मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 29 मई 2013

पद योग्य कर्मचारी

                                      एक सर्वे में भारतीय कम्पनियों को उनकी आवश्यकता के अनुसार योग्य कर्मचारियों के न मिल पाने की बात सामने आई है जिससे एक बार फिर से वही बहस जन्म ले सकती है कि हमारे यहाँ पर आख़िर ऐसी क्या कमी है जो शिक्षा की ठीक ठाक व्यवस्था होने के बाद भी इस तरह की समस्या कैसे सामने आ रही है ? इस बारे में देश के कई नेता और उद्योगपतियों समेत कई लोग यह बात पहले भी कह चुके हैं कि भारतीय शिक्षा पद्धति ने कई मायनों में बहुत प्रगति कर ली है पर साथ ही यह भी आज तक मूल समस्या का कारण बना हुआ है कि योग्य उम्मीदवारों की कमी से देश को आज भी उतना ही जूझना पड़ रहा है जितना आज से काफी समय पहले जूझना पड़ता था जबकि धरातल पर आज देश में निजी क्षेत्र के प्रवेश के बाद उच्च शिक्षा के लिए बहुत बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थान खुलते ही जा रहे हैं जिससे उच्च शिक्षा के लिए अब छात्रों के पास कम से कम कुछ विकल्प तो खुल ही गए हैं पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आने के स्थान पर गिरावट ही अधिक देखि जा रही है.
                                       पूरे परिदृश्य पर यदि गौर किया जाये तो एक ही बात सामने आती है कि देश में शिक्षण संस्थानों ने प्रगति कर छात्रों के लिए नए अवसर खोलने का काम तो किया ही है साथ ही इन पर कड़ा नियंत्रण न होने के कारण भी इनमें स्तरीय शिक्षा का आज स्पष्ट अभाव देखा जा रहा है जिससे भी पूरे मामले का सुनहरा पक्ष ही दिखाई देता था अब वह पूरी तरह से धुंधला ही होता जा रहा है. इन संस्थानों से छात्र तो निकल रहे हैं पर वे केवल शिक्षित ही हैं और उनमें वह चाह कहीं से भी नहीं दिखाई देती है जिसमें वे किसी विश्व स्तरीय औद्योगिक समूह में आसानी से प्रवेश पा सकें. यहाँ पर यह भी सही है कि सभी लोगों को अच्छी जगहों पर नौकरियां नहीं सकती हैं पर यदि शिक्षा का स्तर अच्छा हो तो पूरे देश के कामगारों और उच्च स्तर पर बैठे हुए लोगों का स्तर भी और बेहतर हो सकता है पर आज किसी भी तरह से केवल कोई भी शिक्षा पाकर केवल नौकरी को हासिल करने की प्रवृत्ति इस क्षेत्र में बढ़ती जा रही है जिससे योग्य उम्मीदवारों की कमी भी लगातार बढ़ती ही जा रही है.
                                     ऐसा नहीं है कि यह परिदृश्य केवल निजी क्षेत्र में ही दिखाई दे रहा है आज देश के प्रतिष्ठिति संस्थानों में भी छात्रों द्वारा कुछ नया करने की ललक दिखाई नहीं देती है जिससे विकास और अनुसन्धान के क्षेत्र में हम पूरी दुनिया में बहुत पीछे ही होते चले जा रहे हैं जबकि इतनी बड़ी जन शक्ति को यदि हम सही शिक्षा के साथ आगे बढ़ाने का काम कर सकें तो हम सर्वोत्तम मानव शक्ति वाले देश भी बन सकते हैं ? इस कार्य और लक्ष्य को पूरा करने के लिए जिस तरह से पूरी शिक्षा व्यवस्था को साक्षरता और उच्च शिक्षा से ही जोड़ा जाता रहेगा तब तक किसी भी परिस्थति में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है ? हम लोगों को इस तरह से केवल शिक्षित भर कर सकते हैं पर उनको विश्व स्तरीय बनाने के लिए जिस सोच की आवश्यकता है वह हमारी शिक्षा पद्धति वर्तमान परिस्थिति में हमें नहीं दे सकती है. आज इस समस्या को केवल ऊपरी स्तर पर देखने के स्थान पर निचले स्तर से सुधारने का सही प्रयास किया जाना आवश्यक है जबकि हम केवल समस्या को ताताक्लिक प्रयासों से ऐसे ही ठीक करना चाह रहे हैं.     
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