मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

९३ से १३ तक

                    १२ मार्च ९३ को मुंबई में हुए बम धमाकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए जिस तरह से कानून का अनुपालन कराया जाना सुनिश्चित किया है वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मसले में जिस तरह से अंडरवर्ल्ड के साथ फ़िल्मी जगत के रिश्तों की बात भी सामने आई थी वह अपनी गति से तो आज भी चल ही रही है पर सज़ा सुनाने में जिस तरह से कोर्ट ने यह कहा कि कानून सभी के लिए समान होता है और उसका सभी को सम्मान करना चाहिए वह एक नज़ीर ही है. कोर्ट ने फिल्म अभिनेता संजय दत्त को अवैध हथियार रखने के आरोप में ५ वर्षों की सजा सुनाई है जिसमें से वे १८ महीने पहले ही जेल में काट चुके हैं संजय को सज़ा होने से समाज में यह संदेश भी आसानी से जा सकेगा कि देश में कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं हो सकता है. संजय दत्त द्वारा जिस तरह से केवल हथियार रखने के शौक ने उनके जीवन पर इस तरह से असर डाला है वह उन लोगों के लिए एक सबक हो सकता है जो केवल शौक या उत्सुकता वश किसी प्रतिबंधित हथियार को देखना या रखना चाहते हैं.
                                 ऐसा नहीं है कि देश में अवैध हथियारों को रखने का यह पहला मामला है पर इस मामले के तार मुंबई हमलों से जुड़ गए थे इसलिए भी यह अलग तरह से उसी हमले से जुड़ गया था. टाडा कोर्ट ने जहाँ संजय दत्त को ६ वर्ष की सज़ा सुनाई थी वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर उन्हें ५ साल की सज़ा दी है इस पूरे निर्णय में कोट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह सज़ा के सम्बन्ध में कोई भी याचिका अब स्वीकार नहीं करेगा जिससे सज़ा पाए लोगों के लिए अपनी सज़ा काटने के अलावा कोई विकल्प भी शेष नहीं रह गया है. अभी तक भारत में लम्बी न्यायिक प्रक्रिया के चलते जिस तरह से इतने वर्षों बाद अंतिम निर्णय आ पाया है उससे इस बात पर फिर से विचार किये जाने की ज़रुरत है कि आतंकी मामलों से निपटने के लिए अब देश को विशेष तरह की व्यवस्था की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह से आरोपियों को इतने वर्षों तक कोर्टों में पेश करना और उनके लिए विभिन्न तरह की सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी देश के महत्वपूर्ण संसाधन को लगाना ही पड़ता है.
                               आतंकी मामलों में त्वरित कोर्ट और न्यायिक व्यवस्था की अब देश को बहुत आवश्यकता है और जब तक इस दिशा में ठोस उपाय नहीं किये जायेंगें तब तक आतंकियों के मन में भय भी उत्पन्न नहीं किया जा सकेगा. विदेशों में बैठे आतंकियों के सरगना तब गरीबी में फंसे हुए इस तरह के लोगों को अपना मोहरा नहीं बना पायेंगें क्योंकि इन गरीबों के मन में भी कानून का कुछ भय पैदा हो जायेगा. इस समस्या पर संकेत करते हुए सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इन आतंकियों ने अपने काम को अंजाम देने के लिए गरीबों का दुरूपयोग किया इससे अब हमें अपने सामजिक ढांचे और गरीबों के इस तरह से समाज विरोधी तत्वों के हाथों में खेलने से बचाने के बारे में कुछ सोचना ही होगा क्योंकि जब तक हम अपने स्तर से इस सामाजिक मजबूरी का लाभ उठाने की विचारधारा पर चोट नहीं करेंगें तब तक किसी भी दशा में इस तरह की समस्या से निपटने में हमें सहायता नहीं मिल पायेगी. आज देश में सभी को अपने अनुसार जीने की छूट है पर इस छूट का लाभ उठाकर किसी को भी देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के लिए खुला भी नहीं छोड़ा जा सकता है.         
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