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शुक्रवार, 31 मई 2013

बैंकिंग-नियम और कानून

                        रिज़र्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने एक व्याख्यान में बोलते हुए जिस तरह से यह स्वीकार किया कि कोबरापोस्ट ने जो भी आरोप बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं पर लगाये हैं वे पूरी तरह से सच तो नहीं कहे जा सकते हैं पर उनमें कुछ सच्चाई अवश्य है और इस मामले में इन बैंकों के प्रबंधन को नोटिस भी जारी की गयी हैं. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बैंकों ने सूचना देने की प्रणाली का जिस तरह से अनुपालन नहीं किया उसकी जांच की जा रही है और इस सम्बन्ध में किसी भी तरह से पूरी जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पायेगी. आज जब देश में बहुत सारे कानूनों के बाद भी स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं रह पाती है तो उस स्थिति से निपटने के लिए अब बैंक प्रबंधन के नियमों पर एक बार फिर से नज़र डालने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक देश में वित्तीय प्रबंधन पर और स्पष्ट व् पारदर्शी कानून नहीं सामने आयेंगें तब तक ऐसा कभी भी हो सकता है. देश में सार्वजनिक धन के लेन देन से जुडी किसी भी गतिविधि के नियमों में और सख्ती की आवश्यकता है.
                         रिज़र्व बैंक द्वारा जिस तरह से खुलासे के बाद आरोपों की पूरी तरह से जांच की गयी और संभावित कमियों का पता लगाया जा रहा है उस परिस्थिति में यह तो स्पष्ट ही हो गया है कि कोई भी कानून कितना भी स्पष्ट और कड़ा क्यों न हो उसमें भी कुछ कमियां कहीं न कहीं से रह ही सकती हैं और शातिर दिमाग के लोग इस तरह से इन कमियों का दुरूपयोग करने लगते हैं. मनी लांड्रिंग के बारे में देश में पहले से ही कानून मौजूद हैं पर इस मामले में बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं ने इसका पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया है जिससे यह शंका और बलवती हो जाती है कि कहीं न कहीं से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इस तरह की वित्तीय अनियमितता में शामिल रहे हैं ? रिज़र्व बैंक ने इस खुलासे के बाद से ही जिस तरह से तेज़ी से आरोपों की जांच करायी और बैंकों को नियमों की अवहेलना पर कड़ा संदेश दिया उसकी बहुत आवश्यकता थी क्योंकि आज के कानूनों के हिसाब से इस तरह की सख्ती करना इसी के हाथ में है. कोई भी कानून चाहे कितना भी सख्त क्यों न हो पर जब तक उसके अनुपालन पर ध्यान नहीं दिया जाता है तब तक उससे वांक्षित परिणाम हासिल नहीं किये जा सकते हैं.
                       देश में इस क्षेत्र में और भी कड़े कानूनों की आवश्यकता इसलिए भी पड़ सकती है क्योंकि जब तक पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों और बीमा कम्पनियों पर सख्ती नहीं की जाएगी तब तक इस तरह से कुछ भी किया जा सकता है. यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर तरह से कानून के अनुपालन अपर बैंक प्रबंधकों को मजबूर किया जाये और किसी भी तरह की अनियमितता मिलने पर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही भी की जाये क्योंकि जब तक देश में इस तरह की गतिविधियों पर और सख्ती और नज़र रखने की व्यवस्था नहीं बनाई जाएगी तब तक कुछ भी सही नहीं किया जा सकता है. आज जब देश में पहले के मुक़ाबले वित्तीय गतिविधियों में बहुत अंतर आ गया है तो उसके अनुसार कानून और अन्य एजेंसियों के काम काज में भी परिवर्तन किये जाने की बहुत आवश्यकता है. आने वाले समय में इस तरह की किसी भी कानूनी कमज़ोरी का दुरूपयोग करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाये जाने की ज़रुरत पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है जिससे भविष्य में इस तरह की किसी भी अनियमितता को रोक जा सके. . 
                            
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