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रविवार, 16 जून 2013

यूपी पुलिस और अपराधी

                                          यूपी से लगातार ऐसी ख़बरों का आना जारी है जिनमें किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं अपराधी पुलिस पर हावी ही होते जा रहे हैं और अपराधियों के बढ़ते प्रभाव के कारण ही आज यह स्थिति बन चुकी है कि कभी मुठभेड़ के लिए कुख्यात रही यूपी पुलिस के जवान और अधिकारी अपराधियों की गोलियों का शिकार बनते जा रहे हैं ? इलाहाबाद में जिस तरह से कार चोरों ने थानाध्यक्ष की हत्या कर दी उसके बाद तो स्थितियां और भी ख़राब होती दिखती हैं. आख़िर पिछले कुछ वर्षों में ऐसा क्या हो गया है कि पुलिस का वह रसूख़ पूरी तरह से गायब हो चुका है जिसके दम पर वह अपने पूरे शिकंजे को अपराधियों के चारों तरफ़ कसे रहती थी और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी बड़े से बड़े अपराध की तह तक पहुंचा जाया करती थी ? पुलिस के पास पहले जो भी मुखबिर हुआ करते थे वे पूरी ईमानदारी के साथ काम किया करते थे और आवश्यकता पड़ने पर पुलिस भी उनकी हर संभव मदद किया करती थी पर पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से पुलिस पर अपराधियों पर गोलियां चलाने के बाद अनावश्यक जवाब देने और कोर्ट के चक्कर काटने का दबाव बढ़ता गया है उस स्थिति में आज पुलिस पहले हमलाकर अपनी बढ़त बनाने के स्थान पर बचाव के रास्ते खोजती रहती है.
                                        इस मामले में सबसे घातक गठजोड़ अपराधियों, नेताओं और चंद पुलिस कर्मियों के मिल जाने के कारण तैयार हुआ है जिसके माध्यम से अपराधियों को पुलिस के हर क़दम की जानकारी होती रहती है और पुलिस आसानी से उनके चंगुल में उलझ जाती है ? फैज़ाबाद कचेहरी ब्लास्ट के मामले में जिस तरह से अपराध को हल्का करने और आरोपितों को छोड़ने के लिए राज्य सरकार ने पूरी ताक़त झोंक रखी है उससे भी पुलिस बल की मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि इस तरह के मामलों में जहाँ पुलिस पर दोहरा दबाव होता है पहले जांच की जानी चाहिए जिससे पूरा सच सामने आये और जो भी अधिकारी या पुलिस कर्मी अनावश्यक रूप से मुक़दमों को आगे बढाने न के लिए दोषी पाए जाएँ उन पर कार्यवाही होनी चाहिए पर बिना किसी गुण दोष पर विचार किये जब पुलिस को सामूहिक रूप से आरोपित करने का प्रयास खुद राज्य सरकार द्वारा ही किया जायेगा तो पुलिस के गिरते हुए मनोबल को कौन संभालेगा ? पुलिस को काम करने की छूट होनी चाहिए पर साथ ही उस पर इस बात का नियंत्रण भी होना चाहिए कि वह निरंकुश न हो जाये.
                                       ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएँ केवल यूपी में ही होती हैं जिन जगहों पर भी आतंकियों, नक्सलियों या अन्य अपराधियों के हौसले बुलंद हैं वे बिना किसी झिझक के पुलिस को निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं जिससे भी समस्या की तह तक नहीं पहुंचा जा पा रहा है. आम पुलिस या सुरक्षा बलों के गिरते मनोबल को सँभालने के लिए उसके सामान्य काम काज में नेताओं को अनावश्यक दखल देना बंद करना ही होगा तभी पुलिस का सही चर्रित्र और कार्यशैली विकसित हो पायेगी वरना सत्ता के दबाव में आज एक पक्ष की सुनने वाली पुलिस कल सत्ता परिवर्तन हो जाने पर दूसरे पक्ष के साथ खड़ी नज़र आती है और निर्दोषों को कभी भी न्याय नहीं मिल पाता है और पुलिस पर ही दबाव बढ़ता जाता है. नियमानुसार यूपी जैसे राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को सुधारे रखने के लिए एक पूर्ण कालिक गृह मंत्री के साथ कम से कम तीन राज्य मंत्री भी होने चाहिए पर हर विभाग को अपनी जेब में रखने की नयी परंपरा के चलते अब सभी महत्वपूर्ण विभाग या तो परिवार या प्रभावशाली नेताओं के पास होते हैं और बाकी के सभी सीएम के पास ? जब सरकारों में कानून व्यवस्था को सुधारने की मंशा विभागों को केवल चलाने भर तक ही सीमित है तो किसी दिन अपराधी किसी बड़े नेता या अधिकारी पर भी हमला करने करने से नहीं चूकेंगें. 
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