सिरे से काम करने की आवश्यकता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि जाति और धर्म के कुचक्र में फँसी यूपी की राजनीति के लिए इन नदियों के किनारे रहने वाली जनता एक नया मोर्चा खोल दे और वहां पर इन तुच्छ बन्धनों के स्थान पर केवल नदियों को पुराने स्वरुप में वापस लाने की मांग ही प्रमुख हो तब इन नेताओं के पास करने के लिए शायद ही कुछ शेष रह जायेगा ? जब तक नेता सो रहे हैं तब तक हमें अपने आस पास की नदियों को बचाने के लिए खुद ही अपने स्तर से छोटे छोटे प्रयास तो शुरू कर ही देने चाहिए.    
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