मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

भारत में जन्म और लॉटरी

                            ब्रिटेन के भारत में उच्चायुक्त जेम्स बेवन ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में अपने संबोधन में जिस तरह से भारत में जन्म लेने को २१ सदी में लगने वाली लॉटरी बताया है उससे यही लगता है कि आज भी दुनिया के हर देश में भारत की विविधता और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बाद विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने की मानसिकता कहीं न कहीं से एक आदर्श स्थिति पैदा करती है क्योंकि आज भी देश में जीने की जितनी आज़ादी हर नागरिक को मिली हुई है उतनी स्वतंत्रता दुनिया के किसी भी देश में उपलब्ध नहीं है और हर व्यक्ति अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ अपने भावों को खुले तौर पर व्यक्त करने के लिए भी स्वतंत्र भी है जिससे भी यह देश किसी के भी रहने के लिए आदर्श सपने जैसा ही है. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था और देश में बढती हुई युवाओं की संख्या ने दुनिया भर के देशों का ध्यान इधर आकृष्ट किया है उस स्थिति में अब भारत के पास इस पूरी सदी में करने के लिए बहुत कुछ है जिससे आज पूरी दुनिया की नज़रें भारत की तरफ़ लगी हुई हैं.
                             आज जब दुनिया के लोग भारत की तरफ़ इतनी आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं तो क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए इस देश में जन्म लेने के बाद पाने कर्तव्यों के साथ पूरी तरह से न्याय कर पा रहे हैं क्योंकि जब तक हम नागरिक अपने स्तर से भारतीय मूल्यों और परम्पराओं का अनुपालन सही तरह से नहीं करेंगें तब तक दूसरे देशों को हमारी सभ्यता और संस्कृति के साथ घुल मिल कर आगे कैसा बढाया जा सकेगा ? आज देश में जन्म लेने के बाद जिस तरह से हम अपनी नागरिक जिम्मेदारियों के अनुपालन में पूरी तरह से विफल साबित होते हैं उससे क्या साबित होता है ? क्या जेम्स बेवन का यह कथन बिलकुल सही नहीं है क्योंकि जिस तरह से लॉटरी लग जाने के बाद व्यक्ति पूरी तरह से लापरवाह हो जाता है ठीक उसी तरह से भारत में जन्म लेने के बाद हम भी लापरवाही से काम करते हैं जो कहीं न कहीं से हमारे साथ देश के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ सा ही होता है फिर भी इसके लिए आम भारतीय के मन में कोई अफ़सोस नहीं होता है कि उसने देश के लिए कुछ भी नहीं किया है ?
                           हम पांच वर्षों में एक बार किसी भी तरह से अपने वोट को डालकर देश पर यह एहसान करने से नहीं चूकते हैं कि हमने अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा कर दिया है अब यह समय आ गया है कि हमारे देश को पूरी तरह से आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में हम सभी मिलकर साथ आगे आयें क्योंकि विकास और नीतियों के लिए किसी भी सरकार पर दबाव की नीति बहुत दिनों तक नहीं चल पाती है और इसके साथ जिस तरह से देश में नेताओं को हम नागरिकों ने निरंकुश छोड़ा हुआ है वह भी देश के लिए के बड़ी समस्या ही है क्योंकि जब तक हमारा कड़ा और निरन्तर बना रहने वाला नियंत्रण देश की संवैधानिक संस्थाओं पर नहीं बनेगा तब तक देश के लिए उन मानदंडों को स्थापित कर पाना हमारे लिए आसान नहीं होगा ? आज भी हम जिस तरह से अपनी विविधता और समरसता को आसानी से मिला समझ कर उसकी कद्र नहीं करते हैं उसके बारे में मिस्र, ईराक और सीरिया के लोगों से पूछना चाहिए जिनके लिए वहां पर जीने लायक माहौल ही आज के समय में भी नहीं बन पा रहा है. देश को हिन्दू मुसलमानों के झगड़े में उलझने के स्थान पर सभी को आगे बढ़ाने की नीतियां ही अंत में कारगर साबित होने वाली हैं क्योंकि वोटों के लिए नेता हमारी इस लगी हुई लॉटरी को भुनाने में कभी भी ठेंगा दिखा सकते हैं ?   
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