मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 20 मार्च 2013

विदेश नीति और घरेलू दबाव

                      संप्रग सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर इस समय कई बड़े मोर्चे खुले हुए हैं जिनके कारण सरकार के लिए किसी भी तरह के क़दम उठाना आसान नहीं होने वाला है. एक तरफ जहाँ इटली और यूरोपियन यूनियन नौ-सैनिकों के मसले पर भारतीय कोर्ट के फैसले को वियना समझौते के खिलाफ मान रहे हैं वहीं दूसरी तरह सुरक्षा परिषद में श्रीलंका के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर द्रमुक और तमिल राजनीति करने वाले दल सरकार पर दबाव बनाकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं ? ऐसे कठिन समय में भारतीय विदेश नीति और कूटनीति की अग्नि परीक्षा ही होने वाली है क्योंकि दोनों ही मुद्दों का प्रभाव दक्षिण भारत की राजनीति पर बड़े पैमाने पर पड़ना लगभग तय है ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार के पास कितने विकल्प खुले रह गए हैं यह भी सोचने का विषय है क्योंकि श्रीलंका पर ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर उनकी निंदा करने या संसद में उसके ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करने को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि यह सीधे तौर पर उसके घरेलू मामलों में हस्तक्षेप ही होगा जो किसी समय भारत के अपने हितों के ख़िलाफ़ भी जा सकता है. भारतीय संसद यदि इस तरह से चिंता जताने के स्थान पर निंदा प्रस्ताव पास करती है तो हमारे और पाक के बीच क्या अंतर रह जाने वाला है ?
                                                आज वोट बैंक की राजनीति ने जिस तरह से अपने पैर हर जगह जमा लिए हैं और केंद्र की सरकारों में जिस तरह से क्षेत्रीय दलों का समर्थन और प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है तो इस तरह के दबाव को किसी भी तरह से बचाया नहीं जा सकता है यह सही है की श्रीलंका में तमिलों के मुद्दे पर पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु में राजनीति की जाती रही है पर तमिलों द्वारा भी वहां पर जिस तरह से सशस्त्र विद्रोह किया गया उसका किसी भी तरह से भारत सरकार ने कभी भी आधिकारिक रूप से समर्थन नहीं किया और तमिलनाडु के दल अपनी आवश्यकता के अनुसार इस तरह के किसी प्रारूप का मौन या मुखर समर्थन करते ही रहे. श्रीलंका में शांति बनाये रखने के लिए भारतीय सेना भी एक समझौते के तहत वहां भेजी गयी थी पर तब लिट्टे ने जिस तरह से वायदा खिलाफ़ी की और भारत के प्रयास वहां पर पूरी तरह से निष्फल हो गए उसके लिए किसी भी तमिल राजनीति को करने वाले दल ने कुछ भी नहीं बोला और लिट्टे ने तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी की हत्या तक करवा दी ?
                                            तमिल राजनीति की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं पर जिस तरह से अब भारत की विदेश नीति में हस्तक्षेप करने की योजना के तहत द्रमुक काम कर रही है वह लम्बे समय में भारतीय उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति को कमज़ोर साबित करने वाला ही होगा क्योंकि पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव के बाद अब श्रीलंका भी उस धुरी में शामिल हो सकता है जो भारत को घेरने के लिए चीन द्वारा अपनाई जा रही है ? भारत को ऐसे किसी भी प्रताव का आँख मूंदकर किसी भी दबाव में समर्थन नहीं करना चाहिए क्योंकि कल सुरक्षा परिषद में ये देश एक मंच पर आकर श्रीलंका की तुलना कश्मीर से करने में नहीं चूकेंगें और उस स्थिति में भारत के लिए अपनी बात को निष्पक्ष रूप से रखने का अवसर भी शायद ही मिल सके. पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के हनन के लिए भारत चिंतित रहा करता है पर उसका अर्थ उन शक्तियों के हाथों में खेलना नहीं होना चाहिए जो अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए देश की विदेश नीति को प्रभावित करने की कोशिशों में लगे हुए हैं. अभी तक किसी भी दल की सरकार होने के बाद भी हमारी विदेश नीति में एक गंभीरता और निष्पक्षता रही है और हमें अब भी उसे बिना किसी दबाव में आए बनाए रखने की ज़रुरत है.   
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