मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

कानून की धज्जियाँ

                                              देश में हर व्यक्ति को अपनी बात अपनी तरह से कहने का पूरा अधिकार संविधान ने दिया हुआ है पर इस संवैधानिक व्यवस्था का आज जसी तरह से उसी में रहकर विरोध करना एक चलन सा बनता जा रहा है वह आखिर में देश को कहाँ ले जाने वाला है ? विधि द्वारा स्थापित संविधान की शपथ लेने वाली दिल्ली की कैबिनेट ने खुले आम उसी संविधान की धज्जियाँ अपने प्रदर्शन में उड़ायी पर कुछ नव प्रयोगधर्मी लोगों को लग रहा है कि अब यह सही हो रहा है क्योंकि उन्होंने देश की स्थापित परंपरा को खुलेआम चुनौती देने का साहस दिखाया है ? किन्हीं लोगों की नज़रों में सम्भवतः उनके नेताओं के भाव इस तरह की घटनाओं से बढ़ते हों पर यदि देश के राज्यों की विभिन्न समस्याओं को लेकर यदि राज्यों के मुख्यमन्त्री इसी तरह से दिल्ली में प्रदर्शन करके अपने काम को करवाने के लिए प्रयास रत हो गए तो दिल्ली की कानून व्यवस्था का क्या होगा और पूरे देश में क्या अराजकता नहीं फ़ैल जायेगी ? दिल्ली सरकार की मांगें उनके अनुसार आवश्यक हो सकती है पर उसके लिए स्थापित परम्पराओं की इतने बड़े स्तर पर अनदेखी आख़िर उनके किसी रुख को प्रदर्शित करती है ?
                                             दुःख की बात यह भी है कि दिल्ली पुलिस पर वास्तविक दबाव बनाने के स्थान पर केजरीवाल जैसे व्यक्ति ने भी उन्हीं राजनैतिक टंटों का सहारा लिया जिनके कारण ही आज राजनीति की यह स्थिति हुई पड़ी है. दिल्ली के एलजी के कहने पर ही उन्होंने अपना धरना ख़त्म किया पर उन्हीं एलजी कहने पर जांच की रिपोर्ट आने का इंतज़ार उनसे नहीं किया जा रहा था ? भारती प्रकरण आप के लिए एक समस्या ही बन चुका है और इससे चेहरा बचाने के स्थान पर पार्टी को उन्हें जांच पूरी होने तक मंत्रिमंडल से हटा देना चाहिए जिससे पार्टी पर उन लोगों का विश्वास बना रह सके जिन्होंने परिवर्तन के लिए उनकी तरफ आशाएं लगा रखी हैं. सड़कों पर संघर्ष करने और सरकार चलाने में कितना अंतर होता है यह इतने कम समय में केजरीवाल को पता ही चल गया होगा अच्छा होता कि वे अपने जन समर्थन का उपयोग उन गरीबों को बचाने के लिए करते जो दिल्ली के फुटपाथ पर सर्दी के कारण दम तोड़ रहे हैं पर शायद उनसे सरकार को कुछ हासिल नहीं होने वाला है और ऐसे काम दिल्ली की सरकार अपने अधिकार वाले मंत्रालयों के माध्यम से आसानी से कर सकती है.
                                           जिस दिल्ली पुलिस के पीछे आप पड़ी हुई है उसने भी अपने रवैय्ये को बनाये रखते हुए इस धरने प्रदर्शन में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुक़दमा दर्ज़ कर लिया है कमाल की राजनैतिक समझ है दिल्ली पुलिस की जो अपने नेताओं को हर परिस्थिति से आसानी से बचा लिया करती है ? क्या दिल्ली हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए पूरी दिल्ली सरकार के खिलाफ इस मुक़दमे को दर्ज़ करवाने के लिए आदेश नहीं दे देना चाहिए क्योंकि इस तरह की किसी भी अराजकता में मुंह छिपाने की कोई भी कोशिश देश में क्या परिवर्तन लेकर सामने आएगी यह भी सोचने का विषय है. देश में अब परिवर्तन करना है तो सही तरह से करना होगा यह अब नहीं चल सकता है कि जब चाहो तब परिवर्तन की बातें करो और जब काम निकल जाये तो पुराने ढर्रे को आगे कर उसका आसानी से लाभ उठा लो ? दिल्ली पुलिस को भी इन मानदंडों को अब छोड़ना ही होगा और राजनैतिक दलों को भी यह समझना ही होगा कि इस तरह से अवसर परायण राजनीति को अब देश की जनता अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं करने वाली है.       
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