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शुक्रवार, 14 जून 2013

कृषि प्रधान देश और मांस तस्करी

                                              पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से डिब्बा बंद मीट का देश से तेज़ी से निर्यात बढ़ा है उसके बाद अब यह कह पाना मुश्किल ही है कि इस तरह के व्यापार में लगे हुए लोगों द्वारा कितना और क्या अनैतिक और कानून विरुद्ध किया जा रहा है. बढ़ते हुए मशीनी युग और आधुनिकीकरण के चलते जिस तरह से अब देश में कृषि क्षेत्र में भी इसका कु-प्रभाव साफ़ तौर पर दिखाई देने लगा है उसमें देश का किसी भी तरह से भला नहीं हो सकता है. यह सही है कि कृषि के आधुनिकीकरण से देश में खाद्यान्न उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है पर उसके साथ ही छोटे किसानों के सामने जिस तरह अस्तित्व का संकट भी आया उसने उन्हें पूरी तरह से घुटने टेकने को मजबूर कर दिया. अच्छे लाभ के चलते जिस तरह से दुधारू पशुओं को भी मीट के लिए काटा जाने लगा है उससे आने वाले समय में देश में दुग्ध उत्पादन पर बुरा असर पड़ना तय ही है क्योंकि जब दुधारू पशुओं की संख्या का अनुपात ही बिगड़ जायेगा तब किसी भी तरह से इसे संभाला नहीं जा सकेगा. इस बारे में अभी से सही दिशा में सोचने का समय आ चुका है वरना देश के एक बिलकुल नए तरह के संकट के लिए तैयार रहना ही होगा.
                                               पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जिस तरह से अवैध तरीकों को अपना कर मीट के साथ गोमांस का भी व्यापार किया जा रहा है उससे जहाँ लोनी जैसी घटनाएँ और सामजिक तनाव भी बढ़ता है वहीं साथ ही देश में पशुओं की संख्या भी प्रभावित होती है क्योंकि अब ग्रामीण क्षेत्र में भी लोग पशुओं को पालने में कम रूचि दिखाने लगे हैं जिससे अब गांवों में भी दूध का संकट उत्पन्न होने लगा है. अभी तक जिस तरह से गाँवों में घर घर दुधारू पशु हुआ करते थे और लोग अपने गांवों की ज़रुरत को खुद ही पूरा करके शहरों के लिए भी दुग्ध उत्पादन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया करते थे पर आज यह स्थिति पूरी तरह से उलटती नज़र आती है. चूंकि यूपी में मांस व्यापार में अधिकतर मुस्लिम ही लगे हुए हैं इसलिए यहाँ पर किसी संवेदन शील मुद्दे को सदैव सांप्रदायिक नज़रिए से ही अधिक देखा जाता है जिससे समाज और देश की मुख्य समस्या की तरफ़ से ध्यान बंटकर अन्य बातों पर चला जाता है. इन पशु तस्करों को किस हद तक राजनैतिक संरक्षण भी प्राप्त है यह पुलिस से अच्छा कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि किसी भी अवैध मांस तस्कर को हिरासत में लेते ही कितने माननीयों के फोन आने लगते है यह वे अच्छे से जानती है.
                                               केवल सांप्रदायिक मुद्दे के तौर पर इससे निपटने की सरकारी नीति के कारण ही आने वाले समय में समाज में दूध देने लायक पशु ही नहीं बचेंगें अब यह सोचने का समय है कि मांसाहारी लोगों ने खाड़ी देशों में पशुओं की संख्या को ख़तरे की सीमा तक घटा दिया है और अब वे अपने पैसों के दम पर भारत जैसे देशों से अवैध कारोबार के रूप में मांस आयात कर रहे हैं. इनमें से किसी भी देश के पास भारत जितनी बड़ी आबादी नहीं है और वे आर्थिक रूप से अधिक संपन भी हैं तो उनके लिए दुनिया के बाज़ार से कुछ भी खरीदना संभव नहीं है जिससे आने वाले समय में भारत में मांस का संकट भी उत्पन्न हो सकता है. पश्चिमी यूपी में जिस तरह से चंद लोगों पूरे मांस व्यवसाय पर अवैध रूप से कब्ज़ा जमा लिया है उसकी गंभीरता का एहसास अब यूपी की सरकार को भी हुआ है और अब प्रमुख सचिव जावेद उस्मानी की तरफ से स्पष्टीकरण माँगा गया है. यह विडम्बना ही है कि एक यदुवंशी के हाथों में प्रदेश की बागडोर होने के बाद गोवंश पर इतना संकट आ रहा है और सरकार अपने वोटों के बिखर जाने के डर से चुप्पी साधे बैठी है और कुछ भी करना ही नहीं चाह रही है. पूरी परिस्थिति को देखते हुए एक बात तो तय ही है कि आने वाले समय में दूध और मांस दोनों के संकट से प्रदेश और देश को जूझना ही पड़ेगा क्योंकि आज कोई भी इस मसले पर कुछ ठोस करना ही नहीं चाहता है.

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