मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 21 मार्च 2013

परियोजनाएं, विकास और रूकावट

                        देश में विकास के नए नए सपने दिखाने वाली लगभग सात लाख करोड़ रुपयों की परियोजनाएं विभिन्न कारणों से मंज़ूरी के लिए इंतज़ार कर रही हैं जबकि आज के समय देश को इस तरह की परियोजनाओं की समय से पूरा करने की बहुत आवश्यकता है. सबसे अधिक चिंता की बात यह भी है कि बहुत सारी परियोजनाएं उन क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं जो देश के मज़बूत आर्थिक परिदृश्य के लिए नीव का काम करने वाली हैं उस स्थिति में अब किस तरह से इन परियोजनाओं को पूरा किया जाए जिससे समय रहते इनका पूरा लाभ देश और इन्हें लगाने वाले निजी या सार्वजनिक क्षेत्र को भी मिल सके ? देश में जिस तरह से ऊर्जा संकट दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है उस स्थिति में बिजली क्षेत्र से जुड़ी किसी भी परियोजना को प्रस्ताव मिलने के बाद से पास होने के बीच कई एक समय सीमा अब देश को निर्धारित करनी ही होगी क्योंकि अब इसके बिना किसी भी स्थिति में विकास की कोई भी इबारत लिखने में देश को कोई सफलता नहीं मिलने वाली है. ऊर्जा के इस संकर का दीर्घकालीन उपाय खोजे बिना किसी भी तरह के विकास के सामने हम कैसे देख सकते हैं ?
              जिस तरह से बिजली के साथ सड़क, सीमेंट, पोर्ट, और स्टील की विभिन्न परियोजनाओं पर तेज़ी से ध्यान लगाने की आवश्यकता है शायद देश के मौजूदा कानूनी स्वरुप के कारण भी इसमें बड़ी अडचनें आती रहती हैं इसलिए अब सबसे पहले इस बात पर ही गंभीर मंथन करके एक विकास का रास्ता अपनाया जाना चाहिए जिसके अन्तर्गत इन क्षेत्रों से जुड़ी हुई परियोजनाओं को गुण दोष के आधार पर एक समय सीमा में सभी विभागों द्वारा पारित किया जाना चाहिए या फिर उनमें मिलने वाली कमियों के बारे में संबंधित प्रस्तावकों को सूचित करने का एक प्रावधान होना चाहिए जिससे ऐसी किसी भी परियोजना को किसी भी तरह से स्वीकृत या अस्वीकृत करने के बारे में संबंधित पक्षों को समय से सूचना मिल सके और वे उनमें कानून के अनुसार संशोधन करने के बाद फिर से स्वीकृति के लिए जमा कर सकें. जब तक इस तरह से देश के विकास के बारे में नहीं सोचा जायेगा तब तक विकास किस तरह से होगा यह भी सोचने का विषय है ? भाषणों में विकास की बातें करना एक बात है और धरातल पर वास्तविक विकास के लिए लिए नियमों में सुधार करना बिलकुल दूसरी बात है.
            आज जिस तरह से किसी बड़ी परियोजना को लगाये जाने के लिए जितने विभागों की आवश्यकता होती है और उनमें जितने बड़े पैमाने पर संवाद हीनता भी दिखाई देती है वह देश के विकास में बहुत बड़ी बाधा ही है क्योंकि जब तक किसी भी परिस्थिति में इस तरह के विभागों सामंजस्य नहीं होगा तब तक इन परियोजनाओं को समय बद्धतरीके से पूरा नहीं किया जा सकेगा. किसी भी बड़ी परियोजना के लिए जिस तरह से बैंको द्वारा धनराशि उपलब्ध करायी जाती है उनके समय से पूरा न होने से जहाँ इन बैंको की क्रियाशील पूँजी का प्रवाह रुकता है वहीं दूसरी तरफ उनके लिए बड़ी परियोजना में होने वाले विलम्ब से अन्य तरह की समस्याएं सामने आने लगती हैं. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को इन बातों पर विचार कर एक नीति ऐसी बनानी ही होगी जो लम्बे समय में इस तरह से सामने आने वाली अड़चनों को दूर रख सके क्योंकि इस तरह के प्रयासों के बिना अब विकास की बातें करना ही बेईमानी होगा. केंद्र और राज्यों को अपनी दलीय राजनीती से आगे बढ़कर देश के बारे में सोचना शुरू करना ही होगा तभी सही दिशा में विकास शुरू हो सकेगा. 
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें