मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 2 मई 2013

न्याय पर संदेह

                          पिछले दो दिनों में देश की विभिन्न अदालतों ने जिस तरह से विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय ज़ाहिर की है उनसे सहमत और असहमत होने का एक और दौर शुरू होने वाला है क्योंकि एक तरफ जहाँ कोर्ट ने कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट को सीबीआई द्वारा सरकार से साझा किये जाने पर कड़ी टिप्पणी की वहीं दूसरी तरफ़ ८४ के सिख विरोधी दंगों के कारण अदालतों में चक्कर काट रहे कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को इस मामले में बरी कर दिया गया, अभी इसके परिणामों पर मंथन चल ही रहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने एफ़डीआई पर विदेशी पूँजी निवेश को चुनौती देने वाली एक याचिका को आधारहीन बताते हुए निरस्त भी कर दिया है. देश में जिस तरह से हर मामले में राजनीति किये जाने को ही प्राथमिकता के आधार पर लिया जाने लगा है उस स्थिति में हर व्यति इन निर्णयों की व्याख्या अपने हिसाब से करना चाहेगा पर कोर्ट पर समय समय पर छाती ठोंककर विश्वास जताने वाले हमारे राजनैतिक तंत्र के लोगों को यहाँ पर अपनी मनमानी कर लाभ उठाने वाले निर्णयों के न आ पाने से निराशा अवश्य ही होगी क्योंकि ये सभी मुद्दे लम्बे समय से राजनीति के केंद्र में बने रहे हैं.
                                   देश की किसी भी कोर्ट को केवल दलीलें सुनने के बाद कानून के अनुसार निर्णय सुनाने की छूट संविधान द्वारा मिली हुई है पर इसके साथ ही न्याय के आसन पर बैठे हुए व्यक्तियों से यह भी अपेक्षा की गयी है कि वह समाज के हित में अपनी तरफ़ से टिप्पणियों के माध्यम से अपनी बात को स्पष्ट भी कर सकते हैं. कोयला घोटाले से जहाँ सरकार को घेरने में विपक्षियों को मदद मिलने वाली है वहीं बहु-चर्चित सज्जन कुमार केस में अधिकांश लोगों को यही लग रहा है कि न्याय नहीं हुआ है. दिल्ली के सिख विरोधी दंगे स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे बुरा दौर कहे जा सकते हैं क्योंकि उससे पहले देश के राजनैतिक तंत्र द्वारा धार्मिक आधार पर राजनीति करने की जो ग़लती की गई उसी की प्रतिक्रिया स्वरुप पंजाब में खून की नदियाँ बह निकलीं और उनकी आंच ने पूरे देश में सिख विरोधी लहर को हवा दे दी थी. अब जो कुछ भी हो चुका है उसमें इस तरह से सड़कों पर गुस्सा दिखाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा क्योंकि सज्जन कुमार के खिलाफ अपील करने के लिए अभी देश कि बड़ी अदालतों के मार्ग खुले हुए हैं. यह एक ऐसा मसला है कि जिस पर नेताओं को राजनीति करने से बचना चाहिए क्योंकि वर्षों के खून खराबे और निर्दोषों की लाशों की राजनीति पंजाब बहुत लम्बे समय तक झेल चुका है.
                                 खुदरा क्षेत्र में विदेशी पूँजी निवेश का जिस तरह से केवल राजनैतिक कारणों से ही विरोध किया जा रहा है उस परिस्थिति में कोर्ट ने बिलकुल सही निर्णय दिया है कि जो मॉडल पूरी दुनिया में अपना कर आगे बढ़ा जा सकता है उस पर भारत में क्यों न प्रयास किये जाएँ ? कोर्ट के इस निर्णय के बाद बेशक सरकार को इस मसले पर राहत का अनुभव होगा पर साथ ही नेताओं के पास कुछ बोलने के अवसर भी आएंगें. क्या आज यह स्थिति है कि बात बात पर कोर्ट के निर्णयों को स्वीकार करने में अपना भाग्य समझने वाले नेता इन मसलों पर कुछ नहीं बोलेंगें और इनको भी शिरोधार्य करेंगें या फिर दबे मन से स्वीकार कर किसी और माध्यम से कोर्ट में पहुंचकर अपने विरोध को दूसरी तरह से दिखाने का प्रयास करेंगें ? कोर्ट के निर्णय साक्ष्यों पर निर्भर किया करते हैं और जब तक इन निर्णयों को खुले मन से केवल देश हित में ही स्वीकार किया जायेगा तब तक ही देश का भला हो सकेगा वरना जिस तरह से हर मसले पर केवल विरोध की राजनीति करने की हमारे राजनैतिक तंत्र को आदत बन चुकी है उस स्थिति में यहाँ पर भी इन निर्णयों का अपने हिसाब से लाभ उठाना का प्रयास ही किया जायेगा.         
       
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