मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

शहीद और साधन

                            छत्तीसगढ़ की सुकमा घाटी में हुए नक्सली हमले में शहीद हुए सिपाही दीपक उपाध्याय की पत्नी ने जिस साहस के साथ केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री डॉ चरण दास महंत के हाथों एक बार केन्द्रीय सहायता लेने से इनकार करते हुए उनसे यह कहा कि "सर इस पैसे से जवानों के लिए बुलेट प्रूफ गाड़ियाँ खरीद लीजिये" उसने आज देश की आन्तरिक और बाहरी सुरक्षा में लगे हुए जवानों की वास्तविक स्थिति की तरफ ही इशारा कर दिया है. एक शहीद की पत्नी जब इस तरह की मांग करती है तो उसका महत्त्व भी बढ़ जाता है क्योंकि यह आम जवानों से जुड़ा हुआ मसला है. आम तौर पर देश के अन्य हिस्सों की जनता को यही बताया जाता है कि आतंक प्रभावी किसी भी क्षेत्र के लिए बड़े पैमाने पर उच्च स्तरीय सैनिक सामान की खरीद की जाती है जिसके माध्यम से जवानों को सुरक्षित रखा जाता है और साथ ही उनके लिए अन्य व्यवस्थाएं भी की जाती है पर सुकमा हमले में यह सब तैयारयाँ कहीं से भी दिखाई नहीं दीं और नक्सली बड़े आराम से अपनी योजना में सफल हो गए जबकि उस यात्रा में प्रदेश और देश के बड़े नाम भी शामिल थे ?
                                         देश की सुरक्षा में लगे हुए जवानों की उचित और प्रभावी सुरक्षा के बारे में अब पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इस तरह के किसी भी अशांत क्षेत्र में काम करते समय जिस तरह के ख़तरे सामने आते ही रहते हैं यदि उनसे निपटने के लिए सुरक्षा बलों की पूरी तैयारियां ही नहीं होंगीं तो पूरी व्यवस्था को किस तरह से संभाला जा सकेगा. शहीद सिपाही की पत्नी ने जो भी सवाल उठाये हैं वे सवाल किसी सेवारत सिपाही द्वारा नहीं उठाये जा सकते हैं क्योंकि वह सेवा शर्तों के साथ बंधे हुए होते हैं और उनके पास किसी भी परिस्थिति में काम करते रहने की शपथ भी होती है जो उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर पाती है पर उनके इस त्याग और बलिदान के लिए हमारी तरफ़ से उनके लिए जो कुछ भी किया जाना चाहिए आखिर वह क्यों नहीं किया जा सकता है ? नेताओं को अपनी चिंता तो सताती रहती है पर जब भी इन जवानों के लिए कुछ ठोस प्रयास करने की बात सामने आती है तो वे चुप्पी लगा जाते हैं ?
                                         अब एक देश व्यापी नीति बनाई जानी चाहिए जिसके माध्यम से पूरे देश के किसी भी क्षेत्र में इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए कुछ भी करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए वैसे भी सेना और अर्ध सैनिक बलों के जवान कभी भी अपने लिए कुछ भी नहीं मानते हैं पर इसका मतलब यह भी तो नहीं हो सकता है कि विपरीत परिस्थितियों में उनके लिए काम करने लायक माहौल और उपकरणों को अधिक दक्ष और प्रभावी न बनाया जाये जिससे किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी वे अपने कर्तव्य का पालन और भी दृढ़ता के साथ कर पाने में सफल हो सकें. ऐसी किसी भी परिस्थिति में जब जवानों के पास आवश्यक आधुनिक शस्त्र ही नहीं होंगें तो वे किस तरह से इन विद्रोहियों का सामना कर पायेंगें ? एक शहीद की पत्नी के एक सुझाव ने जिस तरह से महंत की बोलती बंद कर दी अब उसके बाद इस मसले पर केंद्र और राज्य सरकारों को अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों से आगे बढ़कर सुरक्षा के मोर्चे पर ठोस प्रयास करने की तरफ़ बढ़ना चाहिए. ऐसे प्रयास अचानक ही एकदम से नहीं किये जा सकते हैं इसलिए इन बलों के लिए एक दूरगामी नीति बनाकर उनके माध्यम से आज के समय की कमियों को दूर करने के प्रयास किये जाने चाहिए.         
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