मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

अमेरिका और आर्थिक संकट

                             जिस तरह से अमेरिकी केन्द्रीय बैंक की बांड खरीद योजना को अभी और चालू रखने की घोषणा के बाद से ही सभी एशियाई वित्तीय बाजारों में तेज़ी दिखाई देनी शुरू हो गयी है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि एशिया के बाजारों की अर्थ व्यवस्थाएं चाहे कितनी भी मज़बूत क्यों न हो डॉलर के वैश्विक मुद्रा होने के कारण अमेरिका में होने वाली हर आर्थिक गतिविधि का असर उन पर अवश्य ही पड़ता है. पिछले कुछ सप्ताहों से जिस तरह से भारतीय रूपये की कीमतें गिरती ही जा रही थीं उससे भी देश के कई आर्थिक विशेषज्ञ इसे पूरी तरह से मनमोहन सरकार की विफलता के रूप में प्रचारित करने में लगे हुए थे पर उस असर से केवल भारत ही नहीं बल्कि आज की तेज़ी से बढती हुई सभी अर्थ व्यवस्थाएं प्रभावित हुई थीं. पिछली सदी में अमेरिका के आर्थिक जगत में वर्चस्व के कारण जिस तरह से डॉलर को अन्तराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में अघोषित मान्यता मिली हुई है कई बार अन्य देशों के लिए यह भी संकट का कारण बन जाया करता है.
                             वैसे तो बाज़ार की कमजोरी या तेज़ी का सीधे तौर पर देश के आम लोगों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता है फिर भी जब रूपये की कीमतें गिरती ही जाती हैं तो डॉलर चुका कर खरीदी जाने वाली हर उपभोक्ता वस्तु में उतनी तेज़ी दिखाई देने लगती है. भारतीय अर्थ व्यवस्था आज भी ग्रामीण संसाधनों और मानसून पर बहुत हद तक निर्भर किया करती है पर अभी भी जिस तरह से हमारे आर्थिक मामलों में स्थिरता होनी चाहिए वह आज भी दिखाई नहीं देती हैं जिस कारण से भी अमेरिका में घटने वाली कोई भी आर्थिक हलचल हमारे बाज़ार को भी हिला कर रख देती है ? अभी तीन महीने के लिए बांड खरीद जारी रखने के अमेरिकी फैसले के बाद जिस तरह से देश के आर्थिक परिदृश्य में थोडा सुधार दिख रहा है अब उसका लाभ नीतिगत मुद्दों के साथ उठाने का प्रयास करना चाहिए और सभी दलों को मिलकर उस तरह के किसी संकट से बचने के और सुरक्षित मार्ग के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए.
                            हमारे देश की अर्थ व्यवस्था आज भी वैश्विक रूप से उतना सीधा असर डालने की स्थिति में नहीं है इसलिए अब हमें अपने आर्थिक आधार को मज़बूत करना चाहिए और जिन देशों के साथ हमारा तेल आदि का बड़ा व्यापार होता है उनसे द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से दोनों देशों की मुद्रा में ही विनिमय करना चाहिए जिससे उसका सीधा लाभ भारत के साथ उस दूसरे देश को भी मिल सके पर यह सब कहने में जितना अच्छा लगता है संभवतः करने में उतना ही कठिन है क्योंकि खाड़ी देशों में आज भी डॉलर को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. आज की तारीख में केवल ईरान से ही भारतीय मुद्रा में कच्चा तेल आयात किया जाता है शायद वह भी इसलिए है कि ईरान पर बहुत सारे आर्थिक प्रतिबन्ध लगे हुए हैं और उनके चलते वह भी भारत के साथ रूपये में व्यापार करने को मजबूर अधिक है. यदि अन्य देश इस मजबूरी को अपनी सुविधा में बदले तो भारत में बनने वाले अन्य उपभोक्ता सामान और कृषि उत्पादों का निर्यात भी दोनों देशों की मुद्रा में किया जा सकता है और डॉलर पर निर्भरता कम भी की जा सकती है.      अमेरिका और आर्थिक संकट
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें