मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 7 जून 2013

शरीफ़ की शराफ़त ?

                                        लम्बे समय के बाद चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद फिर से सत्ता सँभालने के बाद पाक के पीएम नवाज़ शरीफ़ ने जिस तरह से अपनी प्रतिबद्धताओं का ज़िक्र किया है यदि उस पर वे पाक को आगे बढ़ने में थोडा भी सफल हो पाए तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है. अपने जन्म से अभी तक पाक के हुक्मरानों ने जिस तरह से भारत के खिलाफ हर तरह के हथकंडे अपनाने का प्रयास हमेशा से ही किया है उस परिदृश्य को देखते हुए नवाज़ की यह नीति कितनी कारगर हो पायेगी यह तो समय ही बताएगा पर यदि वे विदेश नीति में भारत को उतना महत्त्व भी दे सके जिसका वह हक़दार है तो उससे पाक की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है क्योंकि आज भारत का वैश्विक परिदृश्य में जो महत्त्व हो चुका है उसे अनदेखा करने से पाक का किसी भी तरह से भला नहीं होने वाला है और भारत की शांत प्रवृत्ति से भी पाक को हमेशा बहुत आसानी रह सकती है क्योंकि पाक और अफ़गान तालिबान समेत कट्टरपंथी भारत के साथ कोई सम्बन्ध नहीं चाहते हैं.
                                      आज पाक जिन आधारभूत आवश्यकतों को पूरा करने के लिए अमेरिका, यूरोप और चीन की तरफ देखता है यदि भारत के साथ उसके रक्षा सम्बन्ध सामान्य हो जाएँ तो वह अपने संसाधनों को बेहतर ढंग से पकिस्तान की जनता के लिए उपलब्ध करा सकता है जिसका सीधा असर दोनों देशों के रक्षा खर्चों पर भी पड़ेगा. पाक के लिए जो कुछ भी बेहद सामान्य तरीक़े से करना आसान है वही भारत के लिए ऐसे किसी भी क़दम को अपनी तरफ से उठा पाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि अब चुनावी वर्ष में विश्वासघाती पाक के साथ मनमोहन सरकार भी कोई बड़ा फैसला नहीं लेना चाहेगी क्योंकि उसका कोई भी उल्टा परिणाम सरकार की चुनावी संभावनाओं को ख़राब कर सकता है और पहले से ही बहुत सारे संकटों को झेल रही सरकार इस तरह का कोई भी दांव नहीं खेलना चाहेगी जिससे पाक की तरफ से दिखाई जाने वाली किसी भी गर्मजोशी का भारत की तरफ से फिलहाल कोई बहुत बड़ा मतलब नहीं होने वाला है ? भारत के साथ किसी भी अच्छे सम्बन्ध के लिए सबसे पहले पाक को विश्वास बहाली के कुछ क़दमों को बिना किसी हिचक के अपनाना ही होगा तभी बात आगे बढ़ सकती है.
                                       शरीफ़ के लिए सबसे बड़ी मुसीबत पाक की सेना और देश में कट्टरपंथियों के बढ़ते हुए प्रभाव से निपटना भी होगा क्योंकि पाक में किसी भी सरकार के लिए सेना से तालमेल बैठा पाना ही सबसे बड़ा काम है और यदि इस काम में शरीफ़ ने कुछ भी हासिल कर लिया तो उनके लिए नए रिश्तों की इबारत लिखना कुछ हद तक आसान भी हो सकता है. भारत के साथ उनकी जिस स्तर पर वार्ता हो रही थी यदि वे उसकी फिर से बहाली भी करना चाहें तो भारत फिर से अपने घरेलू दबावों के चलते २६/११ के आतंकियों में पाक की संलिप्तता की बात और वांछितों को सौंपे की मांग भी करेगा ? भारत की तरफ़ से तो हमेशा से ही वार्ता के दरवाज़े खुले रहे हैं पर सैन्य मुख्यालयों और धार्मिक स्थलों पर कब्ज़ा जमाये हुए कट्टरपंथियों के साथ पाक के उन भारत विरोधी तत्वों से शरीफ़ किस तरह से निपट पाते हैं यह भी देखने का विषय होगा. पाक में अंदरूनी सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए एक पंजाबी के रूप में शरीफ़ कितने सफल हो पाते हैं यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पाक में जिस तरह से हर जगह पंजाब के लोगों का ही हाथ ऊपर रहता है शरीफ़ को देश से उस ग्रंथि को भी निकाल कर सबके लिए समान अवसरों को सामने लाना ही होगा.             
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