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शनिवार, 15 जून 2013

पेट्रोलियम नीति और लॉबी

                                            पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री वीरप्पा मोइली ने बड़ी सहजता के साथ इस बात का खुलासा देश के सामने कर दिया है कि तेल और प्राकृतिक गैस के बारे में बड़े नीतिगत फैसले लेने के मुद्दे पर तेल आयातक लॉबी लगभग हर मंत्री पर दबाव बनती है और कई बार उन्हें धमकाती भी है मंत्रालय के अफसरों को बड़े निर्णय लेने से रोकने के लिए हर तरह का दबाव भी बनाया जाता है. देखने में यह आरोप बहुत ही सामान्य कहे जा सकते हैं क्योंकि आज बढ़ती हुई आर्थिक गतिविधियों में निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा अपने हितों को संरक्षित करने के लिए इस तरह की नीतियां अपनाई ही जाती हैं पर एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा जब इस बात का खुलासा किया जा रहा है तो उसके पीछे के निहितार्थ तलाश किये जाने की बहुत आवश्यकता है. मोइली ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि उन पर कोई दबाव काम नहीं करने वाला है और सरकार की मंशा के अनुरूप वे देश को पेट्रोलियम के मामले में आत्म निर्भर बनाने के लिए २०३० तक की समय सीमा के अनुसार ही निर्णय करेंगें जो कि इस तेल आयातक लॉबी को रास नहीं आ रहा है.
                                         देश की पेट्रोलियम नीति में आज भी बहुत सारी ख़ामियाँ भरी पड़ी हैं और उनसे पूरी तरह से निपटने के स्थान पर अभी तक हर सरकार ने केवल तात्कालिक उपायों पर ही विचार किया है पर आज दीर्घकालीन नीतियों के विचार में आने और आर्थिक मुद्दे के रूप में ऐसे फ़ैसले हो जाने के डर से तेल आयातक लॉबी को अब यह लगने लगा है कि आने वाले समय में यदि भारत जो कि दुनिया का चौथा तेल और गैस आयातक देश है पूरे बाज़ार से गायब हो जायेगा तो इतनी बड़ी आबादी के लिए सप्लाई करने वाली कम्पनियों की आर्थिक सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ना तय है जिस कारण से भी ये तेल उत्पादक देश, और तेल व्यापार में लगी हुई कम्पनियां भारत में ऐसे किसी भी कड़े क़दम का विरोध करने  में नहीं चूकती हैं जो उनके हितों के ख़िलाफ़ जा सकता है ? यह अच्छा ही हुआ कि मोइली द्वारा यह बात सार्वजनिक कर दिए जाने के बाद अब कोई भी नयी नीति विपक्षी दलों के साथ जनता की नज़रों में भी आसानी से ही आ जाएगी जिससे भी सरकार, मंत्री और अधिकारियों को निर्णय लेने में सुविधा हो जाएगी.
                                       देश को तेल-गैस उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कड़े और प्रभावी क़दमों की अब बहुत आवश्यकता है क्योंकि आज के समय हमारा पूरा आयात डॉलर आधारित है और रूपये के किसी भी तरह के अवमूल्यन का सबसे दुष्प्रभाव तुरंत ही पेट्रोलियम पदार्थों की क़ीमतों पर दिखाई देने लगता है. मोइली का यह कहना कि देश के पास पर्याप्त भण्डार हैं पर उन्हें खोजने और उनसे उत्पादन शुरू करने के लिए सही नीतियों की आवश्यकता है जिससे इस क्षेत्र में काम करने वाली देशी और विदेशी कम्पनियां और अधिक रूचि दिखा सकें और भारत को आने वाले समय में चरण बद्ध तरीके से आत्म निर्भर बनाने की दिशा में काम किया जा सके ? पर इतने बड़े निर्णय लेने के लिए देश में जिस राजनैतिक इच्छाशक्ति और संकल्प की आवश्यकता होती है वह कहीं से भी नहीं दिखाई देती है. संसद में कोई काम नहीं होता है और नीतिगत मुद्दों पर जो बहस संसद में होनी चाहिए वह अब टीवी पर होती दिखाई देती है जिससे नीतियों पर कोई अंतर नहीं पड़ता है सरकार और विपक्ष के सभी दलों को रक्षा, विज्ञान, अनुसंधान, रेल, विदेश, कृषि, तेल और गरीबी उन्मूलन के साथ साक्षरता के मुद्दे पर अब राष्ट्र व्यापी रोडमैप बनाने की तरफ काम करना चाहिए जिससे चाहे किसी भी दल की सरकार हो वह पूरे देश की सहमति से ही इन मुद्दों पर देश हित में निर्णय ले सके.      
                                        
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