मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 13 जून 2013

मंत्री-अधिकारी आचार संहिता

                                                   मंत्रियों के समूह ने जिस तरह से प्रशासनिक सुधारों के लिए किए जाने वाले बड़े बदलावों के लिए संस्तुति करने का मन बनाया है उससे यही लगता है कि यदि सारा कुछ सरकार की मंशा के अनुरूप ही चलता रहा तो आने वाले समय में देश में अधिकारियों और मंत्रियों के स्थाई संबंधों के बारे में एक नई शुरुवात की जा सकेगी. अभी तक जिस तरह से सरकार और मंत्रियों पर यह आरोप लगते रहते हैं कि उनका व्यवहार अधिकारियों के प्रति ठीक नहीं होता है या फिर केवल चहेते अधिकारियों को ही किसी सरकार में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ निभाने को मिला करती है आने वाले समय में इस आरोप से भी मुक्ति पाई जा सकेगी जिससे मंत्रालयों में काम काज का माहौल बेहतर करने में मदद मिलेगी और आने वाले समय के लिए अधिकारियों के पास भी बिना किसी दबाव के अच्छा काम करने के अवसर भी बने रहेंगें. इसमें सबसे महत्वपूर्ण सुझाव यह भी है कि सिविल सेवाओं में राजनैतिक तटस्थता की भी बहुत आवश्यकता है क्योंकि आज अधिकारी जिस तरह से किसी सरकार विशेष के पक्ष में एक तरफ़ा काम करने लगते हैं और अन्य नेताओं की नज़रों में चढ़ा जाया करते हैं.
                                                  देश में विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के चलते अधिकारियों के लिए भी उनसे सामंजस्य बिठा पाना बहुत कठिन होता है और इस कारण से भी कई बार अच्छा काम करने वाले अधिकारी अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके पोस्टिंग ऐसे स्थानों पर की जाती है जहाँ पर उन्हें केवल सज़ा देने के मक़सद से ही भेज जाता है ? देश के लिए काम करने के लिए प्रशिक्षित इन अधिकारियों के लिए यदि काम करने लायक माहौल ही सरकारें अपने नेताओं के माध्यम से नहीं बना पाएंगीं तो आने वाले समय में किसी भी तरह की प्रशासनिक क्षमता और दक्षता की उम्मीद इनसे कैसे की जा सकती है इसलिए इस तरह के सुधारों पर सभी की नज़रें होनी चाहिए और किसी भी परिस्थिति में किसी भी अधिकारी के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही न की जा सके यदि वे ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में लगे हुए हैं क्योंकि इसका आने वाले अधिकारियों पर बुरा असर पड़ता है. अधिकारियों की मनोदशा ठीक न होने की स्थिति में कार्यालयों में बेहतर काम काज करने की किसी भी मंशा को पूरा नहीं किया जा सकता है और अधिकारी भी केवल काम निपटाने और नौकरी बचाने के लिए ही काम करते दिखाई देने लगते हैं.
                                                   प्रशासनिक सुधारों को केवल अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से कई बार सत्ताधरी दल की मंशा तो पूरी हो सकती है पर उसके माध्यम से देश में सिविल अधिकारियों के लिए बेहतर माहौल नहीं बनाया जा सकता है. देश में ऐसा पहले नहीं था क्योंकि तब अधिकारी मंत्रियों या सरकार के किसी फैसले से अपनी असहमति दिखा पाने की हिम्मत भी रखा करते थे और उनकी बात सुनी भी जाती थी पर अब केवल अपने दलों के एजेंडे को लागू करने के लिए हर दल अपने मन माफ़िक अधिकारियों की पूरी फौज खड़ी करने की फ़िराक में रहा करता है जिससे भी पूरी व्यवस्था में समस्या आती रहती है. जब अधिकारियों को अनैतिक राजनैतिक संरक्षा मिल जाती है तो वे सब कुछ भूलकर अपने आकाओं के एजेंडे को पूरा करने में लगे रहते हैं जिससे भी सरकार बदलने के समय उनकी क्षमता को नज़रंदाज़ किया जाता है जिसका सीधा असर देश और प्रदेश की प्रशासनिक क्षमताओं पर पड़ा करता है. सरकार की मंशा यदि ठीक हुई तो यह संभव है कि इस बार कुछ ऐसे नियम भी सामने आयें जिनके माध्यम से मंत्रियों और अधिकारियों के बीच बेहतर संवाद की स्थिति बन सके और उसके साथ ही देश के लिए बेहतर माहौल भी बन सके.            
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