मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 30 मई 2013

यूपी और बिजली

                वैसे तो गर्मी के मौसम में पूरे भारत में ही बिजली का संकट बना ही रहता है पर इसके साथ यूपी में बिजली की जो दशा है उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यहाँ पर सरकार में रहने वाले दलों ने इस समस्या से निपटने के स्थान पर केवल काम चलाऊ नीतियों के माध्यम से ही समय काटने का काम ही किया है और दुर्व्यवस्था का यह आलम है कि हर सरकार केवल बयान बाज़ी के माध्यम से ही बिजली संकट को दूर करने के प्रयास कर रही है. यह सही है कि लम्बे समय के लिए कारगर नीतियां बनाने के स्थान पर केवल जातिगत राजनीति में उलझे प्रदेश के मजबूर नेताओं ने जिस तरह से सरकारें चलाई हैं वैसी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं मिलने वाली है ? सरकार यदि कुछ करना ही चाहती है तो सबसे पहले उसे अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति ही प्रदर्शित करनी ही होगी क्योंकि उसके बिना कोई भी नीतिगत बड़ा क़दम नहीं उठाया जा सकता है पर हमारे नेता केवल भाषणों में ही अपनी चिंताओं को व्यक्त करते रहते हैं जिससे भी संकट बढ़ता जाता है.
              अखिलेश ने जिस तरह से वाराणसी में कहा कि उनकी सरकार निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी कर पूरी व्यवस्था को सुधारने का काम करने का प्रयास करेगी यदि इस पर कुछ अमल भी किया जा सके तो बहुत अच्छा होगा क्योंकि केवल राजनैतिक कारणों से लैपटॉप बांटते समय बिजली की कमी की बात करके उन्होंने जहाँ कुशल राजनेता की तरह छात्रों और प्रदेश का ध्यान मुख्य समस्या से हटाने का काम किया उससे उनको तात्कालिक तौर पर तो कुछ राहत मिल सकती है पर लम्बे समय में उसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिल सकता है. यदि सरकार उनके कहने के अनुसार सोलर पॉवर को बढ़ावा देना चाहती है तो उसे उसके लिए कारगर नीति बनाकर आगे बढ़ना चाहिए जिसमें सबसे मुख्य काम यह किया जा सकता है कि प्रति किलोवाट कनेक्शन के आधार पर उपभोक्ताओं को कम से कम १५० वाट का सोलर पैनल बिना किसी कर और सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराया जाये जिससे कम से कम ग्रिड पर बिजली आने के समय एकदम से लोड न पड़े और लोगों का भी भला हो सके.
                सोलर पॉवर को बढ़ावा देने का सही रास्ता चुनना ही एकमात्र विकल्प आज बचा हुआ है क्योंकि जिस भी दल के पास सत्ता होती है वह अपने प्रभावशाली नेताओं के यहाँ २४ घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर देता हैं जिससे भी यह संकट और भी बढ़ जाया करता है. बिजली को राजनैतिक आधार पर बांटने के बजाय यदि आर्थिक आधार पर बांटा जाये और आपूर्ति को बिजली मूल्य संग्रह से जोड़ दिया जाये तो आने वाले समय में उपभोक्ता भी बिजली चोरी को रोकने में कारगर भूमिका निभाने में सफल हो सकते हैं. आज भी बिजली विभाग में कमज़ोर संसाधनों के स्थान पर कड़ी नज़र की आवश्यकता है और बिजली चोरी को पूरी तरह से चरण बद्ध तरीके से रोकने की भी ज़रुरत है क्योंकि प्रदेश में बिजली चोरी के कारण भी आज पूरे विभाग की यह दुर्दशा हो चुकी है. पूरे प्रदेश में एक साथ निजीकरण करने के स्थान पर कुछ चुनिन्दा जगहों पर इसे लागू किया जाना चाहिए जिससे लोगों को इस नयी व्यवस्था के लाभों के बारे में सोचने का अवसर मिले. अच्छा हो कि अखिलेश कि यह इच्छा भी हो और केवल नेताओं की तरह एक बयान ही न हो जो वोटों को बांधकर रखने के लिए नेताओं द्वारा अक्सर ही दिए जाते हैं.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें