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बुधवार, 1 मई 2013

नैतिकता की राजनीति

                           देश में जिस तरह से सभी सरकारी संस्थाओं का सत्ताधारी दल द्वारा अपने हितों को साधने में जिस तरह से जमकर दुरूपयोग किया जाता है उसके बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई सरकार इस तरह से सुप्रीम कोर्ट के सामने उस चक्रव्यूह में उलझ गई है जिसके माध्यम से कई बार कई सरकारें अपने हितों को साधने में सफल भी होती रही थीं. कोयला घोटाले से जुड़ी इस सीबीआई जाँच में जिस तरह से कोर्ट ने सीधे डायरेक्टर से हलफ़नामा देने की बात कही वह अपने आप में ही अभूतपूर्व है क्योंकि पूरे देश की तरह कोर्ट को भी यह पता है इस संस्था का किस तरह से दुरूपयोग किया जाता है ? यदि केवल मौखिक रूप से पूछा जाता तो संभवतः कुछ ऐसा रास्ता निकाल भी लिया गया होता जो सरकार और नेताओं की पोल पट्टी नहीं खोल पाता पर स्पष्ट निर्देश मिलने के बाद सीबीआई के पास कोई अन्य रास्ता बचा ही नहीं था जिस कारण से भी उन्होंने लिखित रूप में कोर्ट में यह स्वीकार कर लिया कि रिपोर्ट को सरकार में किस किस से साझा किया गया है. कोर्ट के रिपोर्ट किसी से न साझा करने के आदेश का यह खुला उल्लंघन था और कोर्ट ने इस मसले पर सख्त टिप्पणियां भी की हैं.
                           सीबीआई ने एक और बहुत ही अच्छा काम किया कि उसने पहले तैयार की गई जांच रिपोर्ट को संशोधित की गई जांच रिपोर्ट के साथ कोर्ट में जमा कर दिया है जिससे अब सरकार के पास सच स्वीकार कर लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष नहीं बचा है साथ ही कोर्ट के सामने व्यवस्था बनाए रखने के लिए सीबीआई को पूरी तरह से स्वतंत्र किये जाने सम्बन्धी कोई टिप्पणी भी अंतिम फैसले में सामने आ सकती है. सरकार के पास अब कोई अन्य विकल्प शेष नहीं हैं क्योंकि कानून मंत्री पर इस बात का दबाव बन रहा है कि उन्हें त्यागपत्र देना पड़ सकता है क्योंकि इस तरह की परिस्थिति में सरकार उनको हटाकर अपने लिए कुछ माहौल सुधारने की दिशा में प्रयास ही कर सकती है. सवाल यहाँ पर किसी कानून मंत्री या प्रधानमंत्री के त्यागपत्र का नहीं होना चाहिए बल्कि इस अवसर को अब इस महत्वपूर्ण एजेंसी को पूरी तरह से स्वायत्त करने के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए. देश को सख्त कानून के साथ तेज़ी से और निष्पक्ष रूप से काम करने वाली एक एजेंसी की बहुत आवश्यकता है क्योंकि राजनैतिक दख़लअंदाज़ी के कारण भी कई बार बहुत नुकसान हो जाया करता है.
                           संप्रग और कांग्रेस सरकार को बचाए रखने के लिए आने वाले समय में किसकी बलि देंगें यह तो समय ही बता पायेगा पर जिस तरह से आज परिस्थितियां उनके प्रतिकूल दिखाई दे रही हैं उस स्थिति में आने वाले समय में बिना कठोर क़दम उठाए देश को सही दिशा नहीं मिल पाएगी. सत्ताधारी दल का नेता कौन हो यह सब उन पर ही निर्भर करता है पर देश को इस प्रकरण से संभवतः आने वाले समय में एक पूर्ण रूप से स्वायत्त सीबीआई भी नसीब हो जाए ? कोर्ट द्वारा इस मसले पर पहल करने के बाद सरकार और संसद के लिए इसे अनदेखा कर पाना बहुत ही मुश्किल हो पायेगा. देश में आज भी अधिकारियों में नैतिक बल बचा हुआ है यह इस प्रकरण में फिर से साबित हो गया है क्योंकि सरकार के नीचे काम करने वाली इस एजेंसी ने जिस तरह से इस प्रकरण में पूरे दबाव के बाद भी संविधान और कोर्ट के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए क़दम उठाया है वह अपने आप में अभूतपूर्व है. कानून मंत्रालय द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत की जाने वाली सभी जांचों को देखा जाता है यह एक ऐसा तथ्य है जो सभी जानते हैं पर इस मसले में कोर्ट के निर्देशों के बाद जिस तरह से कानून मंत्रालय और पीएमओ के अधिकारियों ने रिपोर्ट देखी वह सरासर कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है और इस मसले पर किसी न किसी पर यह गाज तो गिरनी ही है.  
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