देश में महत्वपूर्ण मसलों और मुद्दों पर भी हमारे नेता किस तरह से कुछ भी बोलने से किस तरह परहेज़ नहीं करते हैं इसका ताज़ा उदाहरण पुंछ में पाकिस्तान द्वारा घात लगाकर किये गए हमले के बाद देखने में फिर से आया है. जिस तरह से संसद चल रही है तो सदन में इस घटना की जानकारी मिलने के बाद सभी सदस्यों ने इस मुद्दे पर सरकार से बयान देने की मांग की और बिना किसी सही जांनकारी और तैयारी के जिस तरह से रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी जैसे राजनीतिज्ञ से भूल हुई या जानबूझकर ऐसा किया गया वह यही दर्शाता है कि अब देश में हर मसले को कितनी सहजता और लापरवाही से लिया जाने लगा है ? देश को यह जानने का पूरा अधिकार है कि उस जगह सीमा पर पर क्या हुआ और किन परिस्थितियों में हमारे जवानों पर इस तरह से घात लगाकर हमला किया गया और साथ ही आख़िर हमारी तरफ़ से ऐसी क्या कमी है जिस कारण से पाक आसानी से हमारे जवानों को इस तरह से निशाने पर लेता रहता है ? देश के लिए यह एक बेहद संवेदनशील मसला है और इस मसले पर सरकार से एक बड़ी चूक तो हुई ही है.
यह सही है कि सरकार पूरी तरह से इस तरह की किसी भी घटना पर सेना की रिपोर्ट मिलने के बाद ही कार्यवाही करती है पर जिस तरह से पाक को एंटोनी के बयान में संदेह का लाभ दिया गया उसे खुद पाक भी हमारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है क्योंकि उस बयान में जिस तरह से संदेह जताया गया कि सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया है तो पाक भी यह कह सकता है कि यह कश्मीरी लड़ाकों का काम है और इससे उसका या उसकी सेना का कोई लेना देना भी नहीं है ? इस तरह की किसी भी घटना पर कोई बयान देने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बयान पूरा और सही है क्योंकि उस समय केवल हमले और शहीद हुए जवानों की बात भी कही जा सकती थी और साथ ही यह भी जोड़ा जा सकता था कि सेनाध्यक्ष खुद वहां पर स्थिति का जायज़ा लेने गए हैं और उनकी रिपोर्ट मिलने के बाद ही स्थिति पर पूरा बयान दिया जायेगा पर जिस तरह से विपक्ष ने सरकार पर दबाव बनाया और सरकार ने हड़बड़ी में बयान दिया उसका कोई औचित्य नहीं बनता है.
सरकार चलाने और उसे बेहतर ढंग से चलाने में जो अंतर होता है वह भारत में सदैव से ही दिखाई देता रहता है क्योंकि यहाँ पर जिस तरह से किसी भी व्यक्ति को कोई भी मंत्रालय सौंप दिए जाने की परंपरा रही है उस स्थिति में और क्या किया भी जा सकता है ? कोई भी राजनैतिक दल अपने नेताओं को इस तरह से कोई प्रशिक्षण ही नहीं देता है जिससे उन्हें विषय विशेष में प्रवीणता हासिल हो सके और समय आने पर यदि वे मंत्री बनते हैं तो उनको उस विभाग की अच्छे से जानकारी भी हो पर देश में जिस तरह से केवल चाटुकारिता और उथलेपन को अब नेतागिरी का अच्छा साधन माना जाने लगा है तो उस परिस्थिति में इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए ? जिन लोगों ने भी यह बयान लिखा, देखा और पारित किया उनकी जांच अवश्य की जानी चाहिए क्योंकि एंटोनी के कार्यकाल में जिस तरह से रक्षा दलालों के लिए काम करना मुश्किल हो रहा है कहीं उनमें से ही किसी का यह काम तो नहीं है कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर भ्रामक बयान दिलवाकर उन्हें देश के निशाने पर लाया जाए और सरकार को दबाव में ही सही उन्हें हटाने को मजबूर होना पड़े ? जिन लोगों की भूमिका इस बयान में रही है एक बार उनकी पृष्ठभूमि पर भी नज़र डालना आवश्यक ही हो गया है तभी सही बात सामने आ सकेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि सरकार पूरी तरह से इस तरह की किसी भी घटना पर सेना की रिपोर्ट मिलने के बाद ही कार्यवाही करती है पर जिस तरह से पाक को एंटोनी के बयान में संदेह का लाभ दिया गया उसे खुद पाक भी हमारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकता है क्योंकि उस बयान में जिस तरह से संदेह जताया गया कि सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया है तो पाक भी यह कह सकता है कि यह कश्मीरी लड़ाकों का काम है और इससे उसका या उसकी सेना का कोई लेना देना भी नहीं है ? इस तरह की किसी भी घटना पर कोई बयान देने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बयान पूरा और सही है क्योंकि उस समय केवल हमले और शहीद हुए जवानों की बात भी कही जा सकती थी और साथ ही यह भी जोड़ा जा सकता था कि सेनाध्यक्ष खुद वहां पर स्थिति का जायज़ा लेने गए हैं और उनकी रिपोर्ट मिलने के बाद ही स्थिति पर पूरा बयान दिया जायेगा पर जिस तरह से विपक्ष ने सरकार पर दबाव बनाया और सरकार ने हड़बड़ी में बयान दिया उसका कोई औचित्य नहीं बनता है.
सरकार चलाने और उसे बेहतर ढंग से चलाने में जो अंतर होता है वह भारत में सदैव से ही दिखाई देता रहता है क्योंकि यहाँ पर जिस तरह से किसी भी व्यक्ति को कोई भी मंत्रालय सौंप दिए जाने की परंपरा रही है उस स्थिति में और क्या किया भी जा सकता है ? कोई भी राजनैतिक दल अपने नेताओं को इस तरह से कोई प्रशिक्षण ही नहीं देता है जिससे उन्हें विषय विशेष में प्रवीणता हासिल हो सके और समय आने पर यदि वे मंत्री बनते हैं तो उनको उस विभाग की अच्छे से जानकारी भी हो पर देश में जिस तरह से केवल चाटुकारिता और उथलेपन को अब नेतागिरी का अच्छा साधन माना जाने लगा है तो उस परिस्थिति में इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए ? जिन लोगों ने भी यह बयान लिखा, देखा और पारित किया उनकी जांच अवश्य की जानी चाहिए क्योंकि एंटोनी के कार्यकाल में जिस तरह से रक्षा दलालों के लिए काम करना मुश्किल हो रहा है कहीं उनमें से ही किसी का यह काम तो नहीं है कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर भ्रामक बयान दिलवाकर उन्हें देश के निशाने पर लाया जाए और सरकार को दबाव में ही सही उन्हें हटाने को मजबूर होना पड़े ? जिन लोगों की भूमिका इस बयान में रही है एक बार उनकी पृष्ठभूमि पर भी नज़र डालना आवश्यक ही हो गया है तभी सही बात सामने आ सकेगी.
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