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गुरुवार, 16 मई 2013

सांसद और नैतिकता

                  सूचना के अधिकार के तहत मिली एक जानकारी के अनुसार हमारे माननीय सांसद निजी सहायक रखने के लिए अपने रिश्तेदारों या करीबियों को ही चुन है और १४६ सांसदों ने इस तरह से अपने १९१ नजदीकी लोगों को इन पदों से नवाज़ रखा है. उल्लेखनीय हैं कि इन माननीयों को अपने एक या अधिक सहायक रखने के लिए ३०,००० रूपये मासिक मिलते हैं जिन्हें वे एक या अधिक सहायकों में अपनी इच्छानुसार बाँट सकते हैं तभी केवल १४६ सांसदों ने अपने १९१ करीबियों को इस तरह से लाभ पहुंचा रखा है. कानूनी आधार पर देखा जाए तो यह किसी भी तरह से ग़लत नहीं ठहराया जा सकता है पर नैतिकता के मानदंडों पर यह व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो जाती है क्योंकि इन सहायकों कि नियुक्ति पूरी तरह से इन सांसदों पर ही छोड़ी गयी है और वे जिसे चाहे इस पद पर रख सकते हैं. इस मामले में भी ६० बेटे, ३६ बीवियां, २७ बेटियां, ७ भाइयों और ४ पतियों समेत अन्य रिश्तेदार भी इस सूची में शामिल हैं और दलवार देखने पर ३८ भाजपा, ३६ कांग्रेस, १२ सपा, ८ डीएमके, ७ बीजेडी, ६ जेडीयू और बाकी अन्य दलों से हैं. ३६ माननीयों ने यह एक से ज़्यादा रिश्तेदारों में और ४ ने तीन से ज़्यादा में यह बंटवारा कर रखा है.
                               अभी तक निजी सहायक रखने के लिए किसी मानदंड की स्थापना नहीं की गयी थी और सांसद अपनी पसंद के मज़बूत और प्रभाव रखने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को ही इन पदों पर नियुक्त कर दिया करते थे पर आज जिस तरह से केवल नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें ही की जाती हैं उसके बाद इस तरह से सामान्य कार्यकर्ताओं के लिए सृजित किये गए इन पदों पर भी माननीयों ने अपने परिवार के लोगों को फिट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इस तरह से यदि देखा जाए तो ५ सालों में ये लोग अपने करीबियों को लगभग १८ लाख रूपये का लाभ पहुँचाने में लगे हुए हैं जिनसे संभवतः उन्हें और क्षेत्र की जनता को कोई लाभ नहीं मिल पाता है क्योंकि आज के समय में इन माननीयों से ही मिल पाना कितना मुश्किल हो चुका है तो उनके उन रिश्तेदारों से मिल पाना किस तरह से आसान होगा जो हर समय अपने करीबी के माननीय होने की हनक दिखाने से नहीं चूकते हैं ? इस पूरे प्रकरण में वैसे तो कुछ भी ग़लत नहीं है पर सदन में जनतंत्र को सर्वोच्च बताने और उसकी सर्वोच्चता की दुहाई देते इन सांसदों के इस आचरण से लोकतंत्र की निचली कड़ी जनता को तो अपरोक्ष नुकसान ही होता रहता है.
                             देश में जिस तरह से बहुत सारी योजनाएं रोज़ ही आती रहती हैं और उनके सही तरह से धरातल तक अनुपालन कराने के लिए जिस तरह के सहायकों की सांसदों को आवश्यकता है क्या इनके अप्रशिक्षित नज़दीकी रिश्तेदार उन्हें सही तरह से लाभार्थियों तक पहुंचा पाने में सफल हो सकेंगे ? इस बात की कौन गारंटी दे सकता है कि सत्ताधारी दल के माननीयों के ये रिश्तेदार निजी सहायक स्थानीय प्रशासन और पुलिस पर अनावश्यक दबाव बनाने की कोशिशें नहीं करेंगें और उससे आम जनता का ही नुकसान होगा पर अपने रिश्तेदारों को किसी भी प्रकार से पिछले दरवाज़े से आगे लाने की इन कोशिशों को किस तरह से नैतिकता के मानदंडों पर सही ठहराया जा सकता है ? अच्छा हो कि इस तरह के निजी सहायकों की नियुक्ति के लिए अब एक अखिल भारतीय सेवा बनाई जाए जो इस तरह के काम करने में इच्छुक हैं वे प्रबंधन और राजनीति के बारे में जानकारी हासिल करें और उनका एक पूल होना चाहिए जिसमें से आवश्यकता पड़ने पर सांसद या विधायक अपने सहायकों को चुन सकें. इस सेवा को पूर्णतः एक कोर्स की तरह योग्यता के रूप में अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए जिससे कम से कम आने वाले समय देश के माननीयों के पास रिश्तेदारों के स्थान पर ढंग से काम करने वाले निजी सहायक उपलब्ध हो सकें.   
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