मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 6 मई 2013

चीन की वापसी

                           संघर्ष के रास्ते से दूर रहते हुए जिस तरह से भारत ने एक बार फिर से चीन से बात चीत करके दौलत बेग ओल्डी में उसके द्वारा बढ़कर अपना अधिकार ज़माने की प्रक्रिया पर रोक लगाने में सफलता पाई है पर यह मामला उतना सरल नहीं है जितना पहली दृष्टि में लगता है क्योंकि इस दुर्गम क्षेत्र में कब्ज़े की लड़ाई में जिस भी जगह पर एक देश मज़बूत है वह वहां से तो पीछे नहीं हटना चाहता है और दूसरे के क्षेत्र के सामरिक महत्त्व के क्षेत्रों से उसे हटाना चाहता है. यह एक सामान्य सैन्य प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी युद्ध या सीमित संघर्ष में इस तरह के मज़बूत सामरिक ठिकानों से दूसरे देश को कम संसाधनों के साथ चुनौती दे सकने में इन्हीं सामरिक ठिकानों का बहुत अहम् स्थान होता है. भारत के साथ दोहरी समस्या यह है कि जहाँ के तरफ हिमालय से उनकी बहुत सुरक्षा होती है वहीं कुछ क्षेत्रों में भारतीय क्षेत्र से दुर्गम पहुँच के कारण चीन और पाक समय समय पर इस तरह की घुसपैठ और अन्य कामों को बढ़ावा देते रहते हैं जिससे भारतीय राजनीति समेत देश में हलचल मचती रहती है.
                               कहने में यह बहुत आसान लगता है कि भारत अपनी सुरक्षा को मज़बूत क्यों नहीं करता है पर वास्तव में ऐसा नहीं है कि भारतीय सेना या अन्य सम्बंधित सुरक्षा बल इस मामले में कोई कोताही बरतते हैं ? भारत ने आज तक किसी अंतर्राष्ट्रीय सीमा या समझौते का कभी भी उल्लंघन नहीं किया है फिर भी कभी सियाचीन या कारगिल के रूप में पाक और अरुणाचल से लगाकर लद्दाख तक चीन अपने मंसूबों को ज़ाहिर करते रहते हैं ? इन देशों के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध उतने महत्वपूर्ण नहीं है इनकी तात्कालिक मजबूरियां भी ऐसी हो जाती हैं जिनके कारण भी कई बार ये ऐसी हरकतें करने से नहीं चूकते हैं. भारत भी कई क्षेत्रों में सामरिक दृष्टि से मज़बूत है और उसे अपनी इस मज़बूत स्थिति से पीछे हटाने के दबाव के तहत ही पाक और चीन सीमाओं पर इस तरह की हरक़तें किया करते हैं पिछले वर्ष सियाचीन से सैनिकों की वापसी का प्रस्ताव भी इसी दिशा में पाक द्वारा खेल गया एक दांव ही था जिस पर भारत की तरफ से कोई उत्साह नहीं दिखाया गया और मामला ठंडा पड़ गया था क्योंकि पाक इस तरह की सुलह की बातों को आगे कर सामरिक महत्त्व के ठिकानों पर कब्ज़ा जमाना चाहता है पर अब भारत उनकी चालों को समझ चुका है.
                               पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सेना की पहुँच को चीन से लगते इन क्षेत्रों में बढ़ाने के उद्देश्य से भी सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण पर अधिक ध्यान देना शुरू किया है जिससे भी चीन को अपनी स्थिति के मुकाबले भारतीय स्थिति भी कुछ मज़बूत हो जाने की आशंका सताने लगी है इस स्थिति में उसके द्वारा भारतीय क्षेत्र में इस तरह की घुसपैठ और उन इलाकों को अपना बताने की कोशिशें वास्तविकता को ही बयान करती हैं. हम चीन की मानसिकता को तो नहीं बदल सकते हैं पर अपने क्षेत्रों में अपनी पहुँच को सुगम बनाकर कम से कम चीन को यह संदेश तो दे ही सकते हैं कि अब भारत के ये क्षेत्र उस स्थिति में नहीं है जैसे पहले हुआ करते थे जिससे हमारी सामरिक तैयारियों के मज़बूत होने के साथ कम से कम चीन के सामने कमज़ोर भारत का परिदृश्य भी बदल सके ? भारत अगर आज चीन से पूरी तरह से जीत नहीं सकता है तो वह उतनी आसने से हार भी नहीं जायेगा जैसा १९६२ के युद्ध में हुआ था देश में सबसे बड़ी कमी यह है कि भारतीय राजनैतिक नेतृत्व आज तक किसी मज़बूत नीति पर सहमत ही नहीं हो पाया है जिसे देश पर शासन करने वाले हर दल द्वारा पूरी निष्ठा से माना जाए.         
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