मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 15 जुलाई 2013

ईरान भारत व्यापार

                                 ईरान ने जिस तरह से किसी अन्य विकल्प के शेष न रहने के कारण भारत के साथ अपने पेट्रोलियम व्यापार का भुगतान रूपये में ही पूरी तरह से स्वीकार करने के लिए अपनी रज़ामंदी दिखाई है उससे यही लगता है कि भले ही इस समय ईरान के पास कोई विकल्प शेष न हो पर अब वह भारत के लगतार कमज़ोर पड़ते हुए रूपये पर और दबाव को कुछ हद तक कम करने का काम तो कर ही सकता है क्योंकि इस भुगतान की ५५% धनराशि के लिए अब भारत को यूरो की तरफ़ भी देखने की आवश्यकता नहीं रहेगी. अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी जिस तरह से भारत ने अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पहले की तरह ही ईरान से अपने व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने की पुरानी नीति पर चलते रहने का निर्णय लिया था यह उसका ही परिणाम है क्योंकि आज भुगतान की समस्या को लेकर विश्व के अन्य देश ईरान के साथ चाहकर भी आर्थिक संबंधों को नहीं चला पा रहे हैं. ऐसे में जब भारतीय मुद्रा पर डॉलर और यूरो का दबाव बढ़ा है तो रूपये में किये जाने वाले किसी भी भुगतान से भारत के लिए कोई बड़ी समस्या सामने नहीं आने वाली है.
                                परमाणु सुरक्षा मुद्दे पर जिस तरह से ईरान ने अपने अनुसंधानों को जारी रखा हुआ है और वह एक सीमा से आगे किसी भी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी को छूट देने के पूरी तरह से खिलाफ़ है और अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर ही प्रयत्नशील है उस परिस्थति में उसके आक्रामक रुख को देखते हुए अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश उस पर किसी भी तरह का विश्वास नहीं करना चाहते हैं जबकि केवल भारत पर नकेल कसने के लिए उन्होंने जिस तरह से आज तक दुनिया के सबसे बड़े आतंकवाद के पोषक देश पाकिस्तान की मदद हमेशा से ही की है आज वो उसका ही फल भुगत रहे हैं. भारत के साथ अमेरिका और पश्चिमी देशों के सम्बन्ध जिस तरह से झूलते रहते हैं उस परिस्थिति में ईरान के साथ  भारत के इस तरह के द्विपक्षीय समझौतों से उन्हें यही लगता है कि भारत उनके अनुसार काम नहीं कर रहा है. भारत की अपनी आवश्यकताएं हैं और उन्हें पूरा करने के लिए भारत को अपने लिए नीतियां निर्धारित करने की छूट मिलनी ही चाहिए.
                             अमेरिका जिस तरह से अपने दीर्घकालिक आर्थिक और सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियां निर्धारित करने में सदैव ही लगा रहता है तो उसे इस बात का कोई हक़ नहीं है कि भारत ईरान व्यापार में वह अनावश्यक रूप से अड़ंगेबाजी लगाए. वैसे भी भारत द्वारा उसके प्रतिबन्ध के बाद भी जिस तरह से व्यापार को कम करने के स्थान पर प्राथमिकता से आगे बढ़ाने पर काम किया गया है वह उसे रास नहीं आ रहा है. अब रूपये में पूरा भुगतान होने से ईरान पर भी भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए अघोषित दबाव आने वाला है क्योंकि रूपये का अभी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वह प्रचलन नहीं है जैसा डॉलर का है तो अब इस अवसर का उपयोग कर भारत ईरान के साथ अन्य क्षेत्रों में अपने व्यापार को तेज़ी से बढ़ा भी सकता है. इस मामले में पूरे संबंधों को बचाए रखने के साथ पूरी तेज़ी से आर्थिक गतिविधियों को स्थायी विकास से आगे ले जाने की आवश्यकता है क्योंकि आज जो ईरान की मजबूरी है वह भारत के लिए एक अवसर के रूप में सामने आई है और इसके माध्यम से यदि दोनों देशों के बीच के व्यापार के स्तर को आगे और मज़बूती से बढ़ाया जा सके तो यह दोनों देशों के लिए अच्छा होगा. 
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