मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 19 जून 2013

पाक और आतंक

                                             पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में नवाज़ शरीफ की सत्ताधारी पार्टी द्वारा जिस तरह से लगातार २६/११ में शामिल रहे प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे के रूप में काम करने वाले जमात-उद-दावा को सरकारी स्तर पर धन उपलब्ध कराये जाने की बात सामने आई है उससे यही लगता है कि पाक आज भी केवल अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण ही भारत के साथ अच्छे संबंधों का राग गाता है क्योंकि ऐसा न करने पर उसको विदेशों से मिलने वाली अकूत सहायता से हाथ धोना पड़ेगा और उसके पास इस कमी को पूरा करने के लिए और कोई रास्ता भी नहीं है इसलिए वह समय समय पर अपने को बचाए रखने के लिए इस तरह की कोशिशें करता रहता है. किसी भी धार्मिक केंद्र को इस्लामी देश में धन उपलब्ध कराना कोई विशेष बात नहीं है क्योंकि सरकारें अपने यहाँ पर धार्मिक गतिविधियों के उच्च केंद्र बनाये रखने के लिए प्रयासरत ही रहा करती हैं जो कि किसी भी धार्मिक आधार पर चुनी हुई सरकार के लिए धार्मिक देश में किया जाना उचित ही है पर जिस तरह से पाक के इस संगठन ने घोषित/अघोषित रूप से आतंकियों का सदैव ही समर्थन किया है वह उसके दोहरी मानसिकता को प्रदर्शित करता है. 
                              एक तरफ पाक की सत्ता हाथ में आने के बाद शरीफ़ भारत से हर तरह के रिश्तों में मजबूती लाने की लम्बी लम्बी बातें किया करते हैं पर उनके पास सरकारी धन को आतंकियों को दिए जाने की उनकी पार्टी की नीति पर बोलने या उसे स्पष्ट करने का कोई रास्ता नहीं है ? इस तरह के दोहरे मानदंडों को दिखाकर आख़िर पाक यह कैसे मान सकता है कि भारत उसकी तरफ दोस्ती का हाथ इतनी आसानी से ही बढ़ा देगा जबकि भारत में अधिकतर आतंकी हमलों के सुराग़ पाक की तरफ़ ही हमेशा इशारा करते रहते हैं ? क्या पाक में नेताओं को इतनी समझ भी नहीं है कि आज के माहौल में इस तरह की बातों को छिपा पाना कितना मुश्किल है और फिर भारत के लिए इतने संवेदनशील मुद्दे पर पाक अपनी अस्पष्ट नीति के चलते किस तरह से कोई ठोस और दूरगामी परिणाम देने वाला रिश्ता बनाने में सफल हो सकता है ? भारत में अब पहले जैसा माहौल भी नहीं रहा है क्योंकि आतंक और पाक के मुद्दे पर कोई भी राजनैतिक दल अब किसी भी तरह से जोखिम नहीं उठाना चाहता है.
                            पाक के लिए इन धार्मिक केन्द्रों में बैठे आतंकी समूहों को रोक पाना एक तरह से नामुमकिन ही है पर इनको इस तरह से दी जाने वाली सरकारी सहायता को भी वह किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहरा सकता है क्योंकि जो उसके लिए के धार्मिक सहायता ही है वह भारत के विरुद्ध एक आतंकी ढांचा तैयार करने में लगा हुआ पूरा तंत्र है जो पूरी तरह से पाक कि सरकार और सेना की छत्र छाया में पनप रहा है. पाक के लिए यह जितना संवेदनशील मामला है भारत के लिए यह और भी गंभीर मसला है क्योंकि आतंकियों के मुद्दे पर अब देश में सरकार को पूरी तरह से अघोषित छूट है कि वह इन्हें कुचलने के लिए जो चाहे कर सकती है इसलिए इस माहौल में अब किसी भी सरकार के लिए पाक के साथ सम्बन्ध बनाये रखने के लिए एक न्यूनतम स्तर पर ही काम करना मजबूरी हो चुका है. पाक को भारत के साथ सामने संबंधों से बहुत लाभ की आशाएं हैं पर अब भारत भी केवल आर्थिक हितों के लिए अपनी राष्ट्रीय और सुरक्षा आतंरिक पर किसी भी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं है इतने स्पष्ट रुख के बाद भी यदि पाक इन्हीं हालातों में भारत के साथ सामान्य सम्बन्ध चाहता है तो इसमें उसकी अपनी कूटनीतिक विफलता ही साबित होने वाली है. है.        
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