मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 6 जून 2013

आन्तरिक सुरक्षा और देश

                                       देश की आन्तरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन का इस्तेमाल जिस तरह से दलीय राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किया जाने लगा है उससे इस तरह के सम्मेलनों की प्रासंगिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लग चुका है क्योंकि देश के सामने आन्तरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आ रही चिंताओं को दूर करने के स्थान पर जिस तरह से केंद्र राज्य संबंधों को लेकर यहाँ पर भी खींचतान चलती रहती है उसका कोई औचित्य नहीं है क्योंकि राज्यों में सुरक्षा की स्थिति किसी भी कारण से बिगड़ने पर सभी राज्य केंद्र से अतिरिक्त सुरक्षा बलों की मांग करने से नहीं चूकते हैं ? केंद्र के पास एकदम से आई इस मांग को सही ढंग से पूरा करने के लिए राज्यों से मिलाकर आगे बढ़ने की कोई कार्य योजना है ही नहीं. आज देश में २०१४ के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी दल अपने अपने कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करने में लगे हुए हैं और इस काम में वे किसी भी तरह के कोई भी आरोप दूसरों पर लगाने से नहीं चूकते हैं. देश में केंद्र राज्य संबंधों को लेकर स्पष्ट व्याख्या पहले से ही मौजूद है पर जब भी कोई बात होती है तो केंद्र व राज्य एक दूसरे पर इसकी ज़िम्मेदारी डालकर अलग होने की कोशिश करते दिखते हैं.
                                    इतने महत्वपूर्ण सम्मलेन और आतंक रोधी केंद्र को बनाये जाने के गंभीर चिंतन वाले इस आयोजन में जिस तरह से दलीय हितों को ही ध्यान में रखा जा रहा है उसके चलते किसी भी तरह से देश की आन्तरिक सुरक्षा को मज़बूत नहीं किया जा सकता है क्योंकि जिन मुद्दों पर केंद्र और राज्यों में बेहतर समन्वय होना चाहिए वहां पर केवल मतभेद ही दिखाई देते हैं और जिसके कारण भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सकता है. आज केंद्र और राज्यों के नेतृत्व को यह तय करना ही होगा कि उसके सामने आने वाली चुनौतियों का सामना उन्हें किस तरह से करना है क्योंकि केवल आरोपों के माध्यम से कोई भी व्यक्ति कुछ हासिल नहीं कर सकता है और राज्यों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने इस विधेयक में कुछ बड़े बदलाव भी कर दिए हैं जिसके बाद अब यह कुछ राज्यों के अनुसार पहले से बेहतर हो गया है पर हर बात में राजनीति को आगे रखने की मंशा को देखते हुए क्या देश इसके लिए सहमत हो पायेगा ?
                                      देश में आन्तरिक सुरक्षा को भी केवल दलीय चश्में से देखने की यह कवायद किसी भी तरह से देश के हित में नहीं हो सकती है क्योंकि आज देश के सभी दलों में व्याप्त इस भ्रम के कारण भी अलगाववादियों को अपनी रणनीति तैयार करने के लिए काफी समय मिल जाया करता है और जब तक देश इस मुद्दे पर एकमत होकर आगे बढ़ना नहीं सीखेगा तब तक जो समस्या आज एक प्रदेश के सामने है कल वह किसी अन्य के सामने भी आ सकती है. हो सकता है कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों का अब भी इस कानून के माध्यम से अतिक्रमण करना चाहती हो पर इसको लटकाने से देश किस तरह से भला होने वाला है यह कोई बताना भी नहीं चाहता है. यदि गैर कांग्रेस राज्य सरकारों के पास कुछ ठोस उपाय हैं तो उन्हें आपस में विचार करने के पश्चात् उन्हें देश के सामने लाया जाना चाहिए. देश में आज भी बहुत सारे ऐसे कानून हैं जिनका कभी बहुत दुरूपयोग किया जाता था पर अब कोई भी केंद्र सरकार उन्हें लागू करने के बारे में सोच भी नहीं सकती है. देश की जनता भी अब जागरूक हुई है और वह सब कुछ देखती भी है इसलिए किसी भी दल को इस ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि जनता उनके पक्ष में है और रहेगी ? केवल आलोचना करने के स्थान पर अब कुछ ठोस करने का समय आ गया है इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को बेहतर तालमेल के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लेना ही चाहिए.  
                                    
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2 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें विपक्ष का रवैया उचित नहीं है.

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  2. इसके लिए हर कोई जिम्मेदार है और सच कहूँ तो इसकी शुरुआत केन्द्र सरकार ने ही की थी ! वो अपनी हर नाकामी का ठीकरा राज्यों पर फोडती आई है तो फिर यह तो होना ही था !!

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