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बुधवार, 25 सितंबर 2013

नेताओं के फर्जी फ़ोन

                                            मुज़फ्फरनगर दंगों के समय फ़ोन कर पुलिस को कार्यवाही से रोकने का आज़म खान का कथित फ़ोन हो या फिर सोनिया गाँधी बनकर वाहनवती को इस्तीफ़ा देने की बात करे वाला कोई और अब आज के समय में जिस तरह से बड़े नेताओं का नाम लेकर काम चलाने की गतिविधियाँ बढ़ी हुई नज़र आ रही हैं उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अवश्य हो रहा है जिसके माध्यम से सरकार के प्रभावशाली लोगों के कथित करीबी इन नामों का लाभ उठाने की कोशिशें करने में लगे हुए हैं ? यहाँ पर सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार के पास इतने अधिक संसाधन हैं तो आखिर कोई इतने बड़े पद पर बैठा हुआ व्यक्ति आखिर किस तरह से स्वयं या अपने किसी व्यक्ति के साथ मिलकर ऐसा काम करेगा जबकि सरकार में वे स्वयं ही कोई भी काम कराने में सक्षम हैं ? फिलहाल इस तरह के मामलों में बढ़ोत्तरी होने के बाद से यह ध्यान देना बहुत आवश्यक है कि किसी भी स्तर पर किसी भी सिफारिश को करने से पहले नेता एक आचार संहिता का अनुपालन करें जिससे फर्जीवाडे को रोका जा सके और अनावश्यक होने वाले विवादों से भी बचा जा सके.
                                           आज़म और सोनिया ऐसे नाम हैं कि यदि उन्हें अपनी सरकारों में कुछ भी कराना होगा तो वे सीधे सरकारों के मुखियाओं से ही करा सकते हैं फिर इस तरह के फ़ोन आने पर आखिर कोई भी अधिकारी या छोटे स्तर का नेता उस बात की छानबीन क्यों नहीं करना चाहता है कि वास्तव में उस फ़ोन के पीछे क्या सच्चाई है क्योंकि जब तक सरकारों में इतने प्रभावशाली लोग रहेंगें उनके नाम का दुरूपयोग होने की संभावनाएं भी बनी ही रहेंगीं ? फिर भी इस पूरे मसले को काफी ध्यान से देखने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक ऊपर से सख्ती नहीं की जाएगी तब तक अपेक्षित परिमाण हासिल नहीं किये जा सकेंगें और कहीं न कहीं से कानून की धज्जियाँ उड़ाने वाले अपने काम को सफलता पूर्वक अंजाम देते रहेंगें. नेताओं को स्वयं ही केवल अपने अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से काम करने वालों के बारे में प्रशासन को सूचित करके रखना चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर सही और फर्जी में पहचान आसानी से की जा सके.
                                               जब हर नेता के पास अपना व्यक्तिगत स्टाफ रहता है तो उन्हें यह तो स्पष्ट करना ही होगा कि किसके कहने पर किस स्तर तक के काम किये जा सकते हैं और किस तरह के काम बिना उनकी सीधी अनुमति के नहीं किये जा सकते हैं ? सबसे पहले तो इन चोर रास्तों से सिफारिश करने की आदत से नेताओं को स्वयं ही छुटकारा पाने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक पूरी तरह से इस तरह से काम करने की प्रक्रिया पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा तब तक कोई न कोई इस तरह की हरकतें करने से बाज़ नहीं आने वाला है ? आमतौर पर तंत्र को बिगाड़कर छोटे और मौखिक रास्ते को अपनाने की नेताओं की आदत का कुछ चालाक तत्व बड़ी आसानी से लाभ उठाकर अपने काम को निकालते रहते हैं फिर भी नेता किसी भी तरह से इसे रोकने के लिए तत्पर नहीं दिखाई देते हैं. सबसे पहले प्रशासनिक कार्यों में किसी भी तरह के दखल को रोकते हुए अधिकारियों को अपना काम करने की पूरी छूट देनी ही होगी क्योंकि जब तक सुधार ऊपर से नहीं शुरू किये जायेंगें तब तक इस तरह की घटनाएँ तो सामने आती ही रहेंगीं.       
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