मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 3 मई 2013

सरबजीत के बहाने

                      भारत पाक के कटु संबंधों के बीच राजनैतिक या सैन्य मजबूरी के कारण किस तरह से किसी निर्दोष को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ सकती है यह सरबजीत के मामले में पूरी तरह से साफ़ हो चुका है. ग़लत पहचान का शिकार हुए सरबजीत ने जिस तरह से अपनी जिंदगी का आधा हिस्सा पाकिस्तान की जेल में गुज़ारा और हर दिन उन पर मौत की तलवार लटकती रही उसके बाद तो यही लगता है कि पाक की जेल में बंद कोई भी भारतीय सुरक्षित नहीं है और यह एक ऐसा मामला है जिस पर भारत सरकार कुछ भी नहीं कर सकती है क्योंकि किसी दूसरे देश के कानून और आन्तरिक मामलों में कोई भी दख़ल नहीं दे सकता है पर जिस तरह से पाक ने खुलेआम मानवाधिकारों का उल्लंघन किया वह अपने आप में घिनौना ही है और उसके लिए पाक को अंतर्राष्ट्रीय मचों पर घेरना बहुत अनिवार्य हैं. पाक जिसने आज तक भारत से इस्लामिक कानून के हसीन पाकिस्तान रुपी जिन्ना के सपने को देखने के लिए अपना घर छोड़कर गए मुसलमानों समेत किसी के भी किसी अधिकार का सम्मान करना नहीं सीखा है उससे और क्या अपेक्षा रखी जा सकती है ? पाक में कुछ लोग केवल अपने हितों के लिए कानून और धर्म सहित सेना का इस्तेमाल करते हैं वैसी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिल सकती है.
                    सरबजीत की ग़लतियों पर अगर नज़र डाली जाए तो यह बात साफ़ हो जाती है कि वह केवल नशे की हालत में ही सीमा पार कर पाकिस्तान चला गया था जहाँ पर उसे पकड़कर उस पर लाहौर में हुए बम धमाकों का आरोपी बताकर हिरासत में लिया गया और उस पर मुक़दमा चलाकर उसे मौत की सजा भी सुनाई गई. सबसे पहली बात तो यह है कि सरबजीत की यह हालत केवल नशे के कारण ही हुई है क्योंकि यदि वह नशे में न होता तो शायद उसके लिए ग़लती से सीमा पार जाना उतना आसान भी नहीं होता. दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जब वह पंजाब में आतंक के चरम का दौर था तो आख़िर कोई नशे कई हालत में इतनी आसानी से सीमा पार गया भी कैसे और तब सीमा सुरक्षा बल के जवान क्या कर रहे थे ? यह वह दौर था जब पाक से लगती हुई सीमा से पाक निरंतर खालिस्तान समर्थक आतंकियों को भारत की सीमा में भेजता रहता था यही वह कमज़ोर कड़ी है जो हमारे देश के सीमान्त इलाक़ों से हमारे देश को कमज़ोर करती है और कई बार आम नागरिक भी कम निगरानी के चलते ग़लती से सीमा पा कर जाते हैं.
                  सरबजीत की सुनियोजित हत्या से अब हमें क्या सीखना है इस पर भी गौर किये जाने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में कोई आम व्यक्ति सरबजीत की तरह सीमा पार कर अपने जीवन को संकट में न डाल सके. आज भी सीमा पर व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण आतंकियों और अन्य तस्करों के काम आसानी से होते रहते हैं जबकि आम लोगों को सीमा पार करने पर इस तरह कई यातनाएं झेलनी पड़ती हैं और कई बार उनकी जान पर भी बन आती है. इस स्थिति में जब देश में भ्रष्टाचार के पाँव इतने आगे तक फैले हुए हैं तो आख़िर किसके माध्यम से सीमाओं की निगरानी की जाए ? सरबजीत की केवल एक ग़लती थी की वह नशे में था पर क्या सीमा पर तैनात हर जवान भी उतने ही नशे में था या भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सीमा रक्षकों के बीच किसी अन्य तरह का कोई खेल भी चल रहा है जिसमें कभी कोई सरबजीत भी अपनी जान गँवा रहा है ? इस मामले में पाक से किसी न्याय की उम्मीद करना ही बेमानी है पर साथ ही जब हमारी कमी भी जुड़ी हुई है तो हम किसी का स्वाभाव कैसे बदल सकते हैं, अब देश की सीमाओं पर और चौकसी बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि राजनैतिक तौर पर इस तरह के मामलों में लाभ उठाने की कोशिशें जारी रहेंगीं क्योंकि ९० में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई लड़कर विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के पीएम थे तो भी भ्रष्टाचार था और आज मनमोहन सिंह के समय भी इसमें कोई कमी नहीं आई है.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें