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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

गेंहूँ निर्यात और नीतियां

                              आर्थिक मामलों की केन्द्रीय मंत्रिमंडल की समिति ने एक बार फिर से ३०० डॉलर प्रति टन की दर से २० लाख टन गेंहूँ का निर्यात करने को मंज़ूरी दे दी है जिस बारे में सरकार का कहना है कि इससे उसके पास वर्तमान में भंडारण की समस्या से मुक्ति मिलेगी वहीं भंडारण के प्रबंधन को और भी अच्छे तरीके से संचालित किया जा सकेगा. यह सुखद सच ही है कि एक समय अनाज का आयात करने वाला भारत आज अपने अतिरिक्त अनाज को इस तरह से अन्य देशों को निर्यात भी करने की स्थिति में आ चुका है पर इस काम के लिए जिस तरह से प्रभावी नीति होनी चाहिए वह आज भी नहीं दिखाई देती है क्योंकि अनाज के बेहतर होते उत्पादन के बाद भी जितना अनाज हमारे यहाँ भंडारण क्षमता की कमी होने के कारण ख़राब हो जाता है उसको नियंत्रित करने के लिए अभी भी सरकार के पास कोई बेहतर कार्य योजना नहीं है और संभवतः इस मसले पर केवल काम चलाऊ नीतियों से समय काटा जाता है जबकि इस पर अब एक स्पष्ट नीति होनी ही चाहिए.
                            देश में निरंतर बढ़ते हुए अनाज उत्पादन के बाद भी जिस स्तर पर कृषि विभाग को और अधिक वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के अपने दायित्व को निभाना चाहिए उसमें वह पूरी तरह से निष्क्रिय ही रहा करता है उसके पास केवल खाना पूरी करने के लिए ही नीतियों का प्रचार करने का समय है बाक़ी सब भ्रष्टाचार की भेंट ही चढ़ जाया करता है. पंजाब और हरियाणा में जिस तरह से खेती योग्य भूमि की निरन्तर कमी होती चली गई जिससे वहां के प्रगति शील किसानों ने देश के अन्य हिस्सों की तरफ़ जाना शुरू किया और वहां पर उन्नत तरीके से खेती शुरू की जिसका असर सीधे वहां के स्थानीय किसानों पर भी पड़ा और वे भी धीरे धीरे प्रगतिशील और आधुनिक खेती की तरफ़ अपना रुख मोड़ने लगे जिससे भी पूरे देश से उन हिस्सों से अनाज के उत्पादन में तेज़ी दिखी जहाँ पर अभी तक किसान बदहाली का शिकार रहा करते थे ? इस तरह से जो काम सरकार का कृषि विभाग आज़ादी के बाद से नहीं कर पाया था उसे इन मेहनती किसानों ने अपने दम पर करके दिखा दिया जो अनाज उत्पादन के लक्ष्यों को पाने में बड़ा साधन साबित हुआ है.
                            आज भी सरकार के पास देश की वास्तविक आवश्यकता के अनुसार अनाज भण्डारण की सुविधा नहीं है जिससे अनाज का बहुत बड़ा हिस्सा बर्बाद भी होता रहता है इससे बचने के लिए अब सरकारों को ग्राम सभा स्तर पर ही छोटे भण्डारण के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए क्योंकि गांवों में पैदा हुए अनाज को लाने ले जाने में जितने धन की बर्बादी होती है उससे किसी अन्य काम को अंजाम दिया जा सकता है. ग्राम सभा स्तर के वार्षिक उपयोग से अधिक अनाज को ब्लॉक, तहसील और जनपद स्तर के गोदामों में भेजना चाहिए और किसी भी जिले की आवश्यकता से अधिक अनाज को सीधे निकटतम सीमावर्ती राज्यों में बंदरगाहों के निकट ही भंडारित करना चहिये और उनको पूरी तरह से निर्यात करने के लिए ही रखा जाना चाहिए साथ ही निर्यात के लिए इस तरह की औपचारिकतायें भी नहीं होनी चाहिए जिनमे बहुत लम्बा समय लगा करता है ? इस तरह से कई स्तरों पर भण्डारण करने से जहाँ अनाज की बर्बादी को रोका जा सकेगा वहीं देश को विदेशों से कुछ धन भी मिल सकेगा. इतने बड़े स्तर पर भण्डारण सुविधा बनाए जाने के लिए इस योजना को मनरेगा और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के साथ भी जोड़ दिया जाना चाहिए जिससे आधारभूत ढांचे को भी ग्राम सभा स्तर पर ही आसानी से बनाया जा सके.     
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