केंद्र सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) के लिए एक बार फिर से अपनी मंशा ज़ाहिर करते हुए बैंकों को इस काम के क्रियान्वयन के लिए आम लोगों के खातों को आधार संख्या से जोड़ने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है क्योंकि सरकार जिस तेज़ी से इस काम को करना चाहती है और इसके चरण बद्ध रूप से लागू करवाने में जो भी अडचनें हैं उन्हें भी दूर करना चाहती है वह बिना बैंकों के काम काज में सुधार लाये संभव नहीं है. इस योजना के बेहतर प्रबंधन के लिए सभी बैंकों को ये निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं कि वे प्रत्येक ज़िले में इससे सम्बंधित एक शकायत प्रकोष्ठ की स्थापना करें जिससे आम लोगों को किसी समस्य के होने पर इसके लिए की जाने वाली आवश्यक प्रक्रिया को समय से निपटाया जा सके और इस योजना को पूरी गति से आगे भी बढ़ाया जा सके. देखने में यह पूरी योजना आने वाले समय में भ्रष्टाचार को कम करने में बहुत बड़ा योगदान कर सकती है क्योंकि जब सब्सिडी के माध्यम से खेले जाने वाले खेल में बिचौलियों की भूमिका सीमित हो जाएगी तो पूरा लाभ जनता तक खुद ही पहुंचना शुरू हो जायेगा.
किसी भी नई योजना के लिए जिस तरह से कानून में ही व्यवस्था की जानी चाहिए हमारी विधायिका उसमें हमेशा से ही चूक जाया करती है और फिर व्यवस्थागत खामियों के उजागर होने की दशा में उनसे निपटने के उपाय तलाशे जाने लगते हैं जबकि होना यह चाहिए कि किसी भी योजना जिसमें धन का प्रवाह अच्छे स्तर पर होना हो उसके दुरूपयोग को रोकने के बारे में भी शुरू से ही उचित और कठोर प्रयास किए जाने चाहिए और किसी भी स्तर पर इनको लागू करने में कोताही बरतने वालों के ख़िलाफ़ विभागीय कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे कानूनों के साथ खिलवाड़ करने की प्रक्रिया पर अंकुश लगाया जा सके और किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकारी नेता या कोई अन्य किसी भी योजना में अपनी टांग न मार सके ? इतना सब करने के लिए जिस इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है संभवतः वह हमारे नेताओं में बची ही नहीं है या फिर वे जान बूझकर ऐसे मार्ग खुले छोड़ देने में विश्वास किया करते हैं जिनसे कुछ अनियमितताएं भी की जा सकें और उनके निचले स्तर पर काम करने वाले कार्य कर्ताओं के लिए भी खाने पीने का जुगाड़ होता रहे ?
संविधान में ही अब इस बात की व्यवस्था भी होनी चाहिए जिससे किसी भी आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़ी योजना के बारे में निर्णय लेते समय सरकार के लिए यह बाध्यकारी भी हो कि वह धन के सुचारू रूप से सही लाभार्थियों तक पहुँचाने की व्यवस्था भी करे क्योंकि नई दिल्ली या राज्यों की राजधानियों में बैठकर जो भी योजनाएं स्वीकृत की जाती हैं उनके यथार्थ में असफल होने की कहानी भी वहीं से सिर्फ इसलिए ही लिखा जाती है क्योंकि उनकी निगरानी के लिए कोई मज़बूत व्यवस्था हमारे देश में अभी तक विकसित ही नहीं हो पाई है ? इस तरह से जब तक जवाबदेही निर्धारित किए जाने के बारे में कुछ सही क़दम नहीं उठाये जाएंगें तब तक विकास के नाम पर चलाई जाने वाली परियोजनाओं का भ्रष्टाचार के दुश्चक्र में उलझकर यही हश्र होने वाला है. हर एक महत्वपूर्ण परियोजना के बारे में सम्बंधित विभाग में ही केन्द्रीय स्तर पर एक शिकायती प्रकोष्ठ होना चाहिए जहाँ पर किसी भी तरह की अनियमितता के बारे में आम लोग इन्टरनेट या डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करा सकें क्योंकि जब तक लाभार्थियों के पास सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का मार्ग नहीं होगा किसी भी परियोजना की सफलता संदिग्ध ही रहने वाली है. डीबीटी और शिकायत प्रकोष्ठ
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
किसी भी नई योजना के लिए जिस तरह से कानून में ही व्यवस्था की जानी चाहिए हमारी विधायिका उसमें हमेशा से ही चूक जाया करती है और फिर व्यवस्थागत खामियों के उजागर होने की दशा में उनसे निपटने के उपाय तलाशे जाने लगते हैं जबकि होना यह चाहिए कि किसी भी योजना जिसमें धन का प्रवाह अच्छे स्तर पर होना हो उसके दुरूपयोग को रोकने के बारे में भी शुरू से ही उचित और कठोर प्रयास किए जाने चाहिए और किसी भी स्तर पर इनको लागू करने में कोताही बरतने वालों के ख़िलाफ़ विभागीय कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे कानूनों के साथ खिलवाड़ करने की प्रक्रिया पर अंकुश लगाया जा सके और किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकारी नेता या कोई अन्य किसी भी योजना में अपनी टांग न मार सके ? इतना सब करने के लिए जिस इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है संभवतः वह हमारे नेताओं में बची ही नहीं है या फिर वे जान बूझकर ऐसे मार्ग खुले छोड़ देने में विश्वास किया करते हैं जिनसे कुछ अनियमितताएं भी की जा सकें और उनके निचले स्तर पर काम करने वाले कार्य कर्ताओं के लिए भी खाने पीने का जुगाड़ होता रहे ?
संविधान में ही अब इस बात की व्यवस्था भी होनी चाहिए जिससे किसी भी आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़ी योजना के बारे में निर्णय लेते समय सरकार के लिए यह बाध्यकारी भी हो कि वह धन के सुचारू रूप से सही लाभार्थियों तक पहुँचाने की व्यवस्था भी करे क्योंकि नई दिल्ली या राज्यों की राजधानियों में बैठकर जो भी योजनाएं स्वीकृत की जाती हैं उनके यथार्थ में असफल होने की कहानी भी वहीं से सिर्फ इसलिए ही लिखा जाती है क्योंकि उनकी निगरानी के लिए कोई मज़बूत व्यवस्था हमारे देश में अभी तक विकसित ही नहीं हो पाई है ? इस तरह से जब तक जवाबदेही निर्धारित किए जाने के बारे में कुछ सही क़दम नहीं उठाये जाएंगें तब तक विकास के नाम पर चलाई जाने वाली परियोजनाओं का भ्रष्टाचार के दुश्चक्र में उलझकर यही हश्र होने वाला है. हर एक महत्वपूर्ण परियोजना के बारे में सम्बंधित विभाग में ही केन्द्रीय स्तर पर एक शिकायती प्रकोष्ठ होना चाहिए जहाँ पर किसी भी तरह की अनियमितता के बारे में आम लोग इन्टरनेट या डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करा सकें क्योंकि जब तक लाभार्थियों के पास सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का मार्ग नहीं होगा किसी भी परियोजना की सफलता संदिग्ध ही रहने वाली है. डीबीटी और शिकायत प्रकोष्ठ
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें