लगता है कि पाक ने अपने पडोसी देश भारत को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ने का मन बना ही लिया है क्योंकि जिस तरह से वह आज भी एक तरफ़ दोस्ती की बात करता है वहीं दूसरी तरफ़ पीठ में छुरा घोपने से बाज़ नहीं आता है ? अब जब पाक में नयी सरकार का गठन हो चुका है तो वहां की परिस्थितियां एक बार फिर से आतंकियों के अनुकूल हो गयी हैं क्योंकि नवाज़ शरीफ के कार्यकाल में ही जब अटल दोस्ती बढ़ाने के लिए लाहौर यात्रा कर रहे थे तो पाक सेना कारगिल में घुसपैठ करने में लगी हुई थी पर इस सब के बाद भी क्या भारत की आज तक की किसी भी सरकार ने पाकिस्तान को उतना कद सबक सिखाने के बारे में सोचा है जितना इंदिरा गाँधी ने उसे १९७२ के युद्ध में सिखाया था ? नवाज़ शरीफ़ के पंजाब से आने के कारण संभवतः उनकी पार्टी उन इस्लामी चरम पंथियों के साथ बेहतर तालमेल रखती है जो भारत में अशांति फैलाना चाहते हैं ? भारत आज क्यों इसके लिए कड़ा उत्तर पाक को नहीं दे पाता है शायद इसलिए नहीं क्योंकि आज नेताओं के पास वह शक्ति और सामर्थ्य नहीं बची है जिसके दम पर वे कड़े क़दम उठाकर पाक को उसकी हद में रहना सिखा सकें जिसका लाभ पाक हर बार इस तरह से छिपकर वार करने के साथ ही उठाया करता है ?
इस मसले को जितनी संजीदगी के साथ लिया जाना चाहिए शायद आज भी हमारे नेता और राजनैतिक तंत्र के साथ विदेश विभाग में बठे हुए नीति निर्धारित करने वाले अधिकारी भी अभी तक यह समझ नहीं पाए हैं कि भारत की पकिस्तान से जुडी नीति में कहीं कोई ख़ामी अवश्य ही है क्योंकि जब तक हम अपनी इस पुरानी नीति पर ही चलने की कोशिशें करते रहेंगें तब तक परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता है. अब यह समय की आवश्यकता है कि देश पाकिस्तान के साथ इस्लामी चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अपनी नीतियों में समय के अनुसार बदलाव करने के बारे में सोचना शुरू कर ही दे क्योंकि नीतियां एक झटके में नहीं बनाई और बदली जाती हैं जिस कारण से भी देश को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है कहने को कोई कुछ भी कह दे पर कंधार अपहरण कांड के समय यदि हमारे पास कोई कारगर नीति होती तो आज पाकिस्तान इतना दुस्साहस नहीं कर पाता ? नीतियों के बदलाव के साथ पाक को हर मोर्चे पर कड़ा संदेश देने की भी आवश्यकता आज आ ही गयी है.
संसद में जिस तरह से इस बात को लेकर केवल सरकार को घेरने का काम विपक्ष द्वारा किया जाता है और सरकार किसी भी तरह केवल एक तरह का रटा रटाया बयान देकर ही अपने कर्तव्य को पूरा मान लेती है अब संसद को उससे बहुत आगे जाने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक देश के पास पाक के लिए कड़ा संदेश और प्रतिरोध करने की नीति नहीं होगी तब तक पाक इस तरह से उन सीमावर्ती पोस्टों पर इस तरह की हरकतें करता ही रहेगा जहाँ पर भारतीय क्षेत्र से पहुंचना थोड़ा कठिन है और वह लाभ की स्थिति में है ? सबसे पहले सेना को राजनैतिक पहल से दूर रहते हुए अपनी पहुँच को उस सभी सैनिकों तक और अच्छा करना चाहिए जो बिलकुल ही सीमा पर तैनात हैं क्योंकि इस तरह की किसी भी गतिविधि से सबसे पहले वह और उसके जवान ही प्रभावित होते हैं पर नेता केवल कोरी बयानबाज़ी के साथ ही पूरे मसले को भूल जाते हैं और देश की जनता में जो आक्रोश उत्पन्न होता है वे उसकी कोई परवाह भी नहीं करते हैं ? अब सेना से ही देश को आशा है कि वह अपने जवानों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास बिना सरकार की अनुमति के ही करना सीख ले क्योंकि अब सेना के निर्दोष जवानों पर इस तरह से किया गया किसी भी हमले को जनता कड़े प्रतिवाद के साथ समाप्त होते देखना चाहती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मसले को जितनी संजीदगी के साथ लिया जाना चाहिए शायद आज भी हमारे नेता और राजनैतिक तंत्र के साथ विदेश विभाग में बठे हुए नीति निर्धारित करने वाले अधिकारी भी अभी तक यह समझ नहीं पाए हैं कि भारत की पकिस्तान से जुडी नीति में कहीं कोई ख़ामी अवश्य ही है क्योंकि जब तक हम अपनी इस पुरानी नीति पर ही चलने की कोशिशें करते रहेंगें तब तक परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता है. अब यह समय की आवश्यकता है कि देश पाकिस्तान के साथ इस्लामी चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अपनी नीतियों में समय के अनुसार बदलाव करने के बारे में सोचना शुरू कर ही दे क्योंकि नीतियां एक झटके में नहीं बनाई और बदली जाती हैं जिस कारण से भी देश को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है कहने को कोई कुछ भी कह दे पर कंधार अपहरण कांड के समय यदि हमारे पास कोई कारगर नीति होती तो आज पाकिस्तान इतना दुस्साहस नहीं कर पाता ? नीतियों के बदलाव के साथ पाक को हर मोर्चे पर कड़ा संदेश देने की भी आवश्यकता आज आ ही गयी है.
संसद में जिस तरह से इस बात को लेकर केवल सरकार को घेरने का काम विपक्ष द्वारा किया जाता है और सरकार किसी भी तरह केवल एक तरह का रटा रटाया बयान देकर ही अपने कर्तव्य को पूरा मान लेती है अब संसद को उससे बहुत आगे जाने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक देश के पास पाक के लिए कड़ा संदेश और प्रतिरोध करने की नीति नहीं होगी तब तक पाक इस तरह से उन सीमावर्ती पोस्टों पर इस तरह की हरकतें करता ही रहेगा जहाँ पर भारतीय क्षेत्र से पहुंचना थोड़ा कठिन है और वह लाभ की स्थिति में है ? सबसे पहले सेना को राजनैतिक पहल से दूर रहते हुए अपनी पहुँच को उस सभी सैनिकों तक और अच्छा करना चाहिए जो बिलकुल ही सीमा पर तैनात हैं क्योंकि इस तरह की किसी भी गतिविधि से सबसे पहले वह और उसके जवान ही प्रभावित होते हैं पर नेता केवल कोरी बयानबाज़ी के साथ ही पूरे मसले को भूल जाते हैं और देश की जनता में जो आक्रोश उत्पन्न होता है वे उसकी कोई परवाह भी नहीं करते हैं ? अब सेना से ही देश को आशा है कि वह अपने जवानों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास बिना सरकार की अनुमति के ही करना सीख ले क्योंकि अब सेना के निर्दोष जवानों पर इस तरह से किया गया किसी भी हमले को जनता कड़े प्रतिवाद के साथ समाप्त होते देखना चाहती है.
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