इस वर्ष गया में वार्षिक पितृ पक्ष मेले में अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के उद्देश्य से गया पहुंचना अपने आप में एक ऐसी घटना थी जो अध्यात्मिक रूप से अवि-स्मरणीय होने के साथ बिहार और बिहारियों के बारे में पुराणी अवधारणा को पूरी तरह से तोड़ने वाली ही साबित हुई. एक ऐसा मेला जिसमें आने वाले श्रद्धालु पूरी तरह से श्रद्धा से परिपूर्ण होते हैं और देश में जिस तरह से किसी भी धार्मिक स्थल पर जो भी कुव्यवस्था पूरे वर्ष ही दिखाई देती है इतने बड़े जन समुद्र के इकठ्ठा होने के बाद भी वह कहीं से भी गया में दिखाई नहीं दे रही थी. गया स्टेशन के हर प्लेटफार्म पर जन सुविधा केंद्र बनाये गए थे जिससे इस मेले के प्रति रेलवे की तैयारियों के बारे में स्पष्ट ही समझा जा सकता था और किसी भी पल आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए अतिरिक्त रूप से सुरक्षा बल भी तैनात दिखाई दे रहे थे जिससे आने जाने वालों में सुरक्षा की भावना बढाने में ही मदद मिल रही थी क्योंकि हाल ही में बोधगया मंदिर में आतंकी हमले के बाद से जिस तरह से लोग गया के बारे में सोच रहे थे सुरक्षा उससे भी कई गुना बेहतर थी.
पूरे गया क्षेत्र में गया नगर निगम के कार्य की जितनी सराहना की जाये उतनी ही कम है क्योंकि जितनी तत्परता से हर पिंड दान स्थल पर उसने सफाई कर्मचारियों के साथ अधिकारियों की तैनाती की हुई थी उसका असर साफ़ तौर पर यह दिखाई दे रहा था कि कहीं पर भी किसी भी तरह की कोई गंदगी तक नहीं दिखाई दे रही थी थी. यहाँ तक कि अपने पंडा जी के निवास तक आने जाने में जिन भी गलियों का उपयोग मैंने किया वहां पर भी स्वच्छता आम तौर से परिलक्षित ही हो रही थी. निगम के छोटे वाहन जिस तरह से पूरी तत्परता के साथ गलियों तक में सफाई का ध्यान रख रहे थे उससे तीर्थ स्थलों में सफाई की इतनी अच्छी व्यवस्था पहली बार ही दिखाई देने के संकेत स्पष्ट थे. नगर निगम के साथ जिस तरह से प्रशासन ने भी अपने स्तर से यात्रियों के लिए जगह जगह पर सहायता बूथ बना रखे थे उससे भी आम लोगों को काफी सहायता मिल रही थी और पुलिस की तेज़ी देखने ही लायक थी क्योंकि बड़ी भीड़ इकठ्ठा होने पर सबसे यातायात पर ही अधिक दबाव पड़ता है पर लगभग हर चौराहे पर उचित निर्देशों के साथ डटे हुए सिपाही पूरे मनोयोग से यातायात को संभाल रहे थे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उनके निर्देशों को पूरा करने के लिए नियम कानून तोड़ने के लिए बदनाम आम बिहारी गया वासी भी पूरा सहयोग कर रहे थे.
कुल मिलाकर पूरी व्यवस्था में जितने प्रयत्न किये गए थे वे स्पष्ट रूप से हर जगह पर परिलक्षित हो रहे थे और उनका लाभ आम यात्रियों को मिल भी रहा था. विष्णुपद मंदिर के पास ही जिला प्रशासन द्वारा एक बड़ा प्रवचन पंडाल लगाया गया है जिससे प्रसिद्ध कथावाचक अपनी कथा से श्रद्धालुओं को अमृत रस का पान कराने में लगे हुए हैं. इस पूरी व्यवस्था में जहाँ सब कुछ ठीक ही था पर सार्वजनिक परिवहन के रूप में चल रही बसों और ऑटो के बारे में संभवतः अभी भी नगर निगम के साथ प्रशासन को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है क्योंकि इतना बड़ा शहर होने के साथ लोगों को आने जाने के लिए ऑटो की बहुत आवश्यकता पड़ती है पर जिस तरह से ऑटो चालक आम यात्रियों के थके होने की मजबूरी का लाभ उठाने में लगे हुए थे केवल यह एक ऐसा पक्ष था जिसे सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि जब पूरे दिन के कार्यक्रम के बाद लोग अपने डेरों पर जाना चाहते हैं तो ऑटो वालों का रवैया पूरे गया के रवैये से मेल खाता नहीं लगता है. इसके साथ ही प्रेत शिला पर भी प्रशासन की पहुँच कुछ कम ही दिखाई दी निश्चित तौर पर वह स्थान नगर निगम से बाहर है पर यदि विशेष अवसर होने के कारण नगर निगम वहां पर भी कुछ व्यवस्था कर दे या जिला प्रशासन ही उसके लिए धन आवंटित कर निगम को अधिकार दे दे तो संभवतः वहां पर भी व्यवस्था बहुत सुचारू रूप से चल सके. कुल मिलाकर मेला संपन्न कराने में चाहे बिहार सरकार, नगर निगम-गया या जिला प्रशासन-गया जो भी लगे हुए हैं सभी कार्य प्रशंसनीय हैं और इसक अध्ययन करके अन्य राज्य सरकारों को अपने यहाँ होने वाले बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए कुछ ऐसा ही करने का प्रयास भी करना चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पूरे गया क्षेत्र में गया नगर निगम के कार्य की जितनी सराहना की जाये उतनी ही कम है क्योंकि जितनी तत्परता से हर पिंड दान स्थल पर उसने सफाई कर्मचारियों के साथ अधिकारियों की तैनाती की हुई थी उसका असर साफ़ तौर पर यह दिखाई दे रहा था कि कहीं पर भी किसी भी तरह की कोई गंदगी तक नहीं दिखाई दे रही थी थी. यहाँ तक कि अपने पंडा जी के निवास तक आने जाने में जिन भी गलियों का उपयोग मैंने किया वहां पर भी स्वच्छता आम तौर से परिलक्षित ही हो रही थी. निगम के छोटे वाहन जिस तरह से पूरी तत्परता के साथ गलियों तक में सफाई का ध्यान रख रहे थे उससे तीर्थ स्थलों में सफाई की इतनी अच्छी व्यवस्था पहली बार ही दिखाई देने के संकेत स्पष्ट थे. नगर निगम के साथ जिस तरह से प्रशासन ने भी अपने स्तर से यात्रियों के लिए जगह जगह पर सहायता बूथ बना रखे थे उससे भी आम लोगों को काफी सहायता मिल रही थी और पुलिस की तेज़ी देखने ही लायक थी क्योंकि बड़ी भीड़ इकठ्ठा होने पर सबसे यातायात पर ही अधिक दबाव पड़ता है पर लगभग हर चौराहे पर उचित निर्देशों के साथ डटे हुए सिपाही पूरे मनोयोग से यातायात को संभाल रहे थे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उनके निर्देशों को पूरा करने के लिए नियम कानून तोड़ने के लिए बदनाम आम बिहारी गया वासी भी पूरा सहयोग कर रहे थे.
कुल मिलाकर पूरी व्यवस्था में जितने प्रयत्न किये गए थे वे स्पष्ट रूप से हर जगह पर परिलक्षित हो रहे थे और उनका लाभ आम यात्रियों को मिल भी रहा था. विष्णुपद मंदिर के पास ही जिला प्रशासन द्वारा एक बड़ा प्रवचन पंडाल लगाया गया है जिससे प्रसिद्ध कथावाचक अपनी कथा से श्रद्धालुओं को अमृत रस का पान कराने में लगे हुए हैं. इस पूरी व्यवस्था में जहाँ सब कुछ ठीक ही था पर सार्वजनिक परिवहन के रूप में चल रही बसों और ऑटो के बारे में संभवतः अभी भी नगर निगम के साथ प्रशासन को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है क्योंकि इतना बड़ा शहर होने के साथ लोगों को आने जाने के लिए ऑटो की बहुत आवश्यकता पड़ती है पर जिस तरह से ऑटो चालक आम यात्रियों के थके होने की मजबूरी का लाभ उठाने में लगे हुए थे केवल यह एक ऐसा पक्ष था जिसे सुधारने की आवश्यकता है क्योंकि जब पूरे दिन के कार्यक्रम के बाद लोग अपने डेरों पर जाना चाहते हैं तो ऑटो वालों का रवैया पूरे गया के रवैये से मेल खाता नहीं लगता है. इसके साथ ही प्रेत शिला पर भी प्रशासन की पहुँच कुछ कम ही दिखाई दी निश्चित तौर पर वह स्थान नगर निगम से बाहर है पर यदि विशेष अवसर होने के कारण नगर निगम वहां पर भी कुछ व्यवस्था कर दे या जिला प्रशासन ही उसके लिए धन आवंटित कर निगम को अधिकार दे दे तो संभवतः वहां पर भी व्यवस्था बहुत सुचारू रूप से चल सके. कुल मिलाकर मेला संपन्न कराने में चाहे बिहार सरकार, नगर निगम-गया या जिला प्रशासन-गया जो भी लगे हुए हैं सभी कार्य प्रशंसनीय हैं और इसक अध्ययन करके अन्य राज्य सरकारों को अपने यहाँ होने वाले बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए कुछ ऐसा ही करने का प्रयास भी करना चाहिए.
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