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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

खाद्य सुरक्षा और वास्तविकता

                                           देश में पहले से ही चल रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के चलते जिस तरह से भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंचा हुआ है उसी परिदृश्य में जिस तरह से एक बार फिर खाद्य सुरक्षा के नाम पर से संप्रग सरकार द्वारा आम लोगों को खाद्य गारंटी देने की तरफ एक क़दम उठाया गया है उससे धरातल पर कितना बदलाव हो पायेगा यह तो समय ही बताएगा पर जिस तरह से इस तरह की भारी भरकम बजट वाली परियोजनाओं को बिना सही नियंत्रण के ही लागू कर दिया जाता है उससे इसका सही लाभ उन लोगों तक नहीं पहुँच पाता है जिनके लिए ये योजनायें बनाई जाती हैं. संप्रग सरकार ने जिस तरह से मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण और समाज में निचले स्तर पर बदलाव लाने वाली योजना के माध्यम से गांवों में स्थानीय स्तर पर ही रोज़गार उपलब्ध करने की पहल की और कुछ राज्यों ने इस दिशा में बेहतर प्रबंधन के द्वारा स्थानीय स्तर पर बड़े बदलाव करने में सफलता पाई वहीं दूसरे बहुत सारे राज्यों में यह महत्वपूर्ण योजना केवल भ्रष्टाचार की ही भेंट चढ़ती चली गयी और आम लोगों को इससे कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाया ?
                                         यह भी महत्वपूर्ण है कि आज देश के बिगड़ते हुए आर्थिक परिदृश्य में भी जिस तरह से संप्रग सरकार ने इस योजना को लाने के लिए प्रयास किये हैं उनका कोई जवाब नहीं है पर देश से जुड़े हुए इस तरह के मुद्दों पर यदि सभी राजनैतिक दल पहले से ही आम सहमति बनाकर अपने विचारों पर मंथन कर कुछ अच्छा देने के प्रयास ही करते रहें तो उससे परिस्थितियों में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है. किसी भी बड़े बदलाव को लागू करने के लिए जिस तरह से आम लोगों के हितों को समझने का सही प्रयास नीति निर्धारकों को अपनाना चाहिए वे कहीं से भी नहीं अपनाते हैं जिस कारण से भी कई बार अच्छी योजनायें भी आसानी से भ्रष्टाचार की भेंट ही चढ़ जाया करती हैं ? आज देश में भ्रष्टाचार के वर्तमान स्तर को देखते हुए अवश्य ही सरकार और विपक्ष ने इस बात का ध्यान रखा ही होगा कि इस महत्वपूर्ण कानून के माध्यम से जाने वाले धन और अनाज का सही दिशा में उपयोग भी किया जा सके वर्ना इतने बड़े आर्थिक बोझ को सह कर आख़िर देश को क्या हासिल होने वाला है ?
                                       इस तरह के सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हर विधेयक की एक बार फिर से समीक्षा की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब भी इस तरह के बहुत सारे कानून अस्तित्व में रहेंगें तो उन पर नज़र रखने के लिए बहुत सारे लोगों और बड़े स्तर पर व्यापक तंत्र की आवश्यकता होगी जिससे भी समाज तक वह लाभ नहीं पहुँच पाता है जिसके लिए ये पूरी कवायद की जाती है. आज के परिदृश्य में अब मनरेगा, मध्याह्न भोजन योजना और खाद्य सुरक्षा योजना को एकीकृत करने के बारे में भी विचार किया जाना आवश्यक है क्योंकि यदि देखा जाए तो समाज के सबसे पिछड़े और निचले आर्थिक वर्ग के लिए ही ये योजनायें बनाई जा रही हैं. जिन लोगों के बच्चे आज सरकार विद्यालयों में भोजन कर रहे हैं उन्हें ही रोज़गार की भी बहुत आवश्यकता है और जब सही दिशा में रोज़गार को सुनिश्चित कर दिया जायेगा तो देश में किसी भी कोने में कोई भी भूखा नहीं रह जायेगा. यदि केन्द्रीय स्तर पर एक ही विभाग से या एक नए विभाग को बनाकर उसके अंतर्गत इन तीनों बड़ी योजनाओं और कानूनों का एकीकरण कर दिया जाए तो उन पर नज़र रखना भी आसान हो जायेगा और जो धन अलग योजनाओं में जाने के कारण सही जगह तक नहीं पहुँच पाता है वह भी सही जगह तक आसानी से पहुँचने लगेगा पर इस सब में व्यापक नियंत्रण होने से जहाँ सांसद विधायक और मंत्रियों के साथ सत्ताधारी दल के छुट भैये नेताओं के पेट पर लात लग जाएगी वहीं उनकी चुनावी संभावनाएं भी गड़बड़ा सकती हैं इसलिए भी योजनाओं की भीड़ में आज आम जन अपने को खोजने में ही व्यस्त है.       
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