मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 7 मार्च 2013

ग़ायब होते बच्चे ?

                                  राज्य सभा में बच्चों के ग़ायब होने से सम्बंधित एक प्रश्न के उत्तर में सरकार द्वारा जो जवाब दिया गया है वह वास्तव में देश में बच्चों की सुरक्षा के बारे में चिंता उत्पन्न करने वाला ही है. पिछले तीन सालों में देश भर में लगभग दो लाख छियासी हज़ार बच्चों के ग़ायब होने की सूचना दर्ज की गई थी जिसमें से एक लाख इकसठ हज़ार बच्चों को ढूंढ लिया गया है पर अभी भी लगभग पचहत्तर हज़ार बच्चों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पाया है कि वे कहाँ है और किस दशा में हैं ? यह भयावह तस्वीर तो केवल उन बच्चों के बारे में जिनकी सूचना पुलिस द्वारा दर्ज कर ली गई है और अन्य इस तरह से ग़ायब होने वाले बच्चों के बारे में किसी को भी यह नहीं पता है कि आज वे कहाँ हैं ? सरकार कई तरफ से यह भी कहा गया है कि इन बच्चों को तस्करी द्वारा पड़ोसी देशों में भेजे जाने के बारे में अभी किसी भी राज्य द्वारा किसी भी तरह कई कोई सूचना नहीं मिली है जिस आधार पर यह कहा जा सके की ये बच्चे तस्करी के माध्यम से बाहर के देशों में बेच या भेज दिए गए हैं ?
                       सरकार द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस तरह से ग़ायब होने वाले बच्चों का पता लगाने के लिए ट्रैक चाइल्ड नामक एक वेब पोर्टल भी प्रायोगिक तौर पर चलाया जा रहा है जिसके माध्यम से इन ग़ायब हुए बच्चों के बारे में एक ही स्थान पर घर बैठे सूचनाएँ देखी जा सकती हैं. यह सही है कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है पर जिस तरह से बच्चों से जुड़े हुए इस पहलू पर राज्य सरकारें कुछ करना ही नहीं चाहती हैं और केंद्र इसे राज्यों का मामला बताकर अपने पीछा छुड़ाने की कोशिश में लगा दिखता है उससे ही यह समस्या गंभीर होती चली जाती है. इस समस्या से केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं निपटा जा सकता है क्योंकि जब तक इसमें सामाजिक और मानवीय पहलू का समावेश नहीं किया जायेगा तब तक बच्चों को देश में पूरी तरह से सुरक्षित नहीं किया जा सकता है. आज भी इस मसले पर देश में सामजिक जागरूकता की दिशा में काम किये जाने कई आवश्यकता है क्योंकि समाज से ग़ायब होते बच्चों के बारे में समाज अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकता है.
                      विभिन्न तरह के सामजिक संगठनों को बाल श्रम को रोकने के बारे में अधिक जागरूकता फैलाने की ज़रुरत है क्योंकि आज इस तरह से ग़ायब किए गए बच्चों में अधिकतर को दूसरे राज्यों में भेजकर उनसे घरेलू, व्यावसायिक या अन्य तरह के अनैतिक कार्यों में लगा दिया जाता है. यदि हम सभी थोड़े से सचेत हो जाएँ और किसी भी जगह पर काम करने वाले किसी भी बच्चे के बारे में जानकारी इकठ्ठा करें कि वे किन परिस्थितियों में इस तरह से पढ़ने की उम्र में काम में लगे हुए हैं तो आने वाले समय में हम मिलकर इस परिदृश्य को बदल भी सकते हैं. बच्चों के बारे में सुरक्षा कई बातों पर विचार करते समय हमें इस बात पर भी सोचना ही होगा कि आख़िर हम भी अपने घरों में काम करने के लिए किसी छोटू को क्यों तलाशते रहते हैं ? यदि किसी वास्तव में आवश्यकता में पड़े बच्चे की मदद करनी ही हो तो उसे भी पढ़ाई के बारे में अवश्य ही बताया जाना चाहिए और उसके परिवार के लोगों को भी बच्चों के अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए. आर्थिक रूप से परेशान परिवारों के बच्चे अधिकांशतः इस तरह से कम उम्र में ही घरों में काम करने लगते हैं जिससे किसी भी कानून का उन पर कोई ज़ोर नहीं रह जाता है.   
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