दागी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जिस तरह से सभी दलों ने एक स्वर से कोर्ट के इस फैसले को संसद के काम काज में हस्तक्षेप बताया था और जिस तेज़ी के साथ सरकार ने भी इस मामले में दोषी नेताओं को बचाने के लिए जल्दबाजी में सर्वदलीय बैठक बुलाई और फिर अध्यादेश के माध्यम से नेताओं को बचाने की कोशिशें शुरू की हैं उनका देश में कोई औचित्य नहीं है. आज जब देश के पूरे राजनैतिक स्वरुप और दलों के साथ संसद की गरिमा का आम नागरिकों के मन में कोई मोल नहीं रह गया है तो ऐसे समय में इस तरह के अध्यादेशों को जारी करने से आखिर सरकार को क्या राजनैतिक लाभ मिलने वाला है यह तो वही जाने पर इससे नेताओं की पहले दे ही दागदार छवि पर और अधिक उँगलियाँ उठने की पूरी संभावनाएं हैं. केवल राजनैतिक कारणों से भाजपा ने जहाँ पहले तो कोर्ट के निर्णय की आलोचना की और जब अध्यादेश आया है तो उसने राष्ट्रपति से मिलकर उनसे इस पर हस्ताक्षर न करने का अनुरोध किया है आखिर देश में किस तरह की राजनीति की जा रही है संभवतः यह किसी को भी नहीं पता है ?
भाजपा के विरोध को यदि दरकिनार भी कर दिया जाये तो इस तरह के अध्यादेश की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि जब मामला कोर्ट में चल ही रहा है और उस पर सभी दल अपने स्तर से विचार करने में लगे हुए हैं तो कोई भी क़दम इतनी आसानी से और जल्दबाजी में उठाये जाने की क्या आवश्यकता थी ? इस मामले में जिस तरह से केन्द्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने खुले तौर पर अपनी असहमति प्रदर्शित की है उससे जनता भी सहमत है पर कांग्रेस के अन्दर भी अब इस बात पर फिर से मंथन होने की बारी आ गयी है क्योंकि उससे जुड़े हुए दल भी जनता के सामने अपने को पाक साफ़ दिखाने के लिए इस अध्यादेश का विरोध करने पर आमादा होने वाले हैं तो पहले साथ खड़ी भाजपा के दूर हो जाने के साथ अब कांग्रेस इस अध्यादेश को अपने दम पर क्या लाना भी चाहेगी यह तो समय ही बताएगा पर अब इसे लाने में कांग्रेस को बड़ा नुक्सान होने वाला है इसलिए संभवतः एक रणनीति के तहत ही उसने भाजपा के विरोध को देखते हुए मिलिंद देवड़ा और अनिल शास्त्री को लगाया हो कि लोगों का ध्यान अध्यादेश से हटाकर इस विवाद पर हो जाये.
अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव देख चुके राष्ट्रपति प्रणब मुखजी ने भी जिस तरह से भाजपा के नेताओं के जाते ही कानून मंत्री और गृह मंत्री को बुलावा भेजा और उनसे इस मसले पर सरकार की राय भी जानी वह और भी महत्वपूर्ण है अब चूंकि मनमोहन सिंह विदेश यात्रा पर हैं तो यह भी संभव है कि राज्यसभा की समिति के समक्ष इस विधेयक के विचाराधीन होने का हवाला देकर फिलहाल इसे ठन्डे बस्ते में ही डाल दिया जाये क्योंकि कांग्रेस समेत कोई भी पार्टी इस समय ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहेगी जिससे उसकी छवि दागियों को बचाने वाले दल के रूप में सामने आए. अगर गौर से देखा जाये तो संभवतः देश का कोई भी ऐसा राज्य नहीं होगा जहाँ दागियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर उन्हें विशेष अधिकारों से नवाजने में कोई दल कहीं से भी पीछे हो पर बिना किसी संवैधानिक सुरक्षा के यदि दागियों को यह मिले तो कोई बुराई नहीं है पर यदि कानून में संशोधन किया जाये तो सभी को एकदम से नैतिकता की याद आने लगती है ? फिलहाल यह कोरी राजनीति ही है जिसमें परदे के पीछे सभी को अपने नेता प्यारे हैं पर जनता के सामने सभी अपने को पवित्र दिखाने की कोशिशें करते हुए दिखाई पड़ते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भाजपा के विरोध को यदि दरकिनार भी कर दिया जाये तो इस तरह के अध्यादेश की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि जब मामला कोर्ट में चल ही रहा है और उस पर सभी दल अपने स्तर से विचार करने में लगे हुए हैं तो कोई भी क़दम इतनी आसानी से और जल्दबाजी में उठाये जाने की क्या आवश्यकता थी ? इस मामले में जिस तरह से केन्द्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने खुले तौर पर अपनी असहमति प्रदर्शित की है उससे जनता भी सहमत है पर कांग्रेस के अन्दर भी अब इस बात पर फिर से मंथन होने की बारी आ गयी है क्योंकि उससे जुड़े हुए दल भी जनता के सामने अपने को पाक साफ़ दिखाने के लिए इस अध्यादेश का विरोध करने पर आमादा होने वाले हैं तो पहले साथ खड़ी भाजपा के दूर हो जाने के साथ अब कांग्रेस इस अध्यादेश को अपने दम पर क्या लाना भी चाहेगी यह तो समय ही बताएगा पर अब इसे लाने में कांग्रेस को बड़ा नुक्सान होने वाला है इसलिए संभवतः एक रणनीति के तहत ही उसने भाजपा के विरोध को देखते हुए मिलिंद देवड़ा और अनिल शास्त्री को लगाया हो कि लोगों का ध्यान अध्यादेश से हटाकर इस विवाद पर हो जाये.
अपने लम्बे राजनैतिक जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव देख चुके राष्ट्रपति प्रणब मुखजी ने भी जिस तरह से भाजपा के नेताओं के जाते ही कानून मंत्री और गृह मंत्री को बुलावा भेजा और उनसे इस मसले पर सरकार की राय भी जानी वह और भी महत्वपूर्ण है अब चूंकि मनमोहन सिंह विदेश यात्रा पर हैं तो यह भी संभव है कि राज्यसभा की समिति के समक्ष इस विधेयक के विचाराधीन होने का हवाला देकर फिलहाल इसे ठन्डे बस्ते में ही डाल दिया जाये क्योंकि कांग्रेस समेत कोई भी पार्टी इस समय ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहेगी जिससे उसकी छवि दागियों को बचाने वाले दल के रूप में सामने आए. अगर गौर से देखा जाये तो संभवतः देश का कोई भी ऐसा राज्य नहीं होगा जहाँ दागियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर उन्हें विशेष अधिकारों से नवाजने में कोई दल कहीं से भी पीछे हो पर बिना किसी संवैधानिक सुरक्षा के यदि दागियों को यह मिले तो कोई बुराई नहीं है पर यदि कानून में संशोधन किया जाये तो सभी को एकदम से नैतिकता की याद आने लगती है ? फिलहाल यह कोरी राजनीति ही है जिसमें परदे के पीछे सभी को अपने नेता प्यारे हैं पर जनता के सामने सभी अपने को पवित्र दिखाने की कोशिशें करते हुए दिखाई पड़ते हैं.
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